चीनी सेना की तिब्बत में बढ़ती भागीदारी के मद्देनजर भारत ने भी पूरी तैयारी कर ली है। भारत सरकार ने भी पूर्वोत्तर में सेना की फौरी तौर पर दो माउंटेन डिविजन बनाया है। जिसमें 30 हजार जवान शामिल हैं।
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पूर्वोत्तर में दो नये माउंटेन डिविजन बनकर तैयार हैं। वे पूरी तरह से काम कर रहे हैं। महज कुछ जरूरत की चीजों की आवश्यकता है जो जल्द ही पूरी हो जाएगी।
प्रत्येक नये डिवीजन को बनाने में करीब सात सौ करोड़ की कीमत आयी है। एक नागालैंड के रंगापहर के अंतर्गत तो दूसरा असम के तेजपुर के अंतर्गत काम करेगा।
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पूर्वोत्तर में दो नये माउंटेन डिविजन बनकर तैयार हैं। वे पूरी तरह से काम कर रहे हैं। महज कुछ जरूरत की चीजों की आवश्यकता है जो जल्द ही पूरी हो जाएगी।
प्रत्येक नये डिवीजन को बनाने में करीब सात सौ करोड़ की कीमत आयी है। एक नागालैंड के रंगापहर के अंतर्गत तो दूसरा असम के तेजपुर के अंतर्गत काम करेगा।
चीन को जवाब देने के लिए भारतीय सेना की तरफ से पूरी तैयारी चल रही है। भारतीय सेना ने हैवी मशीनगन का भी टेंडर निकाला है। तेजपुर में फाइटर प्लेन सुखोई-30 की भी तैनाती कर दी गई है।
अरुणाचल प्रदेश को अपना बताने के बाद चल रहे भारत और चीन के विवाद के बीच भारतीय सेना के तरफ से डिवीजन की तैयारी, युद्ध के समय काफी मददगार होगी। यह डिवीजन उस समय तैयार हुआ है जब चीनी सेना लाइन ऑफ कंट्रोल के पास आधारभूत संरचना में तेजी से विकास कर रहा है।
भारत की सीमा तक हाई-वे
गौरतलब है कि चीन ने भारत की सीमा तक हाई-वे बनाने की राह में पिछले दिनों ही सफलता हासिल कर ली थी। तिब्बत में मोशुओ काउंटी (तिब्बती में मेटोक) भारत के अरुणाचल प्रदेश से लगा वहां का आखिरी क्षेत्र है। यहां अब तक कोई हाई-वे नहीं है।
इस स्थान का सामरिक महत्व है क्योंकि अरुणाचल को चीन दक्षिण तिब्बत का हिस्सा कहता है। यहीं से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है।इस 117 किलोमीटर के हाई-वे के बन जाने के बाद मेटोक नजदीकी बोमी काउंटी से जुड़ जाएगा। बोमी काउंटी तक चीन को जोड़ने वाली सड़क पहले ही मौजूद है।
सुरंग भी बना चुका है चीन
चीन ने इसी हाईवे से एक 3.3 किमी (3310मीटर) की सुरंग भी बनाई है। चीन के सरकारी टेलीविजन ने सुरंग निर्माण स्थल से कुछ सीधी तस्वीरें प्रसारित कीं थीं । इस सुरंग के बनते ही चीन कभी भी बड़ी ही आसानी से भारत में सेंध लगाने में सक्षम हो गया है।
विस्फोट के जरिए सुरंग का दूसरा छोर खुलने के बाद इसके निर्माण में जुटे मजदूरों को इन तस्वीरों में जश्न मनाते दिखाया गया। समुद्र तल से 3,750 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ से ढंके गैलोंग्ला पर्वत पर यह सुरंग बनाई गई है। इसके निर्माण में पूरे दो साल लगे।
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