Tuesday, February 1, 2011

परमाणु क्षमता में ब्रिटेन को पीछे छोड़ा पाक!

वाशिंगटन। अमेरिका में राष्ट्रपति बराक ओबामा के वर्ष 2009 में सत्ता संभालने के बाद से पाकिस्तान निरंतर परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। स्थिति यह है कि पाकिस्तान जल्द ही ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी परमाणु ताकत बन जाएगा।
समाचार पत्र 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका की नई खुफिया रिपोर्ट में यह आकलन किया गया है कि बराक ओबामा के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान ने तेजी से अपनी परमाणु क्षमता का विस्तार किया है। वह ब्रिटेन को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं बड़ी परमाणु शक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
एक अधिकारी का कहना है कि पाकिस्तान के अभी ही इतने परमाणु हथियार हो चुके हैं कि वह भारत का प्रभावी ढंग से प्रतिरोध कर सकता है। अखबार के अनुसार पाकिस्तान के संदर्भ में अगर ये आंकड़े सही हैं तो पाकिस्तान लंबे समय तक एक परमाणु ताकत के रूप में स्थापित रह सकता है। मौजूदा समय में अमेरिका, रूस और चीन विश्व की तीन शीर्ष परमाणु ताकते हैं।
इस संबंध में अमेरिका के विदेश मंत्री पी जे क्राउले ने संवाददाताओं से कहा कि ये आंकड़े गैर सरकारी संगठन की ओर से आए हैं। हम परमाणु मुद्दों विशेषत: पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर टिप्पणी नहीं करते

न्यायिक सक्रियता के निहितार्थ

Source: श्रवण गर्ग   |   Last Updated 00:11(01/02/11)
 
 
 
 
 
 
ऐसा महसूस हो रहा है कि देश को इस समय कोई जनता के द्वारा चुनी गई सरकार नहीं बल्कि न्यायपालिका चला रही है। सरकार नाम की कोई ताकत सत्ता में है और देश का कामकाज भी निपटा रही है ऐसा लगना काफी पहले से बंद हो चुका है। ऐसा महसूस होने देने के पीछे भी सरकार का ही हाथ है। जनता देख रही है कि देश की सेहत से जुड़े अहम मामलों पर फैसले करने अथवा सलाह देने का काम न्यायपालिका के हवाले हो गया है और सरकार अदालती कठघरों में खड़ी सफाई देती हुई ही नजर आती है। संसद ठप-सी पड़ी है और सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता बढ़ गई है। बहस का विषय हो सकता है कि क्या यह स्थिति किसी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए उचित और फायदेमंद है। ऐसा कौन सा मुद्दा है जो आज सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर फैसले के लिए गुहार नहीं लगा रहा है? और सवाल यह भी है कि इन मुद्दों में कौन-सा ऐसा है जिस पर सरकार स्वयं कोई न्यायोचित फैसला नहीं ले सकती है? एक वक्त था जब बहस इस बात पर चलती थी संसद की सत्ता सर्वोच्च है या न्यायपालिका की?

केशवानंद भारती केस में न्यायपालिका की व्यवस्था के बाद सालों साल इस पर बहस भी चली। संसद और न्यायपालिका के बीच अधिकार-क्षेत्र को लेकर कई बार टकराव की स्थितियां भी बनीं। पर आज के हालात देखकर लगता है कि न तो सरकार ही और न ही जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही इतनी दयनीय स्थिति में पहले कभी देखे गए। ऐसे हालात तभी बनते हैं जब सरकार का अपनी ही संस्थाओं पर नियंत्रण खत्म होता जाता है या फिर उसका अपनी जनता पर से भरोसा उठ जाता है। सत्ता में काबिज लोगों को ऐसा आत्मविश्वास होने लगता है कि सबकुछ ठीकठाक चल रहा है और स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है। न तो कोई अव्यवस्था है और न ही कोई भ्रष्टाचार, विपक्षी दलों द्वारा जनता को जान-बूझकर गुमराह किया जा रहा है। दूरसंचार घोटाले पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट को लेकर कपिल सिब्बल जैसे जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री द्वारा किया गया दावा और उस पर न्यायपालिका सहित देशभर में हुई प्रतिक्रिया इसका केवल एक उदाहरण है। विभिन्न मुद्दों पर सरकार द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ठीक उसी प्रकार से है जैसे भयाक्रांत सेनाएं मैदान छोड़ने से पहले सारे महत्वपूर्ण ठिकानों को ध्वस्त करने लगती हैं।

आश्चर्यजनक नहीं कि एक अंग्रेजी समाचार पत्र द्वारा वर्ष 2011 के लिए देश के सर्वशक्तिमान सौ लोगों की जो सूची प्रकाशित की गई है उसमें पहले स्थान पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसएच कापड़िया को रखा गया है। दूसरा स्थान कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को और तीसरा एक सौ बीस करोड़ की आबादी वाले देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रदान किया गया है। इस क्रम पर अचंभा भी व्यक्त किया जा सकता है और जिज्ञासा भी प्रकट की जा सकती है। बताया गया है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में श्री कापड़िया आज सुप्रीम कोर्ट की ताकत का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ऐसे वक्त जब राजनीति का निर्धारण न्यायपालिका के फैसलों/टिप्पणियों से हो रहा है, नंबर वन न्यायाधीश और उनकी कोर्ट देश का सबसे महत्वपूर्ण पंच बन गई है। अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित फैसले को लेकर जब राजनीति की सांसें ऊपर-नीचे हो रही थीं, बहसें सुनने के बाद उन्होंने यह निर्णय देने में एक मिनट से कम का समय लगाया कि हिंसा फैलने की आशंकाओं को बहाना नहीं बनने दिया जाना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय को अपना फैसला सुनाना चाहिए।

चिंता का मुद्दा यहीं तक सीमित नहीं है कि राष्ट्रमंडल खेलों में सरकार की नाक के ठीक नीचे हुए भ्रष्टाचार से लेकर विदेशों में जमा काले धन की वापसी के सवाल तक पिछले महीनों के दौरान जितने भी विषय उजागर हुए उन सबमें सच्चाई सामने आने की संभावनाएं न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद ही प्रकट हुईं और ऐसा कोई आश्वासन नहीं है कि जो सिलसिला चल रहा है वह कहीं पहुंचकर रुक जाएगा।

क्या ऐसी आशंका को पूर्णत: निरस्त किया जा सकता है कि लगातार दबाव में घिरती हुई कार्यपालिका किसी मुकाम पर पहुंचकर न्यायपालिका के फैसलों को चुनौती देने, उन्हें बदल देने या उन पर अमल को टालने की गलियां तलाश करने लगे। या फिर न्यायपालिका पर राजनीतिक आरोप लगाए जाने लगें कि वह शासन के कामकाज में हस्तक्षेप करते हुए अग्रसक्रिय (प्रोएक्टिव) होने का प्रयास कर रही है, टकराव की स्थिति इससे भी आगे जा सकती है। ऐसा अतीत में हो चुका है।

अक्टूबर 2009 में जब इटली की 15 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने व्यवस्था दी कि वहां की संसद द्वारा पूर्व में पारित कानून, जिससे प्रधानमंत्री को उनके खिलाफ चलाए जाने वाले मुकदमों के प्रति सुरक्षा (इम्यूनिटी) प्राप्त होती है असंवैधानिक है तो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सिल्वियो बलरूस्कोनी ने निर्णय को यह कहते हुए चुनौती दे दी कि संवैधानिक पीठ पर वामपंथी जजों का आधिपत्य है। उन्होंने कहा कि ‘कुछ नहीं होगा, हम ऐसे ही चलेंगे।’ उन्होंने कोर्ट को ऐसी राजनीतिक संस्था निरूपित किया, जिसकी पीठ पर 11 वामपंथी जज बने हुए हैं।

न्यायपालिका की संवैधानिक व्यवस्थाओं को तानाशाही तरीकों से चुनौती देने की स्थितियां और कार्यपालिका के कमजोर दिखाई देते हुए हरेक फैसले के लिए न्यायपालिका के सामने लगातार पेश होते रहने की अवस्था के बीच ज्यादा फर्क नहीं है। एक स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। चूंकि इस समय देश का पूरा ध्यान सरकार व न्यायपालिका के बीच चल रहे संवाद व अदालती व्यवस्थाओं पर केंद्रित है, विपक्ष की इस भूमिका को लेकर कोई सवाल नहीं खड़े कर रहा है कि कार्यपालिका को कमजोर करने में भागीदारी का ठीकरा उसके सिर पर भी फूटना चाहिए। जो असंगठित और कमजोर विपक्ष न्यायपालिका की ताकत को ही अपनी ताकत समझकर आज सरकार के सामने इतना इतरा रहा है वह स्वयं भी कभी आगे चलकर इसी तरह के टकरावों की स्थितियों का शिकार हो सकता है। यह मान लेना काफी दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि देश का राजनीतिक विपक्ष न्यायपालिका के फैसलों और टिप्पणियों में ही अपने लिए शिलाजीत की तलाश कर रहा है।

श्रवण गर्ग
लेखक भास्कर के समूह संपादक हैं

पाकिस्‍तान ने ओबामा को दी खुली चुनौती, परमाणु बमों से बढ़ेगा तनाव!

पाकिस्‍तान ने ओबामा को दी खुली चुनौती, परमाणु बमों से बढ़ेगा तनाव!

Source: agency   |   Last Updated 16:32(01/02/11)
 
 
 
वाशिंगटन. पाकिस्तान अब अमेरिका के लिए सिरदर्द बन रहा है। पाकिस्तान ने अमेरिका में राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्ता संभालने के बाद बड़ी संख्या में चोरी छिपे परमाणु बम बनाए, जबकि अमेरिका विश्व में परमाणु बम के उत्पादन को कम करने का प्रयास कर रहा है। पाकिस्तान में पदस्थ एक अमेरिकी राजनयिक ने पिछले सप्ताह लाहौर में लूट के इरादे से आए दो व्यक्तियों की गोली मारकर हत्या कर दी। इसे लेकर भी दोनों देशों में तनाव है। अमेरिका ने पाकिस्तानी सरकार को कहा कि राजनयिक को जल्दी ही अमेरिका भेजा जाए, लेकिन लाहौर हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक आदेश में राजनयिक के देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दी। इसी बीच अमेरिकी सरकार ने अपने नागरिकों को जारी अलर्ट में पाकिस्तान न जाने की सलाह दी है।      

पाकिस्तान बड़ी तेजी से परमाणु हथियार बना रहा है और यह मुद्दा अब अमेरिका के साथ तनाव का कारण बन रहा है। पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने के अलावा इसके निर्माण में लगने वाले जरूरी सामान का भी उत्पादन तेजी से कर रहा है। याने भविष्य में भी उसकी और बम बनाने की योजना है। पाकिस्तान यदि इसी गति से हथियार बनाता रहा तो जल्दी ही वह परमाणु क्षमता वाला विश्व का पांचवां सबसे बड़े देश बन जाएगा।

अमेरिका के जाने-माने अखबार न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार पाक की बढ़ती परमाणु क्षमता अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की विश्व में परमाणु हथियार घटाने की नीति के खिलाफ है और इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है। 

सोमवार को वाशिंगटन पोस्ट ने खुलासा किया है कि पाकिस्तान के पास 100 से ज्यादा न्यूक्लियर हथियार हैं और अधिकांश भारत की सीमा पर तैनात किए गए हैं।

न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार अमेरिका के गुप्तचर विभाग का आंकलन है कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियारों में इजाफा राष्ट्रपति बराक ओबामा के सत्ता में आने के बाद ही किया है। यह ओबामा को खुली चुनौती है क्योंकि ओबामा परमाणु हथियारों की संख्या में बढ़ोतरी का लगातार विरोध कर रहे हैं। अमेरिका के आंकलन के अनुसार ओबामा के सत्ता संभालने के पहले हथियारों की संख्या 75 से 80 के करीब थी लेकिन अब यह संख्या 105 के करीब मानी जाती है।

 अखबार के अनुसार पिछले तीन सप्ताहों में करीब सात देशों ने पाकिस्तान की परमाणु क्षमता के बारे में अमेरिका से चिंता व्यक्त की है। अधिकांश देशों की चिंता परमाणु हथियारों के अलावा हथियारों में इस्तेमाल होने वाले प्लूटोनियम के उत्पादन पर भी है। पाकिस्तान नए प्लूटोनियम रिएक्टर को भी जल्दी ही पूरा करने वाला है, जिसके बाद उसकी परमाणु हथियार बनाने की क्षमता और बढ़ जाएगी। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान परमाणु प्रोजेक्ट के लिए धन कहां से जुटा रहा है, जबकि पूरे देश की आर्थिक स्थिति काफी खराब है।

अमेरिकी राजनयिक को लेकर तनाव

दोनों देशों के बीच पाकिस्तान में एक अमेरिकी राजनयिक को लेकर भी विवाद गहरा गया है, जिसने पिछले सप्ताह लाहौर में गोली चलाकर दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या कर दी।

अमेरिकी राजनयिक रेमंड्स डेविड ने पिछले सप्ताह लाहौर में गोली चलाकर दो व्यक्तियों को मार दिया था। डेविस का तर्क है कि उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई। मारे गए व्यक्ति मोटर साइकल पर सवार थे और उन्हें लूटने के उद्देश्य से आए थे। पुलिस ने हालांकि हत्या का मामला दर्ज कर लिया लेकिन घटना के बाद पाकिस्तान में प्रदर्शन हुए और डेविस को कड़ी सजा देने की मांग की गई। अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तानी सरकार को कहा कि वह डेविस को वापस अमेरिका भेजने की व्यवस्था करे।

एक वकील ने लाहौर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपील की कि डेविस को वापस नहीं भेजा जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने आज इस मामले की सुनवाई करने के बाद कहा कि डेविस पाकिस्तान के बाहर नहीं जा सकेंगे क्योंकि उसके खिलाफ अपराधिक प्रकरण चल रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि यह भी वही (अदालत) तय करेंगे कि डेविड को राजनयिक होने के कारण स्थानीय कानून के दायरे से बाहर रखने का लाभ दिया जाए या नहीं। अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान में करोड़ों डालर का खर्चा किया हो, लेकिन पाक नागरिक उसे नापसंद करते हैं। 

अमेरिका ने नागरिकों को अलर्ट जारी किया
अमेरिका ने आज अपने नागरिकों को कहा है कि आतंकवादी हमलों की आशंका के मद्देनजर पाकिस्तान और भारत की यात्रा से बचें। विदेश विभाग ने कहा कि भारत और पाकिस्तान सहित कई देशों में अमेरिकी नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है। अलर्ट में कहा गया है कि भारत में आतंकवादियों ने उन स्थानों को निशाना बनाया है, जहां विदेशी बड़ी संख्या में आते जाते रहते हैं। पाकिस्तान में भी आतंकवादी समूहों ने पश्चिमी देश के नागरिकों पर हमले किए हैं

दूसरा 'मिस्र' बनेगा पाकिस्‍तान: खतरनाक हैं हालात, बगावत पर उतर सकती है जनता


नई दिल्ली. मिस्र और ट्यूनिशिया की तर्ज पर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी सुलग सकता है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस (आईएफआरसी) ने मिस्र और ट्यूनिशिया की तर्ज पर पाकिस्तान में भी बवाल शुरू होने की आशंका जताई है। रेड क्रॉस को आशंका है कि पाकिस्तान के बाढ़ से प्रभावित रहे इलाकों में लोग सड़कों पर उतर सकते हैं, जिससे उन इलाकों में तोड़फोड़ और अशांति फैल सकती है। 

गौरतलब है कि ३० साल से सत्ता में काबिज हुस्नी मुबारक के खिलाफ मिस्र में पिछले एक हफ्ते से लोग जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आज करीब १० लाख लोग मुबारक के खिलाफ मार्च निकाल रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति को शुक्रवार तक देश छोड़ने की चेतावनी दी है। इसी बीच सेना ने भी राष्ट्रपति का साथ छोड़ दिया है। 

पाकिस्‍तान के खराब हालात को देखते हुए आईएफआरसी के अध्यक्ष टाटाडेरू कोनो ने कहा कि पिछले साल बाढ़ से प्रभावित पाकिस्तान के जिलों में राजनीतिक उठापटक की आशंका है। कोनो ने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि कब तक लोग महंगाई और खाने-पीने की चीजों की कमी को बर्दाश्त कर पाएंगे।

गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई, अगस्त में पाकिस्तान में बाढ़ ने बहुत ज़्यादा तबाही मचाई थी। इस बाढ़ की चपेट में करीब बीस फीसदी आबादी आई थी। लाखों लोग पलायन के लिए मजबूर हुए थे। पाकिस्तान के दक्षिण में मौजूद कई इलाकों में आज भी पानी भरा हुआ है।   

पूरे पाकिस्तान में खराब हो रहे हालातपाकिस्तान में चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव के बीच पिछले कई दशकों से पनप रहा आतंकवाद, लोकतंत्र की जगह तानाशाही, सरकार और सेना के बीच टकराव और सेना का ज़्यादा ताकतवर होना, जैसे कारकों की वजह से पूरे पाकिस्तान में अस्थिरता और अशांति का माहौल है। इसके चलते आए दिन पाकिस्तान में बम धमाके हो रहे हैं, जिसमें पिछले कुछ सालों में हजारों लोग मारे गए हैं। पाकिस्तान में युवा बेरोजगारी और गरीबी का शिकार हैं। पाकिस्तान में पश्चिमी और उत्तरी राज्यों में दशकों से गरीबी और अस्थिरता का माहौल है। इसका असर पूरे पाकिस्तान पर पड़ रहा है। 

दीवालिया होने के कगार पर पाकपाकिस्तान दीवालिया होने की कगार पर खड़ा है। विदेशों से मिल रही मदद भी अब कम होती जा रही है। विदेशी मददगारों का साफतौर पर कहना है कि जब तक पाकिस्तानी सरकार रक्षा पर अपने बजट में कटौती नहीं करेगा, तब तक वे कोई आर्थिक मदद नहीं देंगे। पाकिस्तानी सरकार अगर अपने रक्षा खर्च में कटौतीर नहीं करेगी तो उसे अपनी ही मुद्रा छापनी पड़ेगी, जिससे महंगाई दर और बढ़ेगी। पाकिस्तान में महंगाई दर 20 फीसदी का आंकड़ा छू लिया है। यही हालात रहे आने वाले दो-तीन सालों में सबी चीजों के दाम दोगुने हो जाएंगे।

हर सेकेंड 60 हजार का कर्ज लेता है पाक
पाकिस्तान सरकार हर सेकेंड करीब 60,000 रुपये का कर्ज ले रही है। पाकिस्तान सरकार द्वारा करों के तौर पर वसूले जा रहे हर १०० रुपये में ४० कर्जे के ब्याज के तौर पर चुकाए जा रहे हैं, वहीं ४० रुपये रक्षा पर खर्च हो रहे हैं। वहीं, दस रुपये प्रशासन पर खर्च हो रहे हैं। बाकी बचे दस रुपये ट्रेनिंग, स्वास्थ्य, पोषण, पानी की सप्लाई, जनसंख्या नियोजन, ग्रामीण विकास, विज्ञान, सड़कें, पुल के निर्माण, महिला विकास पर खर्च हो रहे हैं। 

बढ़ रही है बेरोजगारी
पाकिस्तान में लाखों लोगों के हाथ में काम नहीं है। पिछले दस सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ है कि पाकिस्तान में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है। २०१० में बेरोजगारी की दर १४ फीसदी तक पहुंच गई है। जबकि २००९ में यह ७.४ फीसदी थी। एक साल में ही यह दर दो गुना हो गई है।  
२०१० में मारे गए ५ हजार लोगएक आकलन के मुताबिक २०१० के पहले दस महीनों में ही आतंकवादी गतिविधियों, धमाकों में पाकिस्तान के करीब ४७०० लोग मारे गए हैं। साल के अंत तक यह आंकड़ा पांच हजार के आंकड़े को छू रहा है।

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप बीते 20 साल से सत्ता का बनवा...