Wednesday, October 10, 2012

कुछ मेरी कहानी जो अधूरी है..


रात के 12 बजे मैं घर चला गया. पहुँचते ही जान ने फ़ोन किया और पूछने लगा की आप ठीक से घर पहुँच गए, मैंने जवाब दिया - हाँ. अगले दिन सुबह सुबह उसका फ़ोन आया तो रोते- रोते कहने लगी मै अब मर जाउंगी मेरे मना करने पर भी मेरे घरवाले लड़के वालो को मुझे देखने के लिए बुला रहे है.. या तो मै उन लकड़े वालो को साफ़ साफ़ कह दू या मै जहर खा के अपना जीवन तुम्हरे प्यार मे ख़तम कर लू आप बताईये मेरे पास अब क्या कोई रास्ता बचा है क्या मरने के अलावा, मैं चुपचाप सुनता रहा. शाम को खबर आई की उसको लड़के वालो ने पसंद कर लिया है अब बात आगे बढाया जा सकता है ये सुनते ही मेरे पैरो के निचे से जमीन खिसक गयी अब मै क्या करू मिने झट से उसके भाई को फ़ोन मिलाया और साफ़ साफ़ कह दिया की उसकी शादी मेरे अलावा और किसी क साथ हुवा तो मी उसको (लड़के) को जान से मार दूंगा.. पर मुझे पता चला की उसका एक भाई बदमाश है और वो मुझे मरने के फ़िराक मे है पर आज तक मै उसके हाथ नहीं लगा पर इस बीच मुझे उस लकड़े का नौम्बर मिल गया को पटना के विमेंस कॉलेज मे वो लेक्चरर है मैंने उस लड़के को सब बात बता दिया पर लड़के ने मुझे आश्वासन दिया की मै शादी के लिए मना कर दूंगा पर साले ने पीछे से मुझे फसा दिया और उसके घर वालो को साफ़ साफ़ बता दिया पर इस बीच वहा से रिश्ता टूट गया पर आज ३ साल हो गया है मुझे से भी बात नहीं हो पा रहा है लड़की को घर मे हे बंधक बना क रखा है.. उसका भाई और उसका माई सब मेरे पीछे हाथ धो के पड़ा हुवा है.. मैंने हर संभव उनलोगों को मनाने का प्रयास किया पर अभी तक विफल रहा है अब मुझे समझ नहीं आ रहा है की मै अब क्या करूसीधा उसके घर जाऊ या कुछ और करू, अगर हम सीधा उसके घर पहूचा तो मेरे मरने का दिन वही होगा और वो लोग मुझे जिंदा 
नहीं छोरेगा..


अरबिंद झा 

Monday, October 8, 2012

ये पत्रकारिता है या कुछ और ...


क्या किसी भी पत्रकार भाई (मित्र) को अगर उनके संस्थान की बुराई करे तो क्या वो उनपर पर्दा डाले या सचाई बयां करे या वो रोजी रोटी को दुहाई दे के इस पे पर्दा नहीं दाल रहा है या वो पत्रकारिता को नहीं मार रहा है, अगर वो रोजी रोटी के का दुहाई दे तो क्या उसको किसी भी राजनेता या अफसरशाही को बुरा कहने का हक है क्या? जो अपने संस्थान से नहीं लड़ सकता वो क्या खाक अपने कर्तव्यों का निरबाह करेगा जनता के लिए, ये सब क्या फिर झूठ नज़र नहीं रहा है की मीडिया लोकतंत्रत का चौथा स्तंभ है ... ऐसे मे पत्रकारों को आप क्या कहेंगे की वो उसी सिस्टम हिस्सा हो के रह गया है या वो उस से कभी ऊपर भी उठेगा...

आज के दौर मे पत्रकार को सबसे दमदार हथियार बना चूका है ये राजनितिक दल, आखिर ये पत्रकार किउ किसी भी राजनितिक दल के साथ चले ये किउ नहीं जनता के साथ चलता है, अगर ये राजनितिक दलों के साथ ही चलना पसंद करता है तो हम इसे फिर चौथा स्तंभ किउ कहते है.., किउ हम उसे पत्रकारिता का दलाल कहे या लोकतंत्र का हत्यारा..

आज के पत्रकार कई मामलो मे फसा हुवा है कही ये ब्लैक मैलिंग, फिरोती तो कही पेड न्यूज़ मे ये सब पत्रकार फसा हुवा है जो इनको नहीं अपना रहा है उसको मजबूरी के तहत या किसी जालसाजी के तहत कानून के चक्कर मे फसाया जा रहा है वैसे इन पत्रकारों को संख्या बहूत ही कम है...

अगर कोई पत्रकार रोजी रोटी के चक्कर मे अगर वो सचाई से भागे तो उसको पत्रकारिता छोर देना चहिये वरना वो खुद का और समाज का बहूत ही बुरा कर रहा है.. अगर कोई भी पत्रकार अगर सचाई से नहीं लिखते है तो उसको पत्रकार कहलाने का कोई हक नहीं है... जहा आप काम कर रहे हो वही पर आपकी आवाज बुलंद नहीं है वही पर आपके आवाज को दबाया जा रहा है तो आप खाक निशपक्छ हो के लिखोगे, आप के लिखावट मे भी वो साफ़ झलकेगा की आप निशपक्छ नहीं हो... अगर किसी भी पत्रकार भाई को नौकरी की चिंता है तो वो पत्रकारिता छोर के किसी और धंधे मे वो अपना किस्मत अजमाए वहा भी अगर वो निशपक्छ नहीं रहा तो वो वहा भी तरक्की नहीं कर सकेगा..
पत्रकार को हिंदुस्तान मे सब उचे दर्जे से देखते है पर कुछ पत्रकार ने इसे सबसे नीचे पाईदान  मे रख दिया है...

अरबिंद झा 
arbindjha@gmail.com

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप बीते 20 साल से सत्ता का बनवा...