Thursday, February 3, 2011

दिल्‍ली की सेक्‍स मंडी में विदेशी भी कर रहे कारोबार, 4 महिलाओं समेत 5 गिरफ्तार

नई दिल्‍ली. दिल्ली पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी में एक बार फिर एक बड़े सेक्‍स रैकेट का भंडाफोड़ करने दावा किया है। क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने कॉल गर्ल्‍स का धंधा करने के आरोप में चार महिलाओं और एक कथित दलाल समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। ये सभी विदेशी मूल के हैं।

पिछले हफ्ते (गुरुवार को) ही दिल्‍ली पुलिस ने पांच महिलाओं सहित छह लोगों को गिरफ्तार कर देह व्यापार के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया था। पुलिस ने रोहिणी के सेक्टर 16 से पांच महिलाओं और विकास गुप्ता (28) नाम के एक कथित दलाल को गिरफ्तार किया था।

दक्षिण दिल्‍ली में नए साल की पार्टियों की तैयारी कर रहे सेक्स रैकेट में शामिल चार लड़कियों और उनके दलाल को गिरफ्तार किया गया। ये लोग मॉल्स में अपने क्लाइंटों से डीलिंग करते थे।  

दो साल पहले गिरफ्तारी हुई थी अफगानी 'लैला'

दिल्ली पुलिस ने इससे पहले भी सेक्‍स रैकेट में शामिल एक विदेशी महिला को गिरफ्तार कर बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया था। फरवरी 2009 को गिरफ्तार यह महिला उजबेकिस्तान की रहने वाली थी और दिल्ली में अपनी बहन और जीजा के साथ मिलकर सेक्स रैकेट चलाती थी। दिल्ली में जिस्मफरोशी का जाल फैलाने वाली लैला नाम से मशहूर यह महिला दिल्ली समेत कई शहरों में इंटरनेशनल सेक्स रैकेट चला रही थी।

अक्‍टूबर 2009 में दक्षिण दिल्‍ली में ही सेक्‍स रैकेट चलाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ हुआ था। इस गिरोह की चार महिला सदस्‍यों को गिरफ्तार किया गया था जिसमें दो विदेशी मूल (रूस) की थीं। अन्‍य दो महिलाओं में एक भोपाल की तो दूसरी दिल्‍ली के ही शालीमार बाग इलाके की रहने वाली थी।

नरेंद्र मोदी गुजरात दंगे भड़काने और सबूत मिटाने के दोषी!

Source: dainikbhaskar.com   |   Last Updated 16:43(03/02/11)
 
 
 
 
नौ साल पहले गुजरात में भड़के सांप्रदायिक दंगों के लिए मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी करार दिया गया है। गोधरा दंगों पर विशेष जांच दल (एसआईटी) की 600 पन्‍नों की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।

निजी टीवी चैनल ‘हेडलाइंस टुडे’ ने दावा किया है कि यह रिपोर्ट उसके हाथ लगी है। इसके हवाले से चैनल ने कहा है कि गुजरात सरकार ने विश्‍व हिंदू परिषद (वीएचपी) और राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा से जुड़े वकीलों को इन मामलों की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील नियुक्‍त किया। मोदी को गोधरा दंगों पर भड़काऊ बयान देने का भी दोषी करार दिया गया है।

एसआईटी की रिपोर्ट में मोदी के इस बयान का भी जिक्र है, जिसमें उन्‍होंने कहा था कि ‘हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।’ मोदी को ऐसा बयान देकर दंगों के गंभीर हालात को कमतर आंकने का दोषी पाया गया है। गुजरात सरकार को गुलबर्ग सोसाइटी कांड जैसे मामलों की गंभीरता पर पानी फेरने का दोषी करार दिया गया है।

मोदी को दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा नहीं कर भेदभाव करने का भी दोषी ठहराया गया है। मोदी पर आरोप हैं कि उन्‍होंने अहमदाबाद जैसे दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा नहीं किया जो मुस्लिम बहुल इलाका है जबकि गोधरा का दौरा किया। गुजरात सरकार को दंगे के दौरान गैर कानूनी तरीके से मंत्रियों को पीसीआर वैन में तैनात करने का भी दोषी ठहराया गया है।

एसआईटी रिपोर्ट में गुजरात सरकार को गुजरात दंगों के जुड़े अहम रिकार्ड मिटाने का दोषी करार दिया गया है। मोदी को दंगों के दौरान मुसलमानों पर हमलों के बाद गैर जिम्‍मेदाराना बयान देने और गैर जिम्‍मेदारान रवैया दिखाने का दोषी भी ठहराया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक मोदी 
सांम्‍प्रदायिक मानसिकता और भड़काऊ भाषण देने वाला शख्‍स हैं

विकी खुलासा: भारत-पाकिस्‍तान में परमाणु युद्ध का खतरा

नई दिल्ली. भारत और पाकिस्तान के बीच अगर मौजूदा तनाव जारी रहा तो पड़ोसी मुल्कों के बीच परमाणु युद्ध की आशंका है, जिसमें लाखों लोग मारे जाएंगे। अमेरिका के रक्षा मुख्यालय पेंटागन की 2002 की एक रिपोर्ट में भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव के चलते दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध होने की आशंका जताई गई है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि भारत-पाक के बीच परमाणु युद्ध की सूरत में करीब 1.20 करोड़ लोगों के मारे जाने की आशंका है। यह खुलासा खोजी वेबसाइट विकीलीक्स ने किया है। 

इसके मुताबिक एशिया में तनाव लगातार बढ़ रहा है और यह तनाव कभी भी परमाणु युद्ध का रूप ले सकता है। दुनिया के इस हिस्से में युद्ध की आशंका के चलते कई देशों में परमाणु हथियारों और मिसाइलों की खतरनाक होड़ चल रही है और इससे ऐटमी युद्ध की आशंका बढ़ गई है।

एशिया के जो देश इन दिनों तेजी से ऐटमी हथियार बना रहे हैं, उनमें ईरान, उत्तर कोरिया, सीरिया, पाकिस्तान और चीन शामिल हैं। ऐटमी हथियारों के अलावा ये देश रासायनिक और जैविक (बायोलॉजिकल) हथियारों का विकास भी कर रहे हैं। 

गुप्त राजनयिक दस्तावेजों से यह भी पता चला है कि 2008 में एक परमाणु अप्रसार सम्मेलन में अमेरिका की तरफ से दिए गए बयान में कहा गया था कि दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों और मिसाइलों की होड़ के चलते दुनिया की सबसे घनी आबादी और आर्थिक तौर पर अहम इलाके में युद्ध छिड़ सकता है। 

इसी सम्मेलन में मध्य एशियाई और उत्तर कोरिया जैसे देशों में हथियारों की होड़ को लेकर भी चिंता जताई गई थी। विकीलीक्स द्वारा किए गए खुलासे में यह बात भी सामने आई है कि सीरिया और उत्तर कोरिया रासायनिक और जैविक हथियार बना रहे हैं। लेबनान के आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह का समर्थन करने वाला सीरिया रासायनिक हथियारों का विकास कर रहा है। व्यापक विनाश के हथियारों के निर्माण से जुड़ी सीरिया की एक कंपनी ने दिसंबर, 2008 में दो भारतीय कंपनियों से रिएक्टर, हीट एक्सचेंजर और पंप खरीदने की कोशिश कर रही थी, जिसपर अमेरिका ने आपत्ति जताई थी। 

अमेरिका की तत्कालीन विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने भारत स्थित अमेरिकी दूतावास को एक कड़ा संदेश जारी करते हुए निर्देश दिया था कि अमेरिकी राजनयिक भारत से इन सामानों की बिक्री पर रोक लगाने को कहें। राइस ने अपने संदेश में भारत को उस वादे की याद दिलाई जिसमें कहा गया था कि रासायनकि हथियार बनाने में किसी भी देश को कभी भी मदद नहीं करेंगे। इसी तरह से मार्च, 2008 में अमेरिकी राजनयिकों ने चीन सरकार से उत्तर कोरिया को खतरनाक हथियार बेचने वाली कंपनी की जांच करने को कहा था

एक परंपरा पर पूर्ण विराम

जब भारत में गणतंत्र दिवस के समारोह चल रहे थे उसी दिन ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन ने अपने हिंदी बुलेटिन से समाचार प्रसारण की अस्सी वर्षीय परंपरा को पूर्ण विराम लगा दिया। 27 जनवरी को चिली की संसद के अध्यक्ष जार्ज पिजारो सोतो भारत दौरे पर थे। भारत के उपराष्ट्रपति ने अपने आवास पर अंग्रेजी भाषा से उनकी अगवानी की। मेहमान के दुभाषिए ने फौरन टोकते हुए कहा कि हमारे महामहिम को अंग्रेजी समझने में दिक्कत है, क्योंकि चिली की भाषा स्पेनिश है। हम सभी अंग्रेजी को परदेशी भाषा मानते हुए भी उसके माध्यम से व्यवहार करने में प्रतिष्ठा की बात समझते हैं। संभवत: भारत ऐसे चंद देशों में शामिल है जहां आम लोगों के व्यवहार और शासकीय व्यवहार की भाषा अलग-अलग है। भारत की गुलामी काल से ही बीबीसी की हिंदी सेवा का प्रचलन था और विश्व के बहुत से देशों में भारत के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रवासी भारतीयों के अलावा भी लोग हिंदी बुलेटिन सुनने के अभ्यस्त थे। टीवी चैनलों ने पूरे विश्व के आकाश को छेद कर अपना आकार भले बड़ा कर लिया, लेकिन बीबीसी रेडियो से प्रसारित होने वाले समाचारों के श्रोताओं की संख्या में कोई कमी नहीं हुई। बीबीसी हिंदी समाचार का अलग ही क्रेज है। इस बुलेटिन को अर्थाभाव का बहाना बनाकर बीबीसी के प्रबंधकों ने बड़ी संख्या में भारतीय मानस केघाव को गहरा कर दिया है। भारत की आजादी के तुरंत बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का विश्व के नाम संदेश लेने के लिए बीबीसी का संवाददाता गया। गांधीजी हिंदी के लिए आग्रहशील थे और उनका साक्षात्कार हिंदी में ही हुआ। भारत स्थित इस श्रेष्ठ संस्था के प्रतिनिधि मार्क टुली ने न केवल हिंदी सीखी, बल्कि भारत उनके दिल में इतना रस बस गया कि वह सेवानिवृत्त होने के बाद भारत में ही निवास कर रहे। अंग्रेजी के कोख से जन्मी बीबीसी ने अपने बुलेटिन, अपने भाष्य, परिस्थितयों की व्याख्या के माध्यम से जितनी हिंदी की सेवा की उतनी बड़ी सेवा हिंदी में बनने वाली सभी फिल्मों ने भी नहीं की। 1974 में अपै्रल-मई में मुझे पश्चिमी यूरोप के एक देश बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स जाना पड़ा। वहां अंतरराष्ट्रीय समाजवादी युवा सम्मेलन आयोजित था। दूसरे दिन भारत के छात्र-युवा आंदोलन के बारे में लंबा इंटरव्यू लिया। उस इंटरव्यू को भारत में लोगों ने सुना। वह ऐसा दौर था जब आकाशवाणी को लोग आल इंदिरा रेडियो कहकर पुकारते थे। निष्पक्ष टिप्पणी के लिए बीबीसी का ही सहारा लिया जाता था। उस दौर में हिंदी बुलेटिन हिंदी भाषी जनता का सर्वाधिक पसंदीदा माध्यम था। केंद्र सरकार के विरुद्ध आंदोलनों की बाढ़ आ गई थी। बिहार, गुजरात के सघन छात्र आंदोलन, जबलपुर में जनता प्रत्याशी के रूप में शरद यादव की जीत, गुजरात की विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की पराजय और रेल मजदूरों की ऐतिहासिक हड़ताल के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री के चुनाव को निरस्त किया जाना वास्तव में क्रांतिकारी स्फुरण का वर्ष था। उसकी याद आते ही एक नया उमंग और जोश पैदा हो जाता है। इन सभी घटनाक्रमों की सच्चाई जानने व समीक्षा के लिए आमजन बीबीसी का ही सहारा लेते थे। इसी दौर में इमरजेंसी लगी। प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी गई। लोग अपने मूल अधिकारों के लिए अदालत नहीं जा सकते थे। मेरी गिरफ्तारी बलिया में हुई। मेरे बिस्तर में एक छोटा ट्रांजिस्टर था, जिस पर केवल रात का बीबीसी प्रसारण सुना जाता था। जेल के सभी राजनीतिक बंदी बैरक में जमा होते और मैं पूरी बुलेटिन चुपके से सभी बंदी साथियों को सुना देता था। रत्नाकर भारती और ओंकार नाथ श्रीवास्तव की वाकशैली और तथ्यों की सफाई से जेल में निराश-उदास बैठे बंदियों में उत्साह का संचार हो जाता था। सुब्रहमण्यम स्वामी के राज्यसभा में हंगामा खड़ा करने के बाद पलायन की तस्वीर, जार्ज फर्नाडीज और उनके साथियों की हथकड़ी और बेड़ी के साथ कमर में रस्सा बांधकर तीस हजारी कोर्ट में पेशी का वर्णन रोंगटे खड़े करने वाला था। उसके हफ्ते भर बाद कुछ महीनों के बेटे को गोद में लिए जार्ज की पत्नी लैला कबीर ने किस तरह बीबीसी कार्यालय में प्रवेश किया, इसका सीधा प्रसारण किसी मुर्दे को भी संघर्ष के लिए खड़ा कर सकता था। इमरजेंसी के दौर में युवा मन को बीबीसी ने इतना रोमांचित किया कि अन्याय के खिलाफ जीवन भर जेल में रहने का जज्बा लोगों में पैदा हुआ। ऐसे दौर में जब लगता था कि लोकतंत्र का चिराग बुझ जाएगा तब बीबीसी ने अपनी प्रखर शैली से आम जन में साहस और विश्वास पैदा किया। आज बीबीसी के हिंदी बुलेटिन को बंद किए जाने की घोषणा निराशा पैदा करती है। बीबीसी हिंदी बुलेटिन आज भी प्रासांगिक है। देश का बौद्धिक वर्ग, हिंदी सेवी, हिंदी जगत का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद सदस्य भारत सरकार को मजबूर करें और बीबीसी के प्रबंधतंत्र पर प्रभाव डालें कि हिंदी बुलेटिन बंद न हो। (लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)

सतह पर पुराना सवाल

तिब्बती बौद्ध धर्म की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत करमापा लामा के पास से भारी मात्रा में चीनी मुद्रा की बरामदगी से चीन के साथ लामा के संबंध फिर से संदेह के घेरे में आ गए हैं। इसीलिए करमापा लामा को इस बात का खंडन करने को मजबूर होना पड़ा कि वह बीजिंग के एजेंट हैं। दलाई लामा, पंचेन लामा और करमापा लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की तीन सर्वोच्च हस्तियां हैं। ये तीनों उन समानांतर संस्थानों के प्रतिनिधि हैं, जिन्होंने इतिहास के कठिन दौर में बार-बार कठिनाइयों को झेला है। तिब्बत पर पकड़ मजबूत करने के लिए चीन ने वरिष्ठ लामा के देहांत के बाद उनके उत्तराधिकारी के अवतरण की परंपरागत प्रक्रिया पर नियंत्रण बना रखा है। 1992 में बीजिंग ने सात वर्षीय उग्येन त्रिनलेय दोरजी को 17वें करमापा लामा के रूप में चुना और उन्हें तिब्बत के त्सुरफु मठ में तैनात कर दिया। करमापा के इस प्राचीन आवास को सांस्कृतिक क्रांति के दौरान करीब-करीब ध्वस्त कर दिया गया था। उनका पहले मान्यता प्राप्त जीवित बुद्ध के रूप में पुनर्जन्म हुआ और इसकी कम्युनिस्ट चीन ने भी पुष्टि की। फिर 1999 में उग्येन दोरजी सनसनीखेज ढंग से नेपाल के रास्ते भारत भाग आए। इस घटना ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा। साथ ही जिस आसानी से वह और उनके अनुयायी तिब्बत से भाग निकलने में कामयाब हुए उससे वह लोगों के संदेह के दायरे में भी आ गए। इससे पहले 1995 में, तिब्बतियों द्वारा चुने गए छह साल के पंचेम लामा का चीन के सुरक्षा बलों ने अपहरण कर लिया था और बीजिंग ने अपने पिट्ठू पंचेम लामा की नियुक्ति कर दी थी। यह आधिकारिक पंचेन लामा ही गायब हो गया। अब बीजिंग वर्तमान दलाई लामा, जो 75 साल से अधिक हो चुके हैं और जिनका स्वास्थ्य खराब चल रहा है, के देहावसान का इंतजार कर रहा है, ताकि वह उनके उत्तराधिकारी का चुनाव कर सके। हालांकि दलाई लामा चाहते हैं कि उनका उत्तराधिकारी स्वतंत्र विश्व से चुना जाए। इस प्रकार अब दो विरोधी दलाई लामाओं के उभरने का मंच तैयार हो गया है-एक बीजिंग द्वारा चुना हुआ और दूसरा निर्वासित तिब्बती आंदोलन द्वारा। वास्तव में, पहले ही दो विरोधी करमापा लामा मौजूद हैं। एक की नियुक्ति चीन द्वारा की गई है जो धर्मशाला में दलाई लामा की छत्रछाया में रहता है और दूसरे ने नई दिल्ली में अपनी सक्रियता कायम की है। भारत सरकार ने शांति कायम रखने के लिए दोनों दावेदारों को सिक्किम के रुमटेक मठ से अलग रखा है। इस आलोक में, 11 लाख युआन और भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा की खोज से उग्येन दोरजी को लेकर ताजा विवाद खड़ा हो गया है। पुलिस के छापे और उनके नेता से पूछताछ के विरोध में करमापा लामा के समर्थकों ने प्रदर्शन किया, जबकि भारतीय अधिकारियों ने साफ-साफ कहा कि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन करमापा लामा का वित्त पोषण कर रहा हो, ताकि वह करमापा के काग्यु पंथ को प्रभावित कर सके, जिसके हाथ में तिब्बत सीमा पर मौजूद अनेक महत्वपूर्ण मठों का नियंत्रण है। हालांकि, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी का कहना है कि करमापा को चीनी एजेंट या जासूस मानने से स्पष्ट हो जाता है कि भारत चीन के प्रति अविश्वासपूर्ण रवैया रखता है। जु जिताओ नामक यह अधिकारी पार्टी की केंद्रीय समिति के युनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट से जुड़ा है। इस विभाग के तिब्बत प्रखंड के पास मठों की देखरेख और लामाओं में देशभक्ति का जज्बा पैदा करने का जिम्मा है। इसके लिए जरूरत पड़ने पर यह विभाग लामाओं को पुनर्शिक्षित करता है और तिब्बत आंदोलन व भारत-तिब्बत सीमा के दोनों ओर स्थित तिब्बती बौद्ध मठों में दखल बनाए रखता है। हिमालयी क्षेत्र में समुदायों का आपस में ऐतिहासिक रूप से नजदीकी रिश्ता है, किंतु 1951 में चीन के कब्जे के बाद तिब्बत पर चीन द्वारा लोहे के परदे डाल देने से स्थानीय हिमालयी अर्थव्यवस्था और संस्कृति कमजोर पड़ी है। हालांकि अब भी करमापा के काग्यु पंथ के भारत में अत्यधिक प्रभाव में तिब्बती बौद्ध धर्म ही समान सूत्र बना हुआ है। विदेशी मुद्रा की बरामदगी ने 1999 में उठे सवाल को फिर से उछाल दिया है कि क्या दोरजी का भागकर भारत आना चीन द्वारा प्रायोजित था या फिर वह वास्तव में चीन के दमनकारी शासन से परेशान होकर वहां से भाग निकला था। उनके भागने में चीन को अनेक संभावित लाभ हो सकते हैं। चीन को एक लाभ यह हो सकता है कि भारत, भूटान और ताइवान द्वारा वरदहस्त प्राप्त उनके प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ उसका दावा मजबूत हो सके। एक और महत्वपूर्ण कारण यह तथ्य है कि काग्यु पंथ का सबसे पवित्र संस्थान सिक्किम में रुमटेक मठ है, जहां पंथ का सर्वशक्तिशाली व्यक्ति काला मुकुट (टोप) हासिल करता है। माना जाता है कि यह मुकुट देवियों के बालों से बना है और करमापा का प्रतीकात्मक मुकुट है। अगर उग्येन दोरजी तिब्बत में ही रहते तो वह अपने प्रतिद्वंद्वी के हाथों इसे गंवा सकते थे। बीजिंग को इस तथ्य से भी राहत मिल सकती है कि नाजुक तिब्बती राजनीति में इसके करमापा को दलाई लामा का समर्थन हासिल है। दलाई लामा गेलुग स्कूल से संबद्ध हैं और तिब्बती परंपरा के अनुसार करमापा के चुनाव या मान्यता प्रदान करने में उनकी कोई भूमिका नहीं है। फिर भी, विशुद्ध राजनीतिक कारणों से दलाई लामा ने उन्हें अपनी मान्यता प्रदान कर दी है। अंतिम करमापा का निधन 1981 में हुआ था और उसके बाद उत्तराधिकार को लेकर बढ़ते विवाद में तिब्बत बुद्ध धर्म के सबसे संपन्न काग्यु पंथ की करीब सात हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के लिए संघर्ष भी शामिल है। दलाई लामा पर निंदात्मक हमलों के विपरीत चीन ने इसके करमापा को न तो अमान्य ठहराया और न ही उसकी निंदा की, जबकि भारत भाग आने से साफ संकेत मिल गया था कि चीन उनकी वफादारी पाने में विफल रहा है। यहां तक कि मंदारिन भाषी उग्येन दोरजी कभी-कभार चीन सरकार की आलोचना करते रहे हैं, फिर भी बीजिंग ने उन पर हमला करने से हमेशा गुरेज किया है। रकम की बरामदगी से उनके प्रतिद्वंद्वी करमापा जरूर खुश हैं और इसे उनका पर्दाफाश बता रहे हैं। वर्तमान दलाई लामा के जाने के बाद दो दलाई लामाओं के संघर्ष में करमापा केंद्रित पहेली, छद्म राजनीति और साजिशों की ही भारत अपेक्षा कर सकता है। चीन के खिलाफ दलाई लामा भारत की सबसे बड़ी पूंजी हैं। भारत को दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चुनाव की सुनियोजित तैयारी करनी चाहिए, नहीं तो वह एक बार फिर मुंह की खाएगा, जैसा कि करमापा प्रकरण में हुआ है। 

सतह पर पुराना सवाल

तिब्बती बौद्ध धर्म की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत करमापा लामा के पास से भारी मात्रा में चीनी मुद्रा की बरामदगी से चीन के साथ लामा के संबंध फिर से संदेह के घेरे में आ गए हैं। इसीलिए करमापा लामा को इस बात का खंडन करने को मजबूर होना पड़ा कि वह बीजिंग के एजेंट हैं। दलाई लामा, पंचेन लामा और करमापा लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की तीन सर्वोच्च हस्तियां हैं। ये तीनों उन समानांतर संस्थानों के प्रतिनिधि हैं, जिन्होंने इतिहास के कठिन दौर में बार-बार कठिनाइयों को झेला है। तिब्बत पर पकड़ मजबूत करने के लिए चीन ने वरिष्ठ लामा के देहांत के बाद उनके उत्तराधिकारी के अवतरण की परंपरागत प्रक्रिया पर नियंत्रण बना रखा है। 1992 में बीजिंग ने सात वर्षीय उग्येन त्रिनलेय दोरजी को 17वें करमापा लामा के रूप में चुना और उन्हें तिब्बत के त्सुरफु मठ में तैनात कर दिया। करमापा के इस प्राचीन आवास को सांस्कृतिक क्रांति के दौरान करीब-करीब ध्वस्त कर दिया गया था। उनका पहले मान्यता प्राप्त जीवित बुद्ध के रूप में पुनर्जन्म हुआ और इसकी कम्युनिस्ट चीन ने भी पुष्टि की। फिर 1999 में उग्येन दोरजी सनसनीखेज ढंग से नेपाल के रास्ते भारत भाग आए। इस घटना ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा। साथ ही जिस आसानी से वह और उनके अनुयायी तिब्बत से भाग निकलने में कामयाब हुए उससे वह लोगों के संदेह के दायरे में भी आ गए। इससे पहले 1995 में, तिब्बतियों द्वारा चुने गए छह साल के पंचेम लामा का चीन के सुरक्षा बलों ने अपहरण कर लिया था और बीजिंग ने अपने पिट्ठू पंचेम लामा की नियुक्ति कर दी थी। यह आधिकारिक पंचेन लामा ही गायब हो गया। अब बीजिंग वर्तमान दलाई लामा, जो 75 साल से अधिक हो चुके हैं और जिनका स्वास्थ्य खराब चल रहा है, के देहावसान का इंतजार कर रहा है, ताकि वह उनके उत्तराधिकारी का चुनाव कर सके। हालांकि दलाई लामा चाहते हैं कि उनका उत्तराधिकारी स्वतंत्र विश्व से चुना जाए। इस प्रकार अब दो विरोधी दलाई लामाओं के उभरने का मंच तैयार हो गया है-एक बीजिंग द्वारा चुना हुआ और दूसरा निर्वासित तिब्बती आंदोलन द्वारा। वास्तव में, पहले ही दो विरोधी करमापा लामा मौजूद हैं। एक की नियुक्ति चीन द्वारा की गई है जो धर्मशाला में दलाई लामा की छत्रछाया में रहता है और दूसरे ने नई दिल्ली में अपनी सक्रियता कायम की है। भारत सरकार ने शांति कायम रखने के लिए दोनों दावेदारों को सिक्किम के रुमटेक मठ से अलग रखा है। इस आलोक में, 11 लाख युआन और भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा की खोज से उग्येन दोरजी को लेकर ताजा विवाद खड़ा हो गया है। पुलिस के छापे और उनके नेता से पूछताछ के विरोध में करमापा लामा के समर्थकों ने प्रदर्शन किया, जबकि भारतीय अधिकारियों ने साफ-साफ कहा कि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन करमापा लामा का वित्त पोषण कर रहा हो, ताकि वह करमापा के काग्यु पंथ को प्रभावित कर सके, जिसके हाथ में तिब्बत सीमा पर मौजूद अनेक महत्वपूर्ण मठों का नियंत्रण है। हालांकि, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी का कहना है कि करमापा को चीनी एजेंट या जासूस मानने से स्पष्ट हो जाता है कि भारत चीन के प्रति अविश्वासपूर्ण रवैया रखता है। जु जिताओ नामक यह अधिकारी पार्टी की केंद्रीय समिति के युनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट से जुड़ा है। इस विभाग के तिब्बत प्रखंड के पास मठों की देखरेख और लामाओं में देशभक्ति का जज्बा पैदा करने का जिम्मा है। इसके लिए जरूरत पड़ने पर यह विभाग लामाओं को पुनर्शिक्षित करता है और तिब्बत आंदोलन व भारत-तिब्बत सीमा के दोनों ओर स्थित तिब्बती बौद्ध मठों में दखल बनाए रखता है। हिमालयी क्षेत्र में समुदायों का आपस में ऐतिहासिक रूप से नजदीकी रिश्ता है, किंतु 1951 में चीन के कब्जे के बाद तिब्बत पर चीन द्वारा लोहे के परदे डाल देने से स्थानीय हिमालयी अर्थव्यवस्था और संस्कृति कमजोर पड़ी है। हालांकि अब भी करमापा के काग्यु पंथ के भारत में अत्यधिक प्रभाव में तिब्बती बौद्ध धर्म ही समान सूत्र बना हुआ है। विदेशी मुद्रा की बरामदगी ने 1999 में उठे सवाल को फिर से उछाल दिया है कि क्या दोरजी का भागकर भारत आना चीन द्वारा प्रायोजित था या फिर वह वास्तव में चीन के दमनकारी शासन से परेशान होकर वहां से भाग निकला था। उनके भागने में चीन को अनेक संभावित लाभ हो सकते हैं। चीन को एक लाभ यह हो सकता है कि भारत, भूटान और ताइवान द्वारा वरदहस्त प्राप्त उनके प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ उसका दावा मजबूत हो सके। एक और महत्वपूर्ण कारण यह तथ्य है कि काग्यु पंथ का सबसे पवित्र संस्थान सिक्किम में रुमटेक मठ है, जहां पंथ का सर्वशक्तिशाली व्यक्ति काला मुकुट (टोप) हासिल करता है। माना जाता है कि यह मुकुट देवियों के बालों से बना है और करमापा का प्रतीकात्मक मुकुट है। अगर उग्येन दोरजी तिब्बत में ही रहते तो वह अपने प्रतिद्वंद्वी के हाथों इसे गंवा सकते थे। बीजिंग को इस तथ्य से भी राहत मिल सकती है कि नाजुक तिब्बती राजनीति में इसके करमापा को दलाई लामा का समर्थन हासिल है। दलाई लामा गेलुग स्कूल से संबद्ध हैं और तिब्बती परंपरा के अनुसार करमापा के चुनाव या मान्यता प्रदान करने में उनकी कोई भूमिका नहीं है। फिर भी, विशुद्ध राजनीतिक कारणों से दलाई लामा ने उन्हें अपनी मान्यता प्रदान कर दी है। अंतिम करमापा का निधन 1981 में हुआ था और उसके बाद उत्तराधिकार को लेकर बढ़ते विवाद में तिब्बत बुद्ध धर्म के सबसे संपन्न काग्यु पंथ की करीब सात हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के लिए संघर्ष भी शामिल है। दलाई लामा पर निंदात्मक हमलों के विपरीत चीन ने इसके करमापा को न तो अमान्य ठहराया और न ही उसकी निंदा की, जबकि भारत भाग आने से साफ संकेत मिल गया था कि चीन उनकी वफादारी पाने में विफल रहा है। यहां तक कि मंदारिन भाषी उग्येन दोरजी कभी-कभार चीन सरकार की आलोचना करते रहे हैं, फिर भी बीजिंग ने उन पर हमला करने से हमेशा गुरेज किया है। रकम की बरामदगी से उनके प्रतिद्वंद्वी करमापा जरूर खुश हैं और इसे उनका पर्दाफाश बता रहे हैं। वर्तमान दलाई लामा के जाने के बाद दो दलाई लामाओं के संघर्ष में करमापा केंद्रित पहेली, छद्म राजनीति और साजिशों की ही भारत अपेक्षा कर सकता है। चीन के खिलाफ दलाई लामा भारत की सबसे बड़ी पूंजी हैं। भारत को दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चुनाव की सुनियोजित तैयारी करनी चाहिए, नहीं तो वह एक बार फिर मुंह की खाएगा, जैसा कि करमापा प्रकरण में हुआ है। (लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

संघ के खिलाफ षड्यंत्र की पटकथा लिख रहे हैं राहुल

ठ्ठजागरण ब्यूरो/एजेंसी, लखनऊ/जयपुर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने बुधवार को कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस महासचिव व उनके सहयोगी नेता संघ की छवि धूमिल करने के लिए षड्यंत्र की पटकथा लिख रहे हैं। संघ को हिंदू आतंकवाद का जनक बताने के साथ ही आतंकवादी गतिविधियों में गिरफ्तार लोगों को संघ के साथ जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। मालेगांव व अजमेर प्रकरण में जारी जांच को राजनीति प्रेरित बताते हुए संघ ने आरोप लगाया कि सर संघचालक मोहन राव भागवत की हत्या के षड्यंत्र पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है। आरएसएस की केंद्रीय समिति के सदस्य और पूर्व प्रवक्ता राम माधव बुधवार को पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दिलचस्प पहलू यह है कि जांच एजेंसियां भी उसी दिशा में काम कर रहीं हैं जैसा कांग्रेस महासचिव बयान देते हैं। राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत के साथ बातचीत में कहा कि देश को हिंदू आतंकवाद से खतरा है। इसका खुलासा विकिलिक्स ने किया। इससे साफ जाहिर होता है कि जांच एजेंसियां कांग्रेस महासचिव के इशारों पर नाच रहीं हैं। राम माधव ने मालेगांव व अजमेर प्रकरण में जारी जांच को राजनीति प्रेरित बताते हुए आरोप लगाया कि सर संघचालक मोहन राव भागवत की हत्या के षड्यंत्र पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने संघ विरोधी दुष्प्रचार को बेनकाब करने के लिए अवध प्रांत क्षेत्र में छह फरवरी से देशव्यापी संपर्क अभियान शुरू किया जा रहा है। माधव ने बताया कि केंद्र द्वारा कश्मीर में अलगाववाद का समर्थन करने , जेहाद से अधिक हिंदू आतंकवाद को खतरा बताने व अयोध्या प्रकरण के फैसले पर विवाद खड़ा करने के खिलाफ दस हजार स्वयंसेवकों की टोलियां 20 हजार गांवों में जाएंगी। छह से 20 फरवरी तक चलने वाले इस अभियान में घर-घर जाकर पत्रक व पुस्तिका वितरित की जाएंगी। राम माधव ने आरोप लगाया कि मालेगांव प्रकरण मुख्य आरोपी कर्नल पुरोहित व कथित शंकराचार्य पांडेय सर संघचालक मोहन राव भागवत की हत्या करने के षड्यंत्र में लगे थे। जिसके लिए हथियार भी खरीद लिए गए थे। इसकी जानकारी खुफिया विभाग व महाराष्ट्र सरकार की ओर से भी दी गई थी। इसी आधार पर सर संघ चालक को सुरक्षा मुहैया कराई गई। उधर,पांच दिवसीय यात्रा पर अजमेर पहुंचे संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने राजस्थान के वरिष्ठ प्रचारकों के साथ जनजागरण अभियान की रूप-रेखा और नीति पर विचार-विमर्श किया। माना जा रहा है कि दरगाह ब्लास्ट में संघ के प्रचारकों और राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य इन्द्रेश कुमार का नाम आने से संघ अजमेर से ही जागरण अभियान की दिशा तय कर रहा है। अभियान के तहत हिंदू संगठनों, साधु-संतों के नाम बम ब्लास्ट जैसी घटनाओं में जबरन घसीटने का संघ कड़ा विरोध करेगा। अभियान में राम जन्मभूमि, मंदिर निर्माण, कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने जैसे मुद्दे भी शामिल किए गए हैं। इधर अजमेर दरगाह ब्लास्ट मामले में राजस्थान एटीएस ने सक्रियता पहले से अधिक बढ़ाते हुए इन्द्रेश कुमार के निकट माने जाने वाले राजस्थान के संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं भाजपा नेताओं पर निगरानी रखना शुरू कर दिया है। एटीएस शीघ्र ही इन्द्रेश कुमार से भी पूछताछ करेगी।

पीएम के सामने नीतीश ने रखी 16 मांगें

ठ्ठजागरण ब्यूरो, नई दिल्ली बिहार चुनाव के वक्त केंद्रीय मदद को लेकर राजग और कांग्रेस के बीच चलते रहे घमासान में जीत कर आए नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के सामने सोलह मांगे रख दी हैं। बिहार के प्रति केंद्रीय रुख को याद दिलाते हुए उन्होंने राज्य के लिए विशेष दर्जा, कोल लिंकेज, नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना में तेजी लाने जैसी मांगों पर निर्णय लेने का आग्रह किया। जबकि बिहार के योजना आकार में कटौती की चर्चा को पहले ही खत्म करने की कवायद में उन्होंने योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया से भी मुलाकात की। उन्होंने मंशा जता दी है कि वह योजना में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी चाहते हैं। नीतीश ने केंद्र को स्पष्ट कर दिया है कि वह पहली मुलाकात को सिर्फ औपचारिकता तक खत्म नहीं होने देंगे। चुनावी जीत के बाद पहली बार बुधवार को प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे नीतीश ने उनके सामने 16 मुद्दे रख दिए। पहली चिंता राज्यों को मिलने वाली बजटीय सहायता को लेकर है। पहले प्रधानमंत्री और बाद में मोंटेक से मिलकर उन्होंने कहा कि बजटीय सहायता घटाने के प्रस्ताव से राज्यों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। इसके अलावा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दोहराई। सूखा भी नीतीश के लिए चिंता का सबब है। लिहाजा पूरी स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा कि राज्य की ओर से कृषि मंत्रालय को 6553 करोड़ रुपये का मेमोरेंडम भेजा गया था, लेकिन मिले महज 1459 करोड़। उन्होंने पूरी राशि जल्द जारी करने की मांग की। नीतीश की सूची में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के लिए फंड, नई परियोजनाएं, एनएचडीपी-3 को जल्द पूरा करने जैसी मांगों के साथ साथ औद्योगिक विकास के लिए कोल लिंकेज देने व एथनाल बनाने की स्वीकृति दिए जाने पर विशेष जोर था। नीतीश ने दावा किया कि केंद्र बिहार की इन दो मांगों को मंजूरी दे तो निवेश की गति तेज हो जाएगी। दूसरी तरफ योजना आकार तय होने से पहले ही मोंटेक से मुलाकात कर नीतीश ने राज्य की जरूरतें बता दीं। विशेष दर्जा के साथ साथ उन्होंने बीआरजीएफ फंड, कृषि योजना, गरीबी संख्या तय करने वाली तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के आधार पर खाद्यान्न का आवंटन जैसी मांगे भी रखी। नई पारी में बिजली भी नीतीश की प्राथमिकता में है। लिहाजा बाढ़ में तैयार होने वाले एनटीपीसी से उन्होंने 40 फीसदी बिजली देने का आग्रह किया। अंत में यह भी याद दिला दिया कि 2011-12 के लिए तय बीस हजार के योजना आकार में वह 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी चाहते हैं।

राजा की गिरफ्तारी महज ढकोसला

नई दिल्ली। भाजपा ने गुरुवार को कहा कि ए राजा और सुरेश कलमाड़ी को टूजी स्पेक्ट्रम तथा राष्ट्रमंडल खेल घोटालों में बली का बकरा नहीं बनाया जाए और चूंकि सभी फैसले केंद्रीय मंत्रिमंडल और प्रधानमंत्री ने किए हैं इसलिए संयुक्त संसदीय समिति की जाच से ही पूरी सचाई सामने आ सकती है।
पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने यहा कहा कि राजा और अन्य मंत्रियों ने केंद्रीय मंत्रिमंडल और प्रधानमंत्री की अनुमति से ही निर्णय किए। इसलिए देश के सामने इस बात का खुलासा होना चाहिए कि राजा का गाडफादर कौन है और इन घोटालों में और कौन कौन शामिल है। देश की जनता को यह जानने का हक है।
जेपीसी की माग दोहराते हुए उन्होंने कहा, जब तक इससे जाच नहीं कराई जाती है पूरी सचाई सामने नहीं आएगी। गडकरी ने कहा कि जब तक सारी सच्चाई सामने नहीं आती है और अंतिम बिंदु तक की जाच नहीं कराई जाती है राजा की गिरफ्तारी महज ढकोसला होगा।
काग्रेस और संप्रग पर 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन में शामिल होने का आरोप लगाते हुए भाजपा अध्यक्ष ने कहा इनके बिना इतने बड़े पैमाने पर घोटाले होना संभव नहीं था। उन्होंने कहा कि राजा और कलमाड़ी को बली का बकरा बना कर अन्य दोषियों की बेदाग छवि बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अपनी खाल बचाने के लिए सरकार दूसरों की बलि नहीं दे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए बराबर का जिम्मेदार बताते हुए उन्होंने कहा कि इसकी नीति के लिए वही जवाबदेह हैं।
गडकरी ने कहा कि 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन के नीतिगत निर्णय के लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि मुख्य सचिव ने मंत्रियों के समूह को लिखा था कि मूल्य प्रावधान को हटा दिए जाने से देश को नुकसान होगा। अगर प्रधानमंत्री ने उस समय इस बात को मान लिया होता, तो शायद यह हालात ही पैदा नहीं होते।
प्रधानमंत्री पर 'कुछ दबाव में काम करने' का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सिंह ने मुख्य सचिव की बात की अनदेखी की जिससे इतना बड़ा घोटाल हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि इस विभाग [दूरसंचार] को केंद्र सरकार ने एक तरह से भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस दे दिया। ऐसा लगता है सरकार ने इस विभाग को द्रमुक को आउटसोर्स कर दिया।

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप बीते 20 साल से सत्ता का बनवा...