Tuesday, November 23, 2010

Bihar kae count down START..........

बिहार विधानसभा के सभी 243 सीटों एवं बांका लोकसभा की एक सीट के लिए हुए उपचुनाव के मतगणना का काम कड़ी सुरक्षा के बीच बुधवार की सुबह आठ बजे शुरू हो जाएगा।
बिहार के अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कुमार अंशुमाली ने बताया कि सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों के लिए कल होने वाली मतगणना के पारदर्शी और व्यापक व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि प्रदेश की 243 विधानसभा सीटों के लिए बनाए गए सभी 42 मतगणना केंद्र आमतौर पर जिला मुख्यालयों में हैं। कल सुबह आठ बजे से कड़ी सुरक्षा के बीच मतगणना का काम शुरू हो जाएगा।
अंशुमाली ने बताया कि मतगणना केंद्रों पर सभी विधानसभा सीटों के लिए अलग-अलग मतगणना हाल तथा प्रत्येक हाल में 14 मतगणना टेबिलों की व्यवस्था की गई है।
वज्र गृहों से कड़ी सुरक्षा के बीच ईवीएम को मतगणना हाल में लाकर उन्हें चुनाव पर्यवेक्षक सहित प्रत्याशियों के मतगणना एजेंटों की मौजूदगी में खोला जाएगा तथा प्रत्येक टेबिल पर एक-एक मोईक्रो आब्जर्वर की भी तैनाती की गई है।
हर राउंड की गिनती के बाद चुनाव पर्यवेक्षक किसी भी दो ईवीएम की कंट्रोल युनिट के आंकड़ों का मिलान करेंगे। हर राउंड की गिनती के बाद चुनाव पर्यवेक्षक आदेश पर ही आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे।
गत 21 अक्तूबर से शुरू बिहार विधानसभा का चुनाव कुल छह चरणों में गत 20 नवंबर को संपन्न हुआ था। सभी 243 सीटों की मतगणना कल होगी। इस चुनाव में कुल 3523 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया है, जिनमें 308 महिला उम्मीदवार भी शामिल है।
इस चुनाव में वैसे तो मुख्य रूप से मुकाबला राजग, राजद-लोजपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच रहा, लेकिन वामदालों के साथ कई निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतरे थे। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान अकेले अपने बलबूते चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए थे जबकि बसपा ने 239 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे तथा राकांपा ने 171 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे।
प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी राजद ने लोजपा के साथ तालमेल कर क्रमश: 168 और 75 सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे थे। वहीं प्रदेश में सत्ताधारी जदयू एवं भाजपा ने आपसी तालमेल के साथ क्रमश: 141 एवं 102 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे।
वहीं वामदलों के गठजोड़ में भाकपा ने 56, माकपा ने 30 और भाकपा माले ने 104 सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी उतारे थे, जबकि अन्य मान्यता प्राप्त दलों के प्रत्याशियों की संख्या 956 रही और 1342 निर्दलीय भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव की 42 सीटों के साथ ही गत एक नवंबर को बांका लोकसभा सीट का भी उपचुनाव हुआ था। इसके भी मतगणना का काम कल ही संपन्न होना है और इसके लिए भी सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह के निधन से खाली हुई सीट के लिए चुनावी मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उनकी पत्नी पुतुल सिंह और राजद उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय मंत्री जय प्रकाश नारायण यादव सहित कुल सात उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे थे। राजग और कांग्रेस ने पुतुल सिंह के समर्थन में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे।

उ. कोरियाई हमले के बाद द. कोरिया में अलर्ट, अमेरिका ने दी चेतावनी

सियोल. उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के एक द्वीप पर मंगलवार को तड़के भीषण बमबारी की है। स्थानीय मीडिया में आ रही ख़बरों के अनुसार इस बमबारी में दक्षिण कोरिया के कई आम नागरिकों सहित भारी संख्या में सैनिक भी हताहत हुए हैं। हालांकि दक्षिण कोरिया के सरकारी मीडिया ने 2 सैनिकों की मौत और दर्जनभर सैनिकों के घायल होने की पुष्टि की है।

दक्षिण कोरिया ने इस हमले की अधिकारिक तौर पर पुष्टि करते हुए कहा है कि उत्तर कोरिया ने  योंगपियॉंग द्वीप पर 200 से ज्यादा गोले दागे हैं। उत्तर पश्चिमी सीमा का यह यौंगपियोंग द्वीप उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच विवादित स्थल के तौर पर जाना जाता है।

दक्षिण कोरिया की चेतावनी

दक्षिण कोरिया ने उत्तरी कोरिया को चेतावनी दी है कि यदि अब फिर कोई बमबारी की गई तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति किम जांग येओल ने एक बयान में कहा कि अब ऐसी किसी हरकत को सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह विशुद्ध रूप से उकसाने वाली कार्रवाई है। बेकसूर नागरिकों पर बमों से हमले अक्षम्य हैं और भविष्य में इसका करारा जवाब दिया जाएगा।

अमेरिका ने कहा मदद करेंगे दक्षिण कोरिया की

अमेरिका ने भी चेतावनी दी है कि वह अपने साथी दक्षिण कोरिया की मदद के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। व्हाइट हाउस से जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया कि दक्षिण कोरिया में अभी भी 28,000 अमेरिकी सैनिक हैं और अमेरिका की पूरे मामले पर कड़ी नजर है। विज्ञप्ति में कहा गया कि अमेरिका हर हाल में क्षेत्रीय संतुलन बनाकर रखेगा।

सैन्य संघर्ष की स्थिति
दक्षिण कोरिया के सरकारी टीवी ने बताया कि दक्षिण कोरिया ने भी उत्तर कोरिया के इस हमले के जवाब में गोलीबारी की है। जानकारों के अनुसार इस घटना के बाद एक बार फिर दोनों देशों के बीच में सैन्य संघर्ष की स्थिति बन गई है।

उत्‍तर कोरिया ने पश्चिमी समुद्र की ओर एफ-16 लड़ाकू जेट विमानों से गोले दागे। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इन हमलों के बाद योंगपियांग द्वीप से आग की लपटें और धुएं का गुबार उठता दिखाई दे रहा है। दक्षिण कोरिया ने इन हमलों के बाद द्वीप पर रहने वाले अधिकतर लोगों को सुरक्षित बंकरों में पहुंचा दिया गया है। इस द्वीप पर करीब 1200-1300 लोग रहते हैं।

योनहाप न्‍यूज एजेंसी ने एक सैन्‍य अधिकारी के हवाले से बताया कि दक्षिण कोरिया के सैनिक द्वीप के समीप समुद्री सीमा में नियमित सैन्‍य अभ्‍यास कर रहे थे कि उत्‍तर कोरिया ने गोलीबारी शुरू कर दी। दक्षिण कोरिया के सैन्‍य प्रवक्‍ता कर्नल ली बंग वू ने कहा, ‘हमने उत्‍तर कोरिया की तरफ हमले के लिए तैयार अपनी सेना को और सतर्क रहने को कहा है।’

सालों से है विवाद

दोनों पड़ोसी देशों के बीच समुद्री सीमा को लेकर विवाद रहता है। हाल के वर्षों में यह विवाद कई बार हिंसक रूप ले चुका है। इससे पहले गत मार्च में दक्षिण कोरिया के जंगी जहाज चियोनान के डूबने से 49 नाविकों की मौत हो गई थी। जांच में पता चला कि उत्‍तर कोरिया का टॉरपीडो इस घटना के लिए जिम्‍मेदार था लेकिन प्‍योंगयांग ऐसी किसी घटना में शामिल होने से इंकार करता रहा है।

उत्‍तर कोरिया द्वारा नया यूरेनियम संवर्धन संयंत्र विकसित किए जाने की खबरों के दरम्‍यान दोनों देशों के बीच मौजूदा टकराव ने पड़ोसी देशों समेत विश्‍व बिरादरी को चिंता में डाल दिया है।
तस्‍वीरों में देखिए, द. कोरिया पर उत्‍तर कोरिया की गोलीबारी 

जनमत की ताकत


ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब सभी यह कहते थे कि भ्रष्टाचार अब भारत के सामाजिक-राजनीतिक वर्ग के लिए कोई समस्या नहीं रह गया है या अब उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। और कोई कहे न कहे, लेकिन कम से कम हमारे उभरते हुए मध्यवर्ग में तो यही कहा जाता था।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या अब इस धारणा में कोई बदलाव आया है। कोई इतना बड़ा बदलाव कि राजनीतिक दलों के आकाओं के लिए भ्रष्टाचार की अनदेखी करना मुश्किल हो जाए। उन्हें अपने नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने पर मजबूर होना पड़े। हाल ही में टीवी पर एक बहस में मैंने इसी बिंदु को रखा था।

मैं यह देखना चाहता था और इस बात का विश्लेषण करना चाहता था कि वास्तव में क्या बदलाव आया है। भ्रष्टाचार को लेकर यह रवैया क्या हमेशा से था और फर्क केवल इतना था कि राजनीतिक वर्ग केवल समय-समय पर ही उसे तवज्जो देता था और आम तौर पर उसे नजरअंदाज कर देता था।

मैं अपने पहले बिंदु को सामने रखता हूं। मैं सोचता हूं कि भ्रष्टाचार हमेशा से ही राजनेताओं की समस्या थी। मुझे अच्छी तरह याद है कि एक रिपोर्टर की हैसियत से जब मैं हवाला केस में दिल्ली की स्थानीय अदालतों में गया था तो मुझे इस बात का अहसास हुआ कि किस तरह महज एक डायरी पूरे देश के नेतृत्व को मुश्किल में डाल सकती है।

एक डायरी बाद में भी पाई गई, लेकिन वह इतनी सशक्त नहीं थी कि उसे सबूत के तौर पर अदालत में पेश किया जा सके। इस पूरे घटनाक्रम ने आम जनमानस के साथ ही मेरी धारणाओं का भी निर्माण किया। कांग्रेस को नरसिम्हाराव के नेतृत्व में चुनावी हार का सामना करना पड़ा था।

यही बात बोफोर्स मामले में भी कही जा सकती थी, जिसकी पूरी सच्चाई सामने आना अब भी बाकी है। लेकिन इतने सालों पहले आम जनमानस में भ्रष्टाचार का बोध इतना सशक्त हुआ करता था कि वह राजीव गांधी जैसे एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री को भी सत्ता से बेदखल किया जा सकता था। जबकि कई साल गुजरने और कई सरकारें बदल जाने के बाद राजीव गांधी को इस मामले में बेकसूर करार दे दिया गया था।

इस आधार पर मुझे लगता है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के मामले में उनकी टाइमिंग सबसे महत्वपूर्ण होती है और लोगों की प्रतिक्रियाएं भी इसी से निर्धारित होती हैं। समाज के एक बड़े तबके और खास तौर पर मध्य वर्ग, जो भारत की विकास यात्रा का सहभागी होने के लिए संघर्षरत है, को भ्रष्टाचार की खबरों से बहुत तकलीफ पहुंचती है।

जब उन्हें पता चलता है कि राजनेता दिन-ब-दिन और ज्यादा अमीर होते जा रहे हैं, जबकि उन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी चलाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है तो वे उनके प्रति गुस्से से भर जाते हैं। इसीलिए जब किसी राजनेता का नाम भ्रष्टाचार के मामले में सामने आता है तो आम जनमानस में उसके प्रति एक छवि या एक धारणा बन जाती है।

राजनेता भी इस बात को समझते हैं। उन्हें पता है कि जब तक किसी नेता को जांच के बाद भ्रष्टाचार के आरोप से क्लीन चिट मिलती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। उसकी छवि या उसकी साख पर बट्टा लग चुका होता है।

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इस तरह के ‘डैमेज कंट्रोल’ के लिए ही अशोक चव्हाण और सुरेश कलमाडी से इस्तीफा लिया था, अलबत्ता दोनों ही पाक-साफ होने का दावा कर रहे थे। निश्चित ही कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों पर जनमानस का दबाव महसूस कर रही थी।

अब मैं अपने दूसरे बिंदु पर आता हूं। उभरते जनाक्रोश के दबाव के चलते जहां राजनेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, वहीं बहुतों को लगता है कि नौकरशाह इस मामले में साफ-साफ बच निकलते हैं, जबकि यह धारणा आम है कि देश को नेता नहीं नौकरशाह चलाते हैं।

नौकरशाह प्रशासन की स्थायी मशीनरी हैं, जबकि नेता तो बस समय-समय पर एक निश्चित कार्यकाल के लिए ही सत्ता का उपभोग करते हैं। फिर भ्रष्टाचार के लिए नौकरशाहों को भी समान रूप से जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाता? क्या इसलिए, क्योंकि वे सत्ता के प्रत्यक्ष केंद्र नहीं होते? यदि हम गौर से देखें तो पाएंगे कि भ्रष्टाचार से लोगों का पाला सबसे पहले बाबू तंत्र के माध्यम से ही पड़ता है।

काम कराने के लिए घूस लेने वालों की पहली पायदान पर होते हैं क्लर्क या हवलदार। इस मायने में एक आम भारतीय का वास्ता अमूमन राजनेताओं से नहीं पड़ता। टीवी पर कुछ समय पूर्व प्रसारित होने वाले ‘ऑफिस-ऑफिस’ नामक एक लोकप्रिय धारावाहिक में यही दिखाया गया था।

क्या हमने कभी नौकरशाही के विरुद्ध आमजन की धारणाओं का आकलन करने की कोशिश की है? या क्या हम केवल इसीलिए इसकी जरूरत नहीं महसूस करते, क्योंकि नौकरशाहों की नियुक्ति जनमत के आधार पर नहीं होती?

अंतिम विश्लेषण में यह कहा जा सकता है कि जनता के मूड का राजनीतिक निर्णयकर्ताओं के मन पर असर होता है। जनमत किस दिशा में झुक रहा है और आम धारणा क्या बन रही है, वे इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते। वे जनता के रुझान की परवाह करते हैं।

देश के ‘मुसद्दीलाल’ (टीवी सीरियल ‘ऑफिस-ऑफिस’ का एक पात्र, जो कि आम आदमी का प्रतीक है) राजनेताओं के लिए उतने गैरजरूरी नहीं होते, जितना वे उन्हें आम तौर पर समझते हैं। 15 अगस्त पर लाल किले के प्राचीर से कितने ही प्रधानमंत्रियों ने भाषण दिए हैं और भ्रष्टाचार से लड़ने का आह्वान किया है। ये बातें कितने ही सम्मेलनों और सेमिनारों में भी दोहराई जा चुकी हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी रहता है और लोग भी आखिरकार समझ जाते हैं कि बातें महज बातें हैं। लेकिन लोगों को यह बात याद रखनी चाहिए कि राजनेता उनकी धारणाओं का दबाव महसूस करते हैं। भारतवासियो, कृपया इस बात को न भूलें कि अगर आप चाहें तो तंत्र को बदल सकते हैं।

यदि आप चाहें तो सरकार बदल सकते हैं। मुख्यमंत्रियों को रुखसत कर सकते हैं। कैबिनेट मंत्रियों को बेदखल कर सकते हैं और सत्ता के ढांचे में बदलाव ला सकते हैं। यदि देश के अहम फैसले लेने वाले नेताओं के मन में जनता के नकार की ताकत के प्रति डर बना रहेगा तो वे जनमत की उपेक्षा कभी नहीं कर पाएंगे।

लेकिन यहां यह कहने की भी जरूरत है कि हमें पहले खुद को बदलना होगा। हम कितनी जल्दी अपनी छोटी से छोटी जरूरतों को पूरी करने के लिए घूस दे डालते हैं और इस तरह भ्रष्टाचार की बुनियादी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं।

इसके बावजूद हमें लगता है कि सिस्टम पर सवाल खड़े करना ‘फैशनेबल’ है। हमें अपनी सरकार से जवाब पूछने का पूरा-पूरा अधिकार है, लेकिन हमें खुद को भी सवालों के घेरे में खड़े करना आना चाहिए। - लेखक टीवी एंकर एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप बीते 20 साल से सत्ता का बनवा...