Monday, February 13, 2012

सोनी सोरी का पत्र और उसके नौ सवाल...

सोनी सोरी
सोनी सोरी 
(सोनी सोरी ने तीन फरवरी को एक खुला पत्र लिखकर अपनी आपबीती और दर्द को लोगों के सामने रखा है. सोनी सोरी के इस स्वहस्ताक्षरित पत्र को हम यहाँ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं. इस पत्र में सोनी सोरी के उत्पीड़न की दास्तां देहलाती भी है .)


आप सब सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवी संगठन, मानवाधिकार महिला आयोग, देशवासियों से एक आदिवासी पीड़ित लाचार महिला अपने ऊपर हुए अत्याचारों का जवाब मांग रही है और जानना चाहती है कि –
(1) मुझे करंट शार्ट देने, मुझे कपड़े उतारकर नंगा करने या मेरे गुप्तांगों में बेदर्दी के साथ कंकड-गिट्टी डालने से क्या नक्सलवाद की समस्या खत्म हो जायेगी. हम औरतों के साथ ऐसा अत्याचार क्यों, आप सब देशवासियों से जानना है.
(2) जब मेरे कपड़े उतारे जा रहे थे उस वक्त ऐसा लग रहा था कोई आये और मुझे बचा ले, पर ऐसा नहीं हुआ. महाभारत में द्रौपदी ने अपने चीर हरण के वक्त कृष्णजी को पुकारकर अपनी लज्जा को बचा ली. मैं किसे पुकारती, मुझे तो कोर्ट-न्यायालय द्वारा इनके हाथो में सौंपा गया था. ये नहीं कहूँगी कि मेरी लज्जा को बचा लो, अब मेरे पास बचा ही क्या है? हाँ, आप सबसे जानना चाहूंगी कि मुझे ऐसी प्रताडना क्यों दी गयी.
(3) पुलिस आफिसर अंकित गर्ग एसपी मुझे नंगा करके ये कहता है कि 'तुम रंडी औरत हो, मादर सोद गोंड इस शरीर का सौदा नक्सली लीडरों से करती हो. वे तुम्हारे घर में रात-दिन आते हैं, हमें सब पता है. तुम एक अच्छी शिक्षिका होने का दावा करती हो, दिल्ली जाकर भी ये सब कर्म करती हो. तुम्हारी औकात ही क्या है, तुम एक मामूली सी औरत जिसका साथ इतने बड़े-बड़े लोग देंगे.'
आखिर पुलिस प्रशासन के आफिसर ने ऐसा क्यों कहा. इतिहास गवाह है कि देश की लड़ाई हो या कोई भी संकट, नारियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी तो क्या उन्होंने खुद का सौदा किया था. इंदिरा गांधी ने देश की प्रधानमंत्री बनकर देश को चलाया तो क्या उन्होंने खुद का सौदा किया. आज जो महिलाएं हर कार्य क्षेत्र में आगे होकर कार्य कर रही हैं क्या वो भी अपना सौदा कर रही हैं. हमारे देशवासी तो एक दूसरे की मदद-एकता से जुड़े हैं, फिर हमारी मदद कोई क्यों नहीं कर सकता. आप सभी से इस बात का जवाब जानना चाहती हूँ.
(4) संसार की श्रृष्टि किसने की. बलशाली, बुद्धिमान योधाओं का जन्म किसने दिया है. यदि औरत जाति न होती तो क्या देश की आजादी संभव थी. मैं भी तो एक औरत ही हूँ, फिर मेरे साथ ऐसा क्यों किया गया.
(5) मेरी शिक्षा को भी गाली दी गयी. मैंने एक गांधीवादी स्कूल माता रुक्मणि कन्या आश्रम डिमरापाल में शिक्षा प्राप्त की है. मुझे अपनी शिक्षा की ताकत पर पूरा विश्वास है, जिससे नक्सली क्षेत्र हो या कोई और समस्या फिर भी शिक्षा की ताकत से सामना कर सकती हूँ. मैंने हमेशा शिक्षा को वर्दी और कलम को हथियार माना है. फिर भी नक्सली समर्थक कहकर मुझे जेल में डाल रखा है. बापूजी के भी तो ये ही दो हथियार थे. आज महात्मा गांधी जीवित होते तो क्या उन्हें भी नक्सल समर्थक कहकर जेल में डाल दिया जाता. आप सभी से इसका जवाब चाहिए.
(6) ग्रामीण आदिवासियों को ही नक्सल समर्थक कहकर फर्जी केस बनाकर जेलों में क्यों डाला जा रहा है. और लोग भी तो नक्सल समर्थक हो सकते हैं. क्या इसलिए क्योंकि ये लोग अशिक्षित हैं, सीधे-सादे जंगलों में झोपडियां बनाकर रहते हैं या इनके पास धन नहीं है या फिरअत्याचार सहने की क्षमता है. आखिर क्यों?
(7) हम आदिवासियों को अनेक तरह की यातनाएं देकर, नक्सल समर्थक, फर्जी केस बनाकर, एक-दो केसों के लिये भी ५-6 वर्ष से जेलों में रखा जा रहा है. न कोई फ़ैसला, न कोई जमानत, न ही रिहाई. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. क्या हम आदिवासियों के पास सरकार से लड़ने की क्षमता नहीं है या सरकार आदिवासियों के साथ नहीं है. या फिर ये लोग बड़े नेताओं के बेटा-बेटी, रिश्तेदार नहीं हैं इसलिए. कब तक आदिवासियों का शोषण होता रहेगा, आखिर कब तक. मैं आप सभी देशवासियों से पूछ रही हूँ, जवाब दीजिये.
(8) जगदलपुर, दंतेवाड़ा जेलों में 16 वर्ष की उम्र में युवक-युवतियों को लाया गया, वो अब लगभग २०-21 वर्ष के हो रहे हैं. फिर भी इन लोगों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है. यदि कुछ वर्ष बाद इनकी सुनवाई भी होती है तो इनका भविष्य कैसा होगा. हम आदिवासियों के साथ ऐसा जुल्म क्यों? आप सब सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी संगठन और देशवासी सोचियेगा.
(9) नक्सलियों ने मेरे पिता के घर को लूट लिया और मेरे पिता के पैर में गोली मारकर उन्हें विकलांग बना दिया. पुलिस मुखबिर के नाम पर उनके साथ ऐसा किया गया. मेरे पिता के गांव बड़े बेडमा से लगभग 20-25 लोगों को नक्सली समर्थक कहकर जेल में डाला गया है, जिसकी सजा नक्सलियों ने मेरे पिता को दी. मुझे आप सबसे जानना है कि इसका जिम्मेदार कौन है? सरकार, पुलिस प्रशासन या मेरे पिता. आज तक मेरे पिता को किसी तरह का कोई सहारा नहीं दिया गया, न ही उनकी मदद की गयी. उल्टा उनकी बेटी को पुलिस प्रशासन अपराधी बनाने की कोशिश कर रही है. मेरे पीती नेता होते तो शायद उन्हें मदद मिलती, वे ग्रामीण और एक आदिवासी हैं. फिर सरकार आदिवासियों के लिये क्यों कुछ करेगी.
छत्तीसगढ़ मे नारी प्रताड़ना से जूझती 
स्व हस्ताक्षरित 
श्रीमती सोनी सोरी (सोढी)


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