आज जहा देखो
वहा गुजरात के
दंगो के बारे
में ही सुनने
और देखने को
मिलता है फिर
चाहे वो गूगल
हो या फसबूक
हो या फिर
टीवी| रोज रोज
नए खुलाशे हो
रहे हैं| रोज
गुजरात की सरकार
को कटघरे में
खड़ा किया जाता
है| सबका निशाना
केवल एक नरेन्द्र
मोदी| जिसे देखो
वो अपने को
को जज दिखाता
है| हर कोई
सेकुलर के नाम
पर एक ही
स्वर में गुजरात
दंगो की भर्त्सना
करते हैं| मै
भी दंगो को
गलत मानता हु
क्युकी दंगे सिर्फ
दर्द दे कर
जाते हैं जिनको
दंगो से कोई
मतलब होता है
उनको|
अब सवाल उठता
है की गुजरात
दंगा हुआ क्यों?
२७ फरवरी २००२
साबरमती ट्रेन के बोगियों
को जलाया गया
गोधरा रेलवे स्टेशन
से करीब ८२६
मीटर की दुरी
पर| इस ट्रेन
में जलने से
५७ लोगो को
मौत हुई| प्रथम
दृष्टया रहे वहा
के १४ पुलिस
के जवान जो
उस समय स्टेशन
पर मौजूद थे
और उनमे से
३ पुलिस वाले
घटना स्थल पर
पहुचे और साथ
ही पहुचे अग्नि
शमन दल के
एक जवान सुरेशगिरी
गोसाई जी| अगर
हम इन चारो
लोगो की माने
तो म्युनिसिपल काउंसिलर
हाजी बिलाल भीड़
को आदेश दे
रहे थे ट्रेन
के इंजन को
जलने का| साथ
ही साथ जब
ये जवान आग
बुझाने की कोशिस
कर रहे थे
तब ट्रेन पर
पत्थरबाजी चालू कर
दी गई भीड़
के द्वारा| अब
इसके आगे बढ़
कर देखे तो
जब गोधरा पुलिस
स्टेशन की टीम
पहुची तब २
लोग १०,०००
की भीड़ को
उकसा रहे थे
ये थे म्युनिसिपल
प्रेसिडेंट मोहम्मद
कलोटा और म्युनिसिपल
काउंसिलर हाजी बिलाल|
अब सवाल उठता
है की मोहम्मद
कलोटा और हाजी
बिलाल को किसने
उकसाया और ये
ट्रेन को जलाने
क्यों गए?
सवालो के
बाढ़ यही नहीं
रुकते हैं बल्कि
सवालो की लिस्ट अभी लम्बी
है|
अब सवाल उठता
है की क्यों
मारा गया ऐसे
राम भक्तो को|
कुछ मीडिया ने
बताया की ये
मुसलमानों को उकसाने
वाले नारे लगा
रहे....अब क्या
कोई बताएगा की
क्या भगवान राम
के भजन मुसलमानों
को उकसाने वाले
लगते हैं?
लेकिन इसके पहले
भी एक हादसा
हुआ २७ फ़रवरी
२००२ को सुबह
७:४३ मिनट
४ घंटे की
देरी से जैसे
ही साबरमती ट्रेन
चली और प्लेटफ़ॉर्म
छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म
से १०० मीटर
की दुरी पर
ही १००० लोगो
की भीड़ ने
ट्रेन पर पत्थर
चलाने चालू कर
दिए पर यहाँ
रेलवे की पुलिस
ने भीड़ को
तितर बितर कर
दिया और ट्रेन
को आगे के
लिए रवाना कर
दिया| पर जैसे
ही ट्रेन मुस्किल
से ८०० मीटर
चली अलग अलग
बोगियों से कई
बार चेन खिंची
गई| बाकि की
कहानी जिसपर बीती
उसकी जुबानी| उस
समय मुस्किल से
१५-१६ की
बच्ची की जुबानी|
ये बच्ची थी कक्षा
११ में पढने
वाली गायत्री पंचाल
जो की उस
समय अपने परिवार
के साथ अयोध्या
से लौट रही
थी की माने
तो ट्रेन में
राम धुन चल
रहा था और
ट्रेन जैसे ही
गोधरा से आगे
बढ़ी एक दम
से रोक दिया
गई चेन खिंच
कर| उसके बाद
देखने में आया
की एक भीड़
हथियारों से लैस
हो कर ट्रेन
की तरफ बढ़
रही है| हथियार
भी कैसे लाठी
डंडा नहीं बल्कि
तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल
बम्ब, एसिड बल्ब्स
और पता नहीं
क्या क्या| भीड़
को देख कर
ट्रेन में सवार
यात्रियों ने खिड़की
और दरवाजे बंद
कर लिए पर
भीड़ में से
जो अन्दर घुस
आए थे वो
कार सेवको को
मार रहे थे
और उनके सामानों
को लूट रहे
थे और साथ
ही बहार कड़ी
भीड़ मरो-काटो
के नारे लगा
रही थी| एक
लाउड स्पीकर जो
की पास के
मस्जिद पर था
उससे बार बार
ये आदेश दिया
जा रहा था
की "मारो, काटो. लादेन
ना दुश्मनों ने
मारो"| साथ ही
बहार खड़ी भीड़
ने पेट्रोल डाल
कर आग लगाना
चालू कर दिया
जिससे कोई जिन्दा
ना बचे| ट्रेन
की बोगी में
चारो तरफ पेट्रोल
भरा हुआ था|
दरवाजे बहार से
बंद कर दिए
गए थे ताकि
कोई बहार ना
निकल सके| एस-६ और
एस-७ के
वैक्यूम पाइप कट
दिया गया था
ताकि ट्रेन आगे
बढ़ ही नहीं
सके| जो लोग
जलती ट्रेन से
बहार निकल पाए
कैसे भी उन्हें
काट दिया गया
तेज हथियारों से
कुछ वही गहरे
घाव की वजह
से मारे गए
और कुछ बुरी
तरह घायल हो
गए|
अब सवाल उठता
है की हिंदुवो
ने सुबह ८
बजे ही दंगा
क्यों नहीं शुरू
किया बल्कि हिन्दू
उस दिन दोपहर
तक शांत बना
रहा (ये बात
आज तक किसी
को नहीं दिखी
है)| हिंदुवो ने
जवाब देना चालू
किया जब उनके
घरो, गओंवो, मोहल्लो
में वो जली
और कटी फटी
लाशें पहुंची| क्या
ये लाशें हिंदुवो
को मुसलमानों की
गिफ्ट थी और
हिंदुवो को शांत
बैठना चाहिए था
सेकुलर बन कर
या शायद हाँ|
हिन्दू सड़क पर
उतारे २७ फ़रवरी
२००२ के दोपहर
से| पूरा एक
दिन हिन्दू शांति
से घरो में
बैठा रहा| अगर
वो दंगा हिंदुवो
या मोदी ने
करना था तो
२७ फ़रवरी २००२
की सुबह ८
बजे से क्यों
नहीं चालू हुआ?
जबकि मोदी ने
२८ फ़रवरी २००२
की शाम को
ही आर्मी को
सडको पर लाने
का आदेश दिया
जो की अगले
ही दिन १
मार्च २००२ को
हो गया और
सडको पर आर्मी
उतर आयी गुजरात
को जलने से
बचाने के लिए|
पर भीड़ के
आगे आर्मी भी
कम पड़
रही थी तो
१ मार्च २००२
को ही मोदी
ने अपने पडोसी
राज्यों से सुरक्षा
कर्मियों की मांग
करी| ये पडोसी
राज्य थे महाराष्ट्र
(कांग्रेस शासित- विलाश राव
देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य
प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग
विजय सिंह मुख्य
मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित-
अशोक गहलोत मुख्य
मंत्री) और पंजाब
(कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह
मुख्य मंत्री) | क्या
कभी किसी ने
भी इन माननीय
मुख्यमंत्रियों से एक
बार भी पुछा
की अपने सुरक्षा
कर्मी क्यों नहीं
भेजे गुजरात में
जबकि गुजरात ने
आपसे सहायता मांगी
थी| या ये
एक सोची समझी
गूढ़ राजनीती द्वेष
का परिचायक था
इन प्रदेशो के
मुख्यमंत्रियों का गुजरात
को सुरक्षा कर्मियों
का ना भेजना|
उसी १ मार्च
२००२ को हमारे
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार (National Human Rights) वालो ने
मोदी को अल्टीमेटम
दिया ३ दिन
में पुरे घटनाक्रम
का रिपोर्ट पेश
करने के लिए
लेकिन कितने आश्चर्य
की बात है
की यही राष्ट्रीय
मानवा अधिकार वाले
२७ फ़रवरी २००२
और २८ फ़रवरी
२००२ को गायब
रहे| इन मानवा
अधिकार वालो ने
तो पहले दिन
के ट्रेन के
फूंके जाने पर
ये रिपोर्ट माँगा
की क्या कदम
उठाया गया गुजरात
सरकार के द्वारा|
एक ऐसे ही
सबसे बड़े घटना
क्रम में दिखाए
गए या कहे
तो बेचे गए
"गुलबर्ग सोसाइटी" के जलने
की| इस गुलबर्ग
सोसाइटी ने पुरे
मीडिया का ध्यान
अपने तरफ खिंच
लिया| यहाँ एक
पूर्व संसद एहसान
जाफरी साहब रहते
थे| ये महाशय
का ना तो
एक भी बयान
था २७ फरवरी
२००२ को और
ना ही ये
डरे थे उस
समय तक| लेकिन
जब २८ फरवरी
२००२ की सुबह
जब कुछ लोगो
ने इनके घर
को घेरा जिसमे
कुछ कुछ तथाकथित
मुस्लमान छुपे हुए
थे, तो एहसान
जाफरी जी ने
भीड़ पर गोली
चलवाया अपने लोगो
से जिसमे २
हिन्दू मरे और
१३ हिन्दू गंभीर
रूप से घायल
हो गए| फिर
इस घटनाक्रम के
बाद जब भीड़
बढ़ने लगी इनके
घर पर तो
ये औथोरितिज, अपने
यार-दोस्तों को
फ़ोन करने लगे
और तभी गैस
सिलिंडर के फटने
से कुल ४२
लोग मरे| यहाँ
शायद भीड़ के
आने पर ही
एहसान साहब को
पुलिस को फ़ोन
करना चाहिए था
ना की खुद
के बन्दों के
द्वारा गोली चलवाना
चाहिए था| पर
इन्होने गोली चलाने
के बाद फ़ोन
किया डाइरेक्टर जेनेरल
ऑफ़ पुलिस को|
यहाँ एक और
झूट सामने आया
जब अरुंधती रॉय
जैसी लेखिका तक
ने यहाँ तक
लिख दिया की
एहसान जाफरी की
बेटी को नंगा
करके बलात्कार के
बाद मारा गया
और साथ ही
एहसान जाफरी को
भी| पर यहाँ
एहसान जाफरी के
बड़े बेटे ने
ही पोल खोल
दी की उसके
पिता की जान
गई उस दिन
पर उसकी बहन
तो अमेरिका में
रहती थी और
रहती है| तो
यहाँ कौन किसको
झूटे केस में
फंसना चाह रहा
है ये क्लियर
है|
अब यहाँ तक
तो सही था
पर गोधरा में
साबरमती को कैसे
इस दंगे से
अलग किया जाता
और हिंदुवो को
इसके लिए आरोपित
किया जाता इसके
लिए लोग गोधरा
के दंगे को
ऐसे तो संभल
नहीं सकते थे
अपने शब्दों से,
तो एक कहानी
प्रकाश में आई|
कहानी थी की
कारसेवक गोधरा स्टेशन पर
चाय पिने उतरे
और चाय देने
वाला जो की
एक मुस्लमान था
उसको पैसे नहीं
दिए...बल्कि गुजराती
अपनी ईमानदारी के
लिए जाने जाते
हैं...चलिए छोडिये
ये धर्मान्धो की
कहानी में कभी
दिखेगा ही नहीं
आगे बढ़ते हैं|
अब कारसेवको ने
पैसा तो दिया
नहीं बल्कि मुस्लमान
की दाढ़ी खिंच
कर उसको मारने
लगे तभी उस
बूढ़े मुस्लमान की
बेटी जो की
१६ साल की
बताई गई वो
आई तो कारसेवको
ने उसको बोगी
में खिंच कर
बोगी का दरवाजा
बंद कर दिया
अन्दर से| और
इसके प्रतिफल में
मुसलमानों ने ट्रेन
में आग लगा
दी और ५८
लोगो को मार
दिया जिन्दा
जला कर या
काट कर| अब
अगर इस मनगढ़ंत
कहानी को मान
भी लें तो
कई सवाल उठते
हैं:-
क्या उस बूढ़े
मुस्लमान चाय वाले
ने रेलवे पुलिस
को इत्तिला किया?
रेलवे पुलिस उस ट्रेन
को वहा से
जाने नहीं देती
या लड़की को
उतर लिया जाता|
उस बूढ़े चाय वाले
ने २७ फ़रवरी
२००२ को कोई
ऍफ़.आइ.आर
क्यों नहीं दाखिल
किया?
५ मिनट में
ही सैकड़ो लीटर
पेट्रोल और इतनी
बड़ी भीड़ आखिर
जुटी कैसे?
सुबह ८ बजे
सैकड़ो लीटर पेट्रोल
आया कहा से?
एक भी केस
२७ फ़रवरी २००२
के तारीख में
मुसलमानों के द्वारा
क्यों नहीं दाखिल
हुआ?
अब असलियत ये सामने
आयी रेलवे पुलिस
की तफतीस में
की उस दिन
गोधरा स्टेसन पर
कोई ऐसी घटना
हुई ही नहीं
थी| ना तो
चाय वाले के
साथ कोई झगडा
हुआ था और
ना ही किसी
लड़की के साथ
में कोई बदतमीजी
या अपहरण की
घटना हुई| इसके
बाद आयी नानावती
रिपोर्ट में कहा
गया है की
जमीअत-उलमा-इ-हिंद का
हाथ था उन
५८ लोगो के
जलने में और
ट्रेन के जलने
में|
दंगे में ७२०
मुस्लमान मारे तो
२५० हिन्दू भी
मारे| मुसलमानों के
मरने का सभी
शोक मानते हैं
चाहे वो हिन्दू
हो, चाहे वो
मुस्लमान हो या
चाहे वो राजनेता
या मीडिया हो
पर दंगे में
२५० मरे हुए
हिंदुवो और साबरमती
ट्रेन में मरे
५८ हिंदुवो को
कोई नहीं पूछता
है कोई बात
तक नहीं करता
है सभी को
केवल मरे हुए
मुस्लमान दीखते हैं|
एक और बात
काबिले गौर है
क्या किसी भी
मुस्लिम लीडर का
बयान आया था
साबरमती ट्रेन के जलने
पर?
क्या किसी मुस्लिम
लीडर ने साबरमती
ट्रेन को चिता
बनाने के लिए
खेद प्रकट किया?
अब एक छोटा
सा इतिहास देना
चाहूँगा गोधरा के पुराने
दंगो का...क्युकी
२००२ की घटना
पहली घटना नहीं
थी गोधरा के
लिए
१९४६: सद्वा रिज़वी और
चुडिघर ये दोनों
पाकिस्तान सपोर्टर थे ने
पारसी सोलापुरी को
दंगे में मारा
बाद में विभाजन
के बाद चुडिघर
पाकिस्तान चला गया
१९४८: सद्वा रिज़वी ने
ही कलेक्टर श्री
पिम्पुत्कर को मरना
चाहा जिसे कलेक्टर
के अंगरक्षकों ने
बचाया अपनी जान
देकर और उसके
बाद सद्वा रिज़वी
पाकिस्तान भाग गया
१९४८: एक हिन्दू
का गला काटा
गया और करीब
२००० हिन्दू घर
जला दिए गए
जहा ६ महीने
तक कर्फ्यू चला
१९६५: पुलिस चौकी नंबर
७ के पास
के हिंदुवो के
घर और दुकान
जला दिए गए
साथ ही पुलिस
स्टेशन पर भी
मुसलमानों का हमला
हुआ उस समय
वहा के MLA कांग्रेस
के थे और
वो भी मुस्लमान
थे
१९८०: २ हिन्दू
बच्चो सहित ५
लोगो को जिन्दा
जला दिया गया,
४० दुकानों को
जला दिया गया,
गुरूद्वारे को जला
दिया गया मुसलमानों
के द्वारा, यहाँ
१ साल तक
कर्फ्यू रहा
१९९०: ४ हिन्दू
शिक्षको के साथ
एक हिन्दू दर्जी
को काट दिया
गया
१९९२: १०० से
ज्यादा घरो को
जला दिया गया
ताकि ये मुस्लमान
उन जमीनों पर
कब्ज़ा कर सकें
आज वो जमीने
वीरान पड़ी हैं
क्युकी इनके चलते
हिनू वहा से
चले गए
२००२: ३ बोगियों
को जला दिया
गया जिसमे ५८
लोग जल कर
मरे इनमे से
कुछ लोग जो
बचे और बहार
निकलने की कोशिस
किये उनको काट
दिया गया
२००३: गणेश प्रतिमा
के विशार्जन के
समय मुसलमानों ने
पत्थरबाजी की और
इस खबर को
रीडिफ़ और टाइम्स
ऑफ़ इंडिया ने
छपा बाकि किसी
ने भी नही
एक तस्वीर बेचीं जाती
है गुजरात दंगे
के तौर पर
वो है कुतुबुद्दीन
अंसारी की
पर यही मीडिया ये तस्वीरे क्यों नहीं दिखाती जो की ट्रेन जलने से मरे या कोई सेकुलर इनके बारे में नहीं बात करता है?