युवा पत्रकार और एक्टिविस्ट पंकज कुमार झा |
ज्योतिष के नाम पर ठगी का कारोबार काफी छोटा है. हम हमेशा अपनी आय का एक काफी-काफी छोटा अंश इस नाम पर खर्चते हैं. मसलन कोई दस हज़ार की नौकरी करने वाला होगा तो वो पंडित को 11 रुपया दक्षिणा देगा, कोई करोड़पति होगा तो एक-दो नीलम-पुखराज पहन लेगा. लेकिन इस ठगी के बरक्स ज़रा बड़े ठगों पर ध्यान दीजिये. आज हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड (दुनिया भर में उस देश का नाम और आगे लीवर लिमिटेड जोड़ दीजिये) का काले से गोरा बना देने का कारोबार किस हद तक ठगी का नायब नमूना है, उसे देखिये. ज़रा उसका टर्न ओवर देख लीजिये. कई देशों के जीडीपी से ज्यादा इनकी अकेले आमदनी है.
किसी जान्शन एंड जान्शन या प्रोक्टर एंड गेम्बल द्वारा ऐसे ही की जा रही ठगी और अवैज्ञानिक अंधविश्वास पर नज़र डालिए. विश्व सुन्दरी हमेशा उस देश से बनाए जाने के कारोबार को देखिये जहां बाज़ार की संभावना दिखे. एक विज्ञापन का अंधविश्वास देख लीजिये जिसमें घोषणा की जाती है कि मेरी कंपनी का डियो इस्तेमाल करोगे तो लड़कियां पास आयेंगी.. दूसरे का करोगे तो बस छींक आयेगी. जेनरिक दवाओं के बदले ब्रांडेड का कारोबार देख लीजिये. दो रुपये कीमत वाले रसायन का 2 हज़ार दाम वसूलते दवा कारोबारी को देखिये.
बीज और खाद के नाम पर फैले अन्धविश्वास और ठगी को देख लीजिये. एक रुपया किलो में आलू खरीद 200 रुपया किलो का चिप्स बेचने वाले ठगों को देखिये. सारदा जैसे सैकड़ों कंपनियों द्वारा फैलाये अंधविश्वास को देखिये कि सारा खून-पसीना किसी ममता बनर्जी के पास बंधक रख दीजिये, किरपा आयेगी. मज़हब के नाम पर 'मानव बम' बन जाने वाले अंधविश्वास को देखिये. एक-एक नाकाबिल और अन्धविश्वासी व्यक्ति द्वारा चार-चार लड़कियों की जिन्दगी बर्बाद कर देने वाले कानूनी ठगी को देखिये. 72 हूरों के मिलने का अंधविश्वास और उसे पाने के लिए बहाई जाती खून की नदियों को देखिये. किसी पॉल दिनाकरण को देखिये. इसाई संत बनाने के कारोबार को देखिये. नक्सलवाद के नाम पर हर साल ठगे जा रहे हज़ारों करोड़ को देखिये. फसल की उचित कीमत नहीं मिलने पर किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या और उसी फसल को दस गुना ज्यादा कीमत पर आपको बेचने की ठगी पर नज़र डालिए. मौसम विभाग द्वारा हमेशा गलत अनुमान प्रस्तुत कर देश से हजारों करोड़ झटक लेने की ठगी को देख लीजिये.
तय मानिये... इसकी तुलना में किसी गरीब ज्योतिषी का कारोबार आपको भूसे के ढेर में सूई की मानिंद ही लगेगा. लेकिन भूसे के बदले हमेशा 'सूई' को खोजते रहने की मिडिया की मजबूरी ये है कि जिस दिन 'भूसे' को दमदारी से प्रसारित करना शुरू किया, उसी दिन से उसका बाल-बच्चा पालना मुश्किल हो जाएगा. वो इसलिए क्यूंकि तमाम टीआरपी का अंधविश्वास और विज्ञापन की ठगी का जरिया वही ऊपर वाली चीज़ें हैं. सो... अपनी अकल लगाइए और सोशल मीडिया के ज़माने में अपना एजेंडा खुद सेट कीजिये. किसी सनी लियोनी या चैनल के सितारों को बस मनोरंजन के लिए इस्तेमाल कीजिये. जैसे कभी-कभार वयस्कों वाली फिल्म देखते हैं न, वैसे ही समाचार चैनल भी देखिये. पोर्न स्टार जितना ही 'सम्मान' इस कथित चौथे खम्भे को दीजिये. खुद को फेसबुक पर व्यक्त कीजिये. यहीं से अपना ओपिनियन बनाइये...बस.
और आखिर में तीन किस्से...
पत्रकारिता के एक कनिष्ठ मित्र अपने संपर्क में थे. लगातार फोन आदि करते रहते थे. एक दिन मित्र ने जानकारी दी कि अंतत उनकी नौकरी लग गयी एक बड़े अखबार में. बधाई देने के बाद पूछा कि अभी क्या कर रहे हो वहां? तो बोले कि अभी तो सीख ही रहा हूं. हां.. संपादक के नाम पत्र वाला कॉलम आजकल मैं ही देखता हूं. सारे पत्र मैं ही लिखता हूं. अब ऐसे ही बड़े अखबार दैनिक राशिफल भी खुद ही लिख लेते हैं तो इसमें ज्योतिष का क्या कसूर?
दूसरा किस्सा भारत के प्रधानमंत्री रहे स्व. चन्द्रशेखर के बारे में. यह किसी से सुना था या कहीं कभी पढ़ा था एक बार. ज़ाहिर है उनका कद ऐसा तो था ही कि वो चाहते तो हमेशा मंत्री बने रह सकते थे, वो भी बड़े से बड़ा पोर्टफोलियो लेकर. अपन सब जानते हैं कि उस 'भोंडसी के संत' की ज्योतिष आदि पर भी अगाध आस्था थी. उनके ज्योतिषी ने चन्द्रशेखर से कहा था कि उन्हें राजयोग है तो ज़रूर लेकिन क्षीण योग है. और वो भी बस एक बार ही किसी राजकीय पद तक पहुचा सकता है. कहते हैं कि तभी चन्द्रशेखर जी ने यह तय कर लिया था कि अगर एक बार ही बनना है तो प्रधानमंत्री ही बनेंगे, दूसरा कोई पद नही लेंगे. अब इस बात का कोई आधिकारिक प्रमाण तो हो नही सकता लेकिन अनुभवी लोग शायद इस बात पर कोई प्रकाश डाल पायें.
तीसरा किस्सा मेरे यहां के एक ज्योतिषी कामेश्वर झा जी का. आंखों-देखी झा जी के फलादेश की कहानियां इतनी है मेरे पास कि क्या कहूं? खैर..वो कहानी फिर कभी. अभी बस ये याद आया कि वो पतरा (पंचांग) भी बनाते थे. चन्द्र या सूर्य ग्रहण कब लगेगा, ये जानने उन्हें किसी इसरो या नासा के वैज्ञानिकों के पास नहीं जाना पड़ता था. कॉपी-कलम उठाते थे. कुछ गुणा-भाग किया और बता देते थे कि फलाने दिन चन्द्र ग्रहण तो ठिमकाने दिन सूर्य ग्रहण लगेगा. मजाल है राहू के बाप का कि एक दिन भी वो कामेश्वर जी द्वारा बताये समय पर नहीं हाज़िर हुआ हो, अपने 'शिकार' के पास. बिलकुल चाक-चौबंद और पाबंद रहता था राहु. अपना मूंह फाड़े बिलकुल तैयार. आप अगर चाहते तो अपनी घड़ी सही कर सकते थे राहु की उस सवारी के अनुसार.
भाजपा से जुड़े युवा पत्रकार और एक्टिविस्ट पंकज कुमार झा के फेसबुक वॉल से.
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