वह नहा रही थी और उसका प्रेमी उसे नहाते हुए देखने के लिए आहें भर रहा था। किसी पहरेदार की तरह मौसम हर दिन श्यामला के घर के आसपास संदिग्ध तेवर में दिखता। खुद को व्यस्त दिखाने के लिए किसी से एक लफ्ज तक नहीं बोलता। कोई टोक दे तो अनसुना कर देता। श्यामला का बाथरूम कुछ ऐसा था कि उसके कपड़े दिख जाते थे। वह नहाते वक्त कपड़े को चाहारदिवारी पर रख देती। मौसम कपड़े देखता और बोलता अच्छा आज लाल वाली पहनी है। दूसरे दिन भी इसी तरह देखता और कहता आज नारंगी वाली पहनी है। फिर जोर से पैर को धूल भरी जमीन पर पटकते हुए आगे बढ़ जाता।
जैसे ही मौसम ने मायूस होकर आगे की ओर कदम बढ़ाए कि श्यामला के भाई ने आवाज लगाई, ‘का हो मौसम भाई कहां जा रहे हैं?‘ गांव में संबोधन के लिए हर कोई भाई है। पर इससे इस चक्कर में मत पड़िएगा कि संबंध भी भाई के ही हैं। संबंध और संबोधन कई बार आप विपरीत देखेंगे। जैसे- ‘अमर को मरते देखा धनपत कूटे धान।‘ बिल्कुल गंगनम स्टाइल में। मौसम को श्यामला के भाई में भी श्यामला की छवि कई बार दिखती थी। उसने कई बार मुझसे कहा, ‘इसकी आवाज मुझे एकदम श्यामला की तरह लगती है। वह इस आवाज को अनसुना कर दें ऐसा कभी नहीं हुआ। ऐसा वाकया मौसम को भी याद नहीं है।
फिर दोनों की घंटों बातें होतीं। घंटों इसलिए कि एक झलक श्यामला की मिल ही जाएगी। यह उस दौर की बात है जब गांवों में मोबाइल नहीं आया था। जाहिर है इन प्रेमी जोड़ों ने कई खतों को स्याही से रंगे होंगे। जब प्रेम सुनामी बना तो स्याही में लहू भी मिलाए गए। उस लहू से कुछ दिल की आह निकली तो कई बार लिखे गए-
लिख रही हूं खून से स्याही मत समझना
जीती हूं कैसे बेगानी मत समझना
तेरी याद मेरी रात है तेरी खुश्बू मेरी सांस
पता नहीं कब मिलेंगे टूटती नहीं आस
कितने खत रंगे गए, कितने आंसू निकले, कितने खत सार्वजनिक हो गए, कितने खत पहुंचाने वाले ने गुस्ताखी कर खुद के पास रख लिए, कितने खतों से ब्लैकमेल की कोशिश की गई चाहे जितनी बार बताऊं यकीन मानिए यह सिलसिला खत्म नहीं होगा। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। मौसम के साथ श्यामला का भी यह कहना है। ऐसा तब है जब आज की तारीख में दोनों अलग दांपत्य जी रहे हैं। आज की तारीख में दोनों एक दूसरे को भईया और छोटी बहन कहने को अभिशप्त हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि वह प्रेम मर गया। उस अतीत के ठहरे प्रेम में एक कंकड़ धीरे से मार दीजिए वे खुद को रिवर्स कर पांच साल पीछे जाकर जीने के लिए ललच जाते हैं।
इस बार करीब एक साल के बाद गांव गया। मुझे कई प्रेम कहानियों को सुनने का मौक मिला। ये बिखरी प्रेम कहानियां किसी महाकाव्य से कम नहीं। इनका जन्म खेत-खलिहान और गलियों में होता है और वहीं दम तोड़ देते हैं। लेकिन कुछ प्रेम कहानियां मुकाम तक भी पहुंच ही जाती हैं। यहां प्रेम के व्याकुल संवाद किसी मेट्रो स्टेशन या पार्क में नहीं होते। भला इन नादान परिंदों को इस पवित्र अनुभव के लिए कौन मंजूरी देगा। किसी ने देख लिया तो कुलटा से लेकर कुलनाशन तक तमगा पल में मिल जाएगा। गांव में लड़कों को कई मामलों में विशेषाधिकार मिले होते हैं। मसलन स्कूल के लिए गांव से शहर जाने की छूट के साथ वे कहीं अकेले भी आवाजाही कर सकते हैं। लड़कियों के लिए भाई और पिता पहरेदार हैं। हालांकि उसका प्रेमी भी खुद को उसका कई मामलों में पहरेदार ही समझता है।
मौसम ने एक दिन खतरनाक गुस्ताखी की। श्यामला नहा रही थी। उसने हर दिन की तरह कपड़े निकालकर चाहारदिवारी पर रखे। मौसम चारों तरफ देखकर तेजी से झपटा और कपड़े लेकर भाग गया। कपड़े ले जाने की खबर श्यामला तक को नहीं लगी। खत में श्यामला ने खुलासा किया कि उस दिन मेरे कपड़े लेकर भागे थे पता भी नहीं चला था। राम कसम मैं तो डर गई थी कि और किसकी नजर मेरे ऊपर लग गई। आप मुझे न बताए होते तो मैं आपको डर से इस वाकये के बार में बताती भी नहीं। मौसम ने पूछा क्यों नहीं बताती? आप फिर टेंशन में आ जाते कि वह और कौन है जो मुझे इस कदर चाहता है।
खत में ही श्यामला ने पूछा, आपने कपड़ों का क्या किया था उस दिन? कहां लेकर गए थे? मौसम की सांसें तेज हो गईं। उसने खुद को संभालते हुए कहा - कपड़े लेकर गेंहू के खेत में चला गया था। उसे सीने में दबाए देर शाम तक सोता रहा। श्यामला ने कहा धत तरी के एकदम पागल हैं क्या। कोई लड़की का कपड़ा लेकर खेत पर जाता है। जिस खत में मौसम और श्यामला के ये संवाद थे वह खत उस खेत की मिट्टी में मिल गया। लेकिन मौसम को उस खत की हर पंक्ति उसी शैली और इमोशन के साथ याद है। आप मौसम से इसे सुन लें तो लगेगा कि वह लिखा खत ऑडिया-विडियो बन गया है।
हो सकता है मौसम और श्यामला उस एकांत क्षण की तलाश में आज भी हों कि उन सारी बातों को कम से कम कह सकें। मौसम ने भरे दिल से कहा अब संभव नहीं है। अब तो उसके बच्चे मुझे मामा कहते हैं। मेरे बच्चे उसे बुआ। मौसम इस बात को कहकर हंसने लगते हैं। लेकिन उस हंसी में एक ऐसी प्यास होठों पर दिखती है जिसका बुझना शायद मरते दम तक बचा रहे।
आज की तारीख में मौसम पिता बन चुके हैं। श्यामला भी मां बन गई हैं। श्यामला उस मर्द की पत्नी बनी जिसे नहीं चाहती थीं और मौसम उस लड़की के पति बने जिसे वह नहीं चाहते थे। न चाहते हुए दोनों बच्चों के माता-पिता भी बन गए।
इस बार मौसम ने दिल भारी कर पूछा, ये कैसे रिश्ते हैं मित्र? हम नहीं समझ पाते हैं। आधी जिंदगी गुजर गई कुछ भी अब तक अपने मन से नहीं हुआ। यहां तक कि पत्नी भी अपने से चुनने की आजादी नहीं मिल सकी। पिताजी को और माताजी को अच्छी बहू की जरूरत थी, शायद वह मिल गई। लेकिन सच कह रहा हूं दोस्त, मन की पत्नी नहीं मिली। मुझे लगता है कि मुझसे जिस लड़की की शादी हुई वह मेरे घर की अच्छी बहू है लेकिन मेरे मन की चुनी हुई पत्नी नहीं। जाहिर है यही दर्द श्यामला का भी होगा।
मैंने मौसम से कहा, अब जो है उसे दिल से कबूल कर जीना शुरू कीजिए। मौसम ने आहत होकर कहा, ‘संभव नहीं है।‘
मैंने पूछा ऐसे कब-तक जीते रहेंगे?
जब-तक उससे एक बार सेक्स न कर लूं।
तो आप सेक्स के बाद उसे छोड़ देंगे?
मौसम का जवाब था, पता नहीं।
मौसम के इस जवाब से थोड़ा मैं भी कन्फ्यूज हूं। इस सवाल के साथ इस प्रेम कथा का अंत कर रहा हूं कि प्रेम और सेक्स में क्या संबंध है। क्या बिना सेक्स के प्रेम संभव नहीं है?
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