Thursday, February 3, 2011

एक परंपरा पर पूर्ण विराम

जब भारत में गणतंत्र दिवस के समारोह चल रहे थे उसी दिन ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन ने अपने हिंदी बुलेटिन से समाचार प्रसारण की अस्सी वर्षीय परंपरा को पूर्ण विराम लगा दिया। 27 जनवरी को चिली की संसद के अध्यक्ष जार्ज पिजारो सोतो भारत दौरे पर थे। भारत के उपराष्ट्रपति ने अपने आवास पर अंग्रेजी भाषा से उनकी अगवानी की। मेहमान के दुभाषिए ने फौरन टोकते हुए कहा कि हमारे महामहिम को अंग्रेजी समझने में दिक्कत है, क्योंकि चिली की भाषा स्पेनिश है। हम सभी अंग्रेजी को परदेशी भाषा मानते हुए भी उसके माध्यम से व्यवहार करने में प्रतिष्ठा की बात समझते हैं। संभवत: भारत ऐसे चंद देशों में शामिल है जहां आम लोगों के व्यवहार और शासकीय व्यवहार की भाषा अलग-अलग है। भारत की गुलामी काल से ही बीबीसी की हिंदी सेवा का प्रचलन था और विश्व के बहुत से देशों में भारत के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रवासी भारतीयों के अलावा भी लोग हिंदी बुलेटिन सुनने के अभ्यस्त थे। टीवी चैनलों ने पूरे विश्व के आकाश को छेद कर अपना आकार भले बड़ा कर लिया, लेकिन बीबीसी रेडियो से प्रसारित होने वाले समाचारों के श्रोताओं की संख्या में कोई कमी नहीं हुई। बीबीसी हिंदी समाचार का अलग ही क्रेज है। इस बुलेटिन को अर्थाभाव का बहाना बनाकर बीबीसी के प्रबंधकों ने बड़ी संख्या में भारतीय मानस केघाव को गहरा कर दिया है। भारत की आजादी के तुरंत बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का विश्व के नाम संदेश लेने के लिए बीबीसी का संवाददाता गया। गांधीजी हिंदी के लिए आग्रहशील थे और उनका साक्षात्कार हिंदी में ही हुआ। भारत स्थित इस श्रेष्ठ संस्था के प्रतिनिधि मार्क टुली ने न केवल हिंदी सीखी, बल्कि भारत उनके दिल में इतना रस बस गया कि वह सेवानिवृत्त होने के बाद भारत में ही निवास कर रहे। अंग्रेजी के कोख से जन्मी बीबीसी ने अपने बुलेटिन, अपने भाष्य, परिस्थितयों की व्याख्या के माध्यम से जितनी हिंदी की सेवा की उतनी बड़ी सेवा हिंदी में बनने वाली सभी फिल्मों ने भी नहीं की। 1974 में अपै्रल-मई में मुझे पश्चिमी यूरोप के एक देश बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स जाना पड़ा। वहां अंतरराष्ट्रीय समाजवादी युवा सम्मेलन आयोजित था। दूसरे दिन भारत के छात्र-युवा आंदोलन के बारे में लंबा इंटरव्यू लिया। उस इंटरव्यू को भारत में लोगों ने सुना। वह ऐसा दौर था जब आकाशवाणी को लोग आल इंदिरा रेडियो कहकर पुकारते थे। निष्पक्ष टिप्पणी के लिए बीबीसी का ही सहारा लिया जाता था। उस दौर में हिंदी बुलेटिन हिंदी भाषी जनता का सर्वाधिक पसंदीदा माध्यम था। केंद्र सरकार के विरुद्ध आंदोलनों की बाढ़ आ गई थी। बिहार, गुजरात के सघन छात्र आंदोलन, जबलपुर में जनता प्रत्याशी के रूप में शरद यादव की जीत, गुजरात की विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की पराजय और रेल मजदूरों की ऐतिहासिक हड़ताल के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री के चुनाव को निरस्त किया जाना वास्तव में क्रांतिकारी स्फुरण का वर्ष था। उसकी याद आते ही एक नया उमंग और जोश पैदा हो जाता है। इन सभी घटनाक्रमों की सच्चाई जानने व समीक्षा के लिए आमजन बीबीसी का ही सहारा लेते थे। इसी दौर में इमरजेंसी लगी। प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी गई। लोग अपने मूल अधिकारों के लिए अदालत नहीं जा सकते थे। मेरी गिरफ्तारी बलिया में हुई। मेरे बिस्तर में एक छोटा ट्रांजिस्टर था, जिस पर केवल रात का बीबीसी प्रसारण सुना जाता था। जेल के सभी राजनीतिक बंदी बैरक में जमा होते और मैं पूरी बुलेटिन चुपके से सभी बंदी साथियों को सुना देता था। रत्नाकर भारती और ओंकार नाथ श्रीवास्तव की वाकशैली और तथ्यों की सफाई से जेल में निराश-उदास बैठे बंदियों में उत्साह का संचार हो जाता था। सुब्रहमण्यम स्वामी के राज्यसभा में हंगामा खड़ा करने के बाद पलायन की तस्वीर, जार्ज फर्नाडीज और उनके साथियों की हथकड़ी और बेड़ी के साथ कमर में रस्सा बांधकर तीस हजारी कोर्ट में पेशी का वर्णन रोंगटे खड़े करने वाला था। उसके हफ्ते भर बाद कुछ महीनों के बेटे को गोद में लिए जार्ज की पत्नी लैला कबीर ने किस तरह बीबीसी कार्यालय में प्रवेश किया, इसका सीधा प्रसारण किसी मुर्दे को भी संघर्ष के लिए खड़ा कर सकता था। इमरजेंसी के दौर में युवा मन को बीबीसी ने इतना रोमांचित किया कि अन्याय के खिलाफ जीवन भर जेल में रहने का जज्बा लोगों में पैदा हुआ। ऐसे दौर में जब लगता था कि लोकतंत्र का चिराग बुझ जाएगा तब बीबीसी ने अपनी प्रखर शैली से आम जन में साहस और विश्वास पैदा किया। आज बीबीसी के हिंदी बुलेटिन को बंद किए जाने की घोषणा निराशा पैदा करती है। बीबीसी हिंदी बुलेटिन आज भी प्रासांगिक है। देश का बौद्धिक वर्ग, हिंदी सेवी, हिंदी जगत का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद सदस्य भारत सरकार को मजबूर करें और बीबीसी के प्रबंधतंत्र पर प्रभाव डालें कि हिंदी बुलेटिन बंद न हो। (लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)

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