Wednesday, January 16, 2013

CNN-IBN में पत्रकार सुहासिनी हैदर द्वारा नरेंद्र मोदी जी का लिया गया इंटरव्यू


सुहासिनी – मोदी जी कल हम आपके गाँव वडनगर से होके आये हैं और हमें वहाँ आपके बचपन से लेके बड़े होने तक कि बहुत सारी घटनाएं पता चली ,जैसे हमें वहाँ गाँव के लोगों से पता लगा कि आपको नदी में तैराकी करने का बहुत शौक था ,हमें लोगों ने बताया कि एक बारी आप एक मगरमच्छ भी पकड़कर ले आये थे आदि आदि ,आपकी यादें क्या हैं वडनगर की ??

नरेंद्र मोदी – दरअसल मैं मेरे गाँव के दिनों में एक बहुत अच्छा debater ( बहस एवं तर्क करने वाला ) था , इसके लिए मैं पढाई बहुत करता था , सारा-२ दिन लाइब्रेरी में किताबें पढता था , लेकिन एक बात मुझे अच्छे से याद है कि जब भी कोई प्राकृतिक आपदा होती थी तो पता नहीं क्यों मैं उसी समय काम में लग जाता था चाहे वो विपत्ति मेरे गाँव से 200 km दूर ही क्यों ना आई हो , और मुझे याद है 1962 में जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था तब मैं छोटा बच्चा था उस समय जब सेना के जवान मेहसाणा रेलवे स्टेशन के पास से गुजरते थे तो मैं उनको चाय-बिस्कुट इत्यादि देने में असीम आनंद का अनुभव करता था ,ये वाले जो पल हैं इन्हें मैं कभी नहीं भूल पाता हूँ क्योंकि बहुत अच्छा लगता है कि बचपन में भी देश कि सेवा करने का एक छोटा सा मौका मुझे मिला था

सुहासिनी – आपने RSS ( संघ ) को क्यों ज्वाइन किया ??

नरेंद्र मोदी – संघ से मेरा नाता मेरे बचपन से ही शुरू हो गया था , कब शुरू हुआ ये मुझे ध्यान नहीं लेकिन संघ कि एक पद्धति रहती है कि वे आपको बहुत प्रेम देते हैं , बहुत अपनापन देते हैं और जीवनभर का आपसे रिश्ता बना लेते हैं और उसे निभाते भी हैं और उसके कारण मैं तो खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि संघ के बहुत से महान तपस्वी जीवन जीने वाले व्यक्तियों का मेरे सिर पर हाथ रहा है और मुझे उनके आशीर्वाद मिले हैं

सुहासिनी –  जब आप पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तो आपके पास सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं था , आपने फिर ये सरकार चलाना कहाँ से सीखा ??

नरेंद्र मोदी – ये बात सही है कि जब मैं पहली बार मुख्यमंत्री बना तो उस समय तक मैंने कोई चुनाव नहीं लड़ा था , यहाँ तक कि स्कुल में कभी मोनिटर का चुनाव तक नहीं लड़ा था , मेरी ये चुनाव वगैरह लड़ने में कोई रूचि नहीं होती थी क्योंकि मैं जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठन से जुड़ा इंसान रहा हूँ , लेकिन जब बाद में ये सरकार चलाने का काम मेरे जिम्मे दिया गया तो मैंने बस सीखना शुरू कर दिया और सीख गया

सुहासिनी –  आपका कोई ऐसा फैसला है जो आप बदलना चाहें या आपको लगे कि ये फैसला सफल नहीं हो पाया ??

नरेंद्र मोदी –  पहली बात है कि कोई भी व्यक्ति perfect नहीं होता है ,अगर मैं भी ये कहूँ कि मैं बिलकुल perfect हूँ तो मेरे जैसा मुर्ख कोई दूसरा नहीं होगा , मुझमें भी बहुत सारी कमियाँ हैं और मेरी सबसे बड़ी कमी ये है कि मुझे खुद कि कमियाँ कम दिखती हैं ,कई बार मेरे साथी लोग दिखाते हैं तो मेरे ध्यान में आता है कि हाँ भई यहाँ पर थोड़ी कमी रह गई है और फिर मैं उनको ठीक कर लेता हूँ , जहाँ तक बात मेरे किसी फैसले कि है तो मेरा तो वहाँ भी यही मानना है कि अगर मेरे किसी फैसले में भी कोई कमी रह गई हो तो मुझे उसको भी ठीक करना चाहिए क्योंकि आखिर लोकतंत्र ही एक ऐसी ताकत है जो कि आपको आपकी गलती को ठीक करने का अवसर देता है

सुहासिनी –  एक छोटे से गाँव वडनगर से गुजरात के गांधीनगर पर विराजमान होने कि ये जो आपकी पूरी यात्रा रही है ये काफी ऐतिहासिक और आश्चर्यजनक है ,आपको क्या लगता है ??

नरेंद्र मोदी – मेरे मन में कभी भी ये रहा ही नहीं कि मुझे कुछ बनना है ,हमेशा से सिर्फ एक ही बात रही है कि मुझे कुछ करना है

सुहासिनी –  IT MEANS YOU DON’T HAVE ANY AMBITIONS

नरेंद्र मोदी –  YES I DON’T HAVE ANY AMBITION , I SIMPLY HAVE A MISSION and I AM COMMITTED TO THAT MISSION

सुहासिनी – गुजरात में लोग आपको आपकी पार्टी बीजेपी से भी बड़ा मानते हैं , आपके विरोधी कहते हैं कि गुजरात में जितने भी चुनाव होते हैं सबमें हर बार जीत नरेंद्र मोदी कि वजह से ही होती है , बीजेपी का उसमें कुछ रोल नहीं होता

नरेंद्र मोदी – देखिये कुछ लोग जब किसी चीज को स्वीकार नहीं कर पाते हैं जैसे कि मेरे बारे में इतना नेगेटिव बोला गया ,इतनी झूठी बातें मेरे बारे में फैलाई गई , मेरे खिलाफ सब कुछ करके देख चुके उसके बावजूद भी जब मुझे हिला तक नहीं सके तो फिर उनका अहंकार उन्हें सच्चाई स्वीकार नहीं करने देता ,वे स्वीकार करते भी हैं तो उसमें किन्तु,परन्तु लगाकर और इसीलिए गुजरात में बीजेपी कि विजय को जब वे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं तो ये सब विवाद डालने कि तरकीबें अपनाते हैं कि भई ये तो मोदी कि जीत है ,बीजेपी कि नहीं है

सुहासिनी –  हमनें अहमदाबाद कि रैली में देखा कि आपने अपना भाषण लाल कृष्ण आडवाणी के भाषण के बाद दिया ,लोगों ने हमें बताया कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि गुजरात में जनता सिर्फ आपको सुनने के लिए आती है और बीजेपी को डर था कि आपके आडवाणी से पहले भाषण देने के बाद जनता वहाँ से चली जायेगी और वो अडवानी जी का भाषण नहीं सुनेगी ,तो क्या ये साबित नहीं करता कि आज आपका कद आपकी खुद कि पार्टी बीजेपी से भी बड़ा हो चुका है ??

नरेंद्र मोदी –  ऐसी कोई बात नहीं है ,जिस रैली कि आप बात कर रही हैं उसमें दरअसल तय ये हुआ था कि आडवाणी जी मुझसे पहले बोलेंगे और उसके बाद मैं उन विषयों पर विस्तार से बोलूँगा जिन पर आडवाणी जी संक्षेप में बोलें हैं

सुहासिनी – लेकिन आज अगर देश में कोई नेता प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कोंग्रेस के खिलाफ सबसे ज्यादा बोलता है तो वो आप हैं ,ऐसा क्यों ??

नरेंद्र मोदी –  मैं हैरान हूँ कि हमारा ये ऐसा-कैसा लोकतंत्र है कि मोदी को तो जितनी गालियाँ देनी हों दी जा सकती हैं लेकिन अगर मैं कोंग्रेस या मनमोहन सिंह पर कोई सवाल भी उठाऊं तो आप मीडियावालों को उसमें भी परेशानी है , कमाल है

सुहासिनी – क्या बीजेपी आज भी हिंदुत्व के मुद्दे को अपने साथ रखती है ??

नरेंद्र मोदी – हिंदुत्व के बारे में आप जानती क्या हैं

सुहासिनी – चलिए छोडिये इस सवाल को ,दूसरी बात करते हैं

नरेंद्र मोदी – नहीं नहीं ,मुझे एक बारी बताइए कि क्या आपको मालुम भी है कि हिंदुत्व है क्या

सुहासिनी – मैंने इसलिए पूछा क्योंकि बीजेपी आज भी राम मंदिर के बारे में बोलती है

नरेंद्र मोदी – राम मंदिर कार्यक्रम है या हिंदुत्व है ,मुझे पहले ये समझा दीजिए

सुहासिनी –  ये हिंदुत्व का ही तो हिस्सा है वरना आप बता दीजिए कि क्या है हिंदुत्व

नरेंद्र मोदी –  मैं बताता हूँ आपको कि क्या है हिंदुत्व , हिंदुत्व कहता है ‘’ सर्वधर्म समभाव ‘’ यानी सभी धर्मों का सम्मान हो और सभी धर्मों के प्रति हमारे भीतर अच्छे और समान भाव हों , जरा आप बताएंगी कि इस देश में कौन है जो इस बात का विरोध करेगा, हिंदुत्व कहता है ‘’ एकमसत् विप्राः बहुधा वधंती ‘’ यानी सत्य एक है अलग-२ लोग उसको अलग-२ प्रकार से कहते हैं चाहे वो गीता के जरिये कहें या कुरआन के जरिये या महाभारत के जरिये या रामायण इत्यादि के जरिये , हिंदुत्व कहता है ‘’ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्ते मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।। ‘’ यानी सभी सुखी हों सबको आरोग्य मिले सबको अच्छी शिक्षा-दीक्षा मिले ये कहता है हिंदुत्व , है कोई इस देश में जो इसका विरोध करेगा

सुहासिनी – आप वाईब्रेंट गुजरात के बारे में बोलते हैं लेकिन आपके विरोधी कोंग्रेस के लोग कहते हैं कि आप पांच करोड़ गुजरातियों कि जगह सिर्फ पांच करोड़पति गुजराती कि बात करते हैं

नरेंद्र मोदी – मैं वाईब्रेंट गुजरात कि समिट 2 साल में सिर्फ 1 बार करता हूँ और वो भी सिर्फ 2 दिनों के लिए लेकिन मैं हर साल एक कृषि महोत्सव करता हूँ जो 30 दिन का होता है , वाईब्रेंट गुजरात कि समिट में मेरे एक हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारी नहीं लगते हैं लेकिन जो कृषि महोत्सव मैं करता हूँ उसमें मैं गाँवों में और खेतों में अपनी पूरी कि पूरी सरकार को लेके जाता हूँ जिसमें कि मेरी सरकार के 1 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारी शामिल होते हैं , मैं और मेरे सभी साथी महीने भर मई-जून कि भरी गर्मी में गाँव में रहते हैं और अभियान चलाते हैं ,क्या ये मैं मेरे पांच करोड़ गुजरातियों के लिए नहीं करता हूँ , 13-14-15 जून को जहाँ 44-45 डिग्री का Temperature होता है वहाँ मेरी सरकार के सभी मंत्री ,मेरी सरकार के सभी IAS-IPS Officers और मैं गांव में रहते हैं और उन तीनों दिन घर-२ जाकर बच्चों को स्कुल में लेकर जाते हैं ,क्या ये मैं मेरे पांच करोड़ गुजरातियों के लिए करता हूँ कि नहीं करता हूँ , मैं पूरे गुजरात के अंदर चेक डैम का अभियान चला रहा हूँ अब तक मैंने 3 लाख चेक डैम बनाएँ हैं ,पूरे देश में पानी का स्तर नीचे जा रहा है लेकिन मेरे यहाँ मैं पानी का स्तर ऊपर ला रहा हूँ ,तो क्या मैं ये मेरे पांच करोड़ गुजरातियों के लिए कर रहा हूँ के नहीं कर रहा हूँ , जो वाईब्रेंट गुजरात समिट में 2 साल में 1 बार और वो भी सिर्फ दो दिन के लिए करता हूँ उस पर मेरी बुराई करने के लिए तो आपके पास तरह-२ के शब्द हैं मुहावरें हैं लेकिन हर वर्ष एक महीने तक गाँव-२ जाकर भरी गर्मी में मिटटी खाने वाली मेरी पूरी सरकार जो पसीना बहाती है राज्य कि भलाई के लिए उसकी प्रशंसा करने के लिए आपके पास दो शब्द तक नहीं हैं ,आपके मीडिया कि इसी दिशा के कारण मुझे कहना पड़ता है कि इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि सही काम को आप लोग दिखाते नहीं और झूठ को दस-२ दिन तक चलाते रहते हो

सुहासिनी –  आपने गुजरात का इतना विकास किया है ,उसे आज नई ऊचाइयों पर पहुंचा दिया है लेकिन 2002 दंगों को लेकर आप पर आरोप लगते हैं कि आपने हिंदुओं पर एक्शन नहीं होने दिया लेकिन अब इस सबको दस साल हो चुके हैं ,आज आपको देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखा जा रहा है तो क्या अब हम मान सकते हैं कि अगर दौबारा गुजरात में कभी वैसी ही दंगों वाली स्तिथि बनी तो अबकी बार आपका उन्हें हैंडल करने का तरीका अलग होगा ??

नरेंद्र मोदी –आप गुजरात का अच्छा सोचिये ना बुरा क्यों सोचती हैं

सुहासिनी – फिर भी बताइए तो अगर दौबारा वैसा हुआ तो आप थोड़ा अलग तरह से उसे हैंडल करेंगे या नहीं

नरेंद्र मोदी – क्या फिर भी ,आप क्यों ऐसा सोचती हैं कि दौबारा वैसा होना चाहिए ,आपसे गुजरात का अच्छा क्यों नहीं सोचा जाता ,आप अच्छा सोचिये ना गुजरात का

सुहासिनी –  हम तो अच्छा ही सोचते हैं गुजरात का

नरेंद्र मोदी – बस तो फिर सब अच्छा ही होगा

http://www.youtube.com/watch?v=IvoNQAljll4

Thursday, January 3, 2013

मतदाता के महात्मा मोदी


ईमानदार से कहें तो अपने मुंह से एक दुर्वचन निकलने से रोक सका। मोदी की जीत के बाद टीवी पर एक विशेषज्ञ कह रहा था कि नरेंद्र मोदी और उनकी चुनावी जीत भारत के संविधान के खिलाफ है। दूसरा कह रहा था कि गुजरात का फैसला भारत की अतंरात्मा के विरुद्ध है और इसकी वजह सेआइडिया ऑफ इंडियाकिस तरह खतरे में है। हमेशा से मेरी सोच रही कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान, लोकतंत्र और 'आइडिया ऑफ इंडिया ' का उत्सव है। तो यह सब बेवकूफी भरी बाते किसलिए? जितने भी समाचार चैनलों को देखा मुझे बड़ी सहजता से यह अहसास हो गया कि ये लोग मोदी की जीत से बहुत दुखी हैं और अगर मोदी हारते तो उन्हें ज्यादा अच्छा लगता। मैने यह भी महसूस किया कि वे मोदी से तर्कहीन तरीके से नफरत करते हैं। उदाहरण के तौर पर, एक व्यक्ति तो इसी बात पर गया कि मोदी बुरे हैं क्योंकि वह व्यक्तिवाद को प्रोत्साहित करते हैं जो उनके ही इर्द-गिर्द घूमता है।

इत्तेफाक से उस टीवी पैनल में किसी ने यह नहीं कहा कि सरकार ने 60 से अधिक कल्याणकारी योजनाओं के नाम गांधी परिवार के नामों पर रख रखे हैं। यह व्यक्तिवाद नहीं तो और क्या है? किसी दूसरे चैनल पर किसी और ने कहा कि मोदी का रवैया तानाशाही है और उनके अंतर्गत तो किसी का नेतृत्व पनप सकता है किसी की आवाज को बल मिल सकता है। फिर मैने सोचा, कांग्रेस शासित किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री क्या अपने केंद्रीय नेतृत्व के फैसले को अनसुना कर सकता है? अगर ऐसा होता है तो उसका भविष्य क्या होगा? इस मामले में मुझे ईमानदारी से लगता है कि कांग्रेस के युवा नेताओं में सचिन पायलट से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और मिलिंद देवड़ा तक में देश संभालने के लिए राहुल गांधी की तुलना में बेहतर क्षमता है। लेकिन किसी भी टीवी चैनल पर एक भी पैनलिस्ट ने इस बाबत कभी कुछ नहीं कहा।

चलिए कुछ मुख्य बिंदुओं पर आते हैं: पहली बात यह है कि ज्यादातर अंग्रेजीदां मीडिया वाले नरेंद्र मोदी से नफरत करते हैं। चलिए ये भी ठीक है। पत्रकारों को भी किसी से नफरत करने का अधिकार है। लेकिन मैं सोच रहा था कि जिस तरह से कई वरिष्ठ पत्रकार शिकायत कर रहे थे, आखिर मोदी की जीत भारत को कैसे नष्ट कर सकती है। तो मैंने अपने सहयोगियों से पूछा कि वे ऐसी वजहों को ढूंढ़े जिसके कारण अंग्रेजी पत्रकार मोदी से नफरत करते हैं। नतीजे दिलचस्प थे। पहला कारण यह था कि मोदी मुस्लिम विरोधी और सांप्रदायिक है। साथ ही साथ यह भी कि मोदी ने 2002 के दंगों के लिए कभी माफी नहीं मांगी है। दूसरा कारण यह कि मोदी केवल खुद को पेश करने में रुचि रखते हैं। तीसरा कारण यह है कि वह तानाशाह और फासीवादी है। चौथा कारण यह है कि पत्रकार दावा करते कि विकसित गुजरात का उनका दावा खोखला है।

जरा इसकी विडंबना देखिए, मोदी का अभियान पहचान पर आधारित हो तो वे फासीवादी और सांप्रदायिक शैतान है, अगर वे विकास के ट्रैक रिकॉर्ड पर अभियान चलाते हैं तो ऐसे आंकड़ों का अंबार लगा दिया जाता है कि अन्य राज्यों ने गुजरात की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है या फिर गुजरात का सामाजिक संकेतकों पर प्रदर्शन बेहद बुरा रहा है। अब यह समझ से बाहर है। कुछ समय पहले तक मैंने किसी भी प्रमुख पत्रकार या मीडिया आउटलेट को गुजरात में सामाजिक विकास के तथाकथित दयनीय सामाजिक संकेतकों की ओर इशारा करते हुए देखा सुना हो, याद नहीं है। लेकिन जैसे ही मोदी ने घोषणा कि कि पूरे चुनाव अभियान का आधार अपने सुशासन और विकास के ट्रैक रिकॉर्ड को बनाएंगे, वहां सैकड़ों कहानियां फैलाई जाने लगी कि किस तरह उन्होंने गुजरातियों का उतना विकास नहीं किया है जितना कि वे दावा कर रहे हैं। मेरे सहयोगी सुतनु ने मुझे इंडियन एक्सप्रेसमें प्रताप भानु मेहता का लिखा लेख भेजा। मैंने उसे पढ़ा तो एहसास हुआ कि इस बारे में अचरज करनेवाला मैं अकेला नहीं हूं कि अंग्रेजी मीडिया मोदी से अतार्किक तरीके से नफरत क्यों करता है। सच यह है कि यह भारत और इंडिया के बीच की लड़ाई है। मेरे अनुसार नरेंद्र मोदी भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि अंग्रेजी मीडिया इंडिया का। मैं यह क्यों कह रहा हूं।

सीधी सी बात यही है कि अंग्रेजी मीडिया अब भी पुराने सामंती सोच का हामी है जहां कुछ लोगों का ही दावा है कि सिर्फ उन्हें ही पता है कि भारत और भारतीयों दोनों के लिए क्या सबसे बेहतर है। दूसरी ओर, मोदी दूसरे इंडिया-भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अंग्रेजी मीडिया के जकड़ भरे एकाधिकार और जानकारी और सूचना तथा संदेशों पर उनके धर्मनिरपेक्ष योद्धाओं की हरकतों से निराश हैं। फर्क साफ है: अंग्रेजी मीडिया ने मोदी को ध्वस्त करने में तब कोई कसर नहीं छोड़ी जब उन्होंने शशि थरूर की महिला मित्र सुनंदा पुष्कर के बारे में बात छेड़ी थी। लेकिन जब संजय निरुपम टीवी पर स्मृति ईरानी के साथ घृणित बर्ताव करते हैं तो महिला पत्रकार तक विरोध नहीं करतीं। जिस तरह के लोगों का मोदी प्रतिनिधित्व करते हैं वे पाखंड और बेशर्मी भरे इस दोहरे मानक को खूब समझते हैं। और अगर आप चुनाव परिणामों की बात करते हैं, वे कतई प्रभावित नहीं होते हैं। लेकिन यह असली अलगाव है और इंडिया और भारत के बीच एक युद्ध जारी है कि इंडिया क्या है। भारत क्या है? यदि आप अंग्रेजी मीडिया की परिभाषा से समझे तो, भारत एक बनावटी देश है जो बनना ही नहीं चाहिए था। उनकी और अरुंधति रॉय जैसे उनके चीयरलीडर्स, की नजर में भारत लाख दंगों से ग्रस्त है जिसके अस्तित्व की कोई उम्मीद नहीं है।
इसके अलावा, अंग्रेजी मीडिया की नजर से दुनिया को देखने वालों के पास 67 बरस पुराना नेहरूवादी नेटवर्क है जो वक्त जरूरत काम आता है। इसके ठीक विपरीत, वे लोग हैं जो सही मायने में मोदी का समर्थन करते हैं- मैं उन नए धर्मान्तरि, शिक्षित मध्यम वर्ग के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं जो अंग्रेजी बोलने में असहज महसूस करते हैं, भले ही अपने जीवन में भरपूर सफल रहे हों। जब कार्यक्रम में फर्राटेदार शानदार अंग्रेजी बोली जाने लगती है तो वे बड़ी सहजता से बहस को खारिज कर देते हैं। कुछ ही देर पहले मैंने नहरूवादी नेटवर्क का उल्लेख किया था। मेरा इससे क्या तात्पर्य है? मुझे लगता है कि नेहरूवाद नेटवर्क मोटे तौर पर उसे कहा जा सकता है जो भारत में 1947 से पहले काम कर रहा था। मैं सोचता हूं कि यह मूल रूप से उन विचारों और ऐसे लोगों का सामुच्च्य है जिनका विश्वास है कि अंग्रेजी द्वारा स्थापित प्रणाली सबसे बेहतर थी। वे असलीब्राउन साहेबहैं। वे वही सब कुछ लिखते या प्रचारित करते हैं जो पश्चिमी मीडिया में प्रकाशित होता है। वे उपन्यास और पुस्तकों के माध्यम से भारत पर प्रहार करना पसंद करते हैं। वे पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि भारतीयों को थोड़ी तमीज की दरकार है।

जब उमा भारती या मायावती अथवा मोदी जैसे नेता कहीं से उभरते हैं और पूरे गर्व के साथ अंग्रेजी बोल पाने की कमजोरी की घोषणा करते हैं तथा उसके बावजूद अपने मतदाताओं को अपनी सही बातें भली-भांति समझा पाते हैं तो वे आंहे भरते हुए मुंह दबाकर हंसते हैं। आखिर निचला तबका इतना ताकतवर कैसे हो गया, नेहरूवादी नेटवर्क यह बात आसानी से नहीं समझ सकता हैं। आपने देखा, जब केवल नेताओं और नौकरशाहों के बच्चे जो बेहतर और निर्दोष अंग्रेजी में बात करते थे, राष्ट्र के लिए एजेंडा नियत करते थे तो कितना बेहतर था।

मेरे सहयोगी सुतनु ने मुझे एक ट्वीट फार्वर्ड किया जिसमें किसी पत्रकार ने दिवाली से पहले बेहद आक्रमक और शर्मनाक तरीके से राम नाम का इस्तेमाल किया था। सुतनु ने कहा कि कुछ नहीं होगा और सचमुच कोई दंगा नहीं हुआ। मेरे लिए, उस देवता के लिए जिसे हिंदू एक भगवान के रूप में पूजते हों इस तरह का अपशब्द लिखना बेहद भड़काऊ था। पर वास्तव में कुछ नहीं हुआ। लेकिन तब मुझे एहसास हुआ कि क्यों मोदी को 2002 के लिए हमेशा के लिए दोषी मान लिया जाता है, भले ही सुप्रीम कोर्ट का कहना हो कि वह दोषी नहीं हैं।

चलिए क्योंकि भारत और इंडिया के बीच खाई कभी खत्म नहीं होगी। मैं ऐसी पार्टियों में जाता हूं जहां मेरे मित्रउन निचले तबके के लोगोंके बारे में उपहासपूर्वक बात करते हैं। उन्हें कोई अपराधबोध नहीं होता कि वे साथी भारतीयों के बारे में बात कर रहे हैं। उनके लिए, भारत वहीं है, जहां और जैसे वे रहते हैं। लेकिन समस्या यह है कि नरेंद्र मोदी जैसे लोग विशेषाधिकार प्राप्त सामंती समूह को चुनौती दे रहे हैं। आप देख सकते हैं कि इस सामंती समीकरण को अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनौती नहीं दे सके थे। कोई आश्चर्य नहीं कि अंग्रेजी मीडिया मोदी से इतनी नफरत करता है।

इंडिया और भारत के बीच की यह लड़ाई 1980 में शुरू हुई। इस दौरान देश के लिए लड़नेवाले कई नायक-नायिकाएं उभरी। मोदी पहले व्यक्ति हैं जो भारत की ओर से आक्रामक तरीके से लड़ रहे हैं और वह जीतते भी नजर रहे हैं। ऐसे भारत की कल्पना कीजिए जहां कांग्रेस के चमचे. जेएनयू के बुद्धिजीवियों और उनके साथी पिछलग्गुओं के लिए दिल्ली की सत्ता तक की पहुंच नहीं होगी। कोई आश्चर्य नहीं कि धर्मनिरपेक्ष अंग्रेजी मीडिया नमो से इतनी शिद्दत के साथ नफरत करता है।

मुझे लगता है कि महात्मा गांधी के जमाने के बाद भारत में यह सबसे दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई होगी। उन्होंने नेहरू और वल्लभ भाई पटेल (एक गुजराती, जो दूसरे स्थान पर रहे) के समर्थन में उसका फैसला किया। आज कोई महात्मा गांधी नहीं हैं, केवल मतदाता है। तो फिर राहुल गांधी या मोदी? राहुल बनाम मोदी की संभावना तलाशने संबंधी सर्वेक्षण करने वाले हम सबसे पहले थे और उसमें मोदी निश्चित विजेता रहे थे। यदि आपकों संदेह है तो महा संघर्ष देखते रहिए! इस बार जीत भारत के भाग्य में है

अरिन्दम चौधरी 

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप

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