क्या किसी भी पत्रकार भाई (मित्र) को अगर उनके संस्थान की बुराई करे तो क्या वो उनपर पर्दा डाले या सचाई बयां करे या वो रोजी रोटी को दुहाई दे के इस पे पर्दा नहीं दाल रहा है या वो पत्रकारिता को नहीं मार रहा है, अगर वो रोजी रोटी के का दुहाई दे तो क्या उसको किसी भी राजनेता या अफसरशाही को बुरा कहने का हक है क्या? जो अपने संस्थान से नहीं लड़ सकता वो क्या खाक अपने कर्तव्यों का निरबाह करेगा जनता के लिए, ये सब क्या फिर झूठ नज़र नहीं आ रहा है की मीडिया लोकतंत्रत का चौथा स्तंभ है ... ऐसे मे पत्रकारों को आप क्या कहेंगे की वो उसी सिस्टम हिस्सा हो के रह गया है या वो उस से कभी ऊपर भी उठेगा...
आज के दौर मे पत्रकार को सबसे दमदार हथियार बना चूका है ये राजनितिक दल, आखिर ये पत्रकार किउ किसी भी राजनितिक दल के साथ चले ये किउ नहीं जनता के साथ चलता है, अगर ये राजनितिक दलों के साथ ही चलना पसंद करता है तो हम इसे फिर चौथा स्तंभ किउ कहते है.., किउ न हम उसे पत्रकारिता का दलाल कहे या लोकतंत्र का हत्यारा..
आज के पत्रकार कई मामलो मे फसा हुवा है कही ये ब्लैक मैलिंग, फिरोती तो कही पेड न्यूज़ मे ये सब पत्रकार फसा हुवा है जो इनको नहीं अपना रहा है उसको मजबूरी के तहत या किसी जालसाजी के तहत कानून के चक्कर मे फसाया जा रहा है वैसे इन पत्रकारों को संख्या बहूत ही कम है...
अगर कोई पत्रकार रोजी रोटी के चक्कर मे अगर वो सचाई से भागे तो उसको पत्रकारिता छोर देना चहिये वरना वो खुद का और समाज का बहूत ही बुरा कर रहा है.. अगर कोई भी पत्रकार अगर सचाई से नहीं लिखते है तो उसको पत्रकार कहलाने का कोई हक नहीं है... जहा आप काम कर रहे हो वही पर आपकी आवाज बुलंद नहीं है वही पर आपके आवाज को दबाया जा रहा है तो आप खाक निशपक्छ हो के लिखोगे, आप के लिखावट मे भी वो साफ़ झलकेगा की आप निशपक्छ नहीं हो... अगर किसी भी पत्रकार भाई को नौकरी की चिंता है तो वो पत्रकारिता छोर के किसी और धंधे मे वो अपना किस्मत अजमाए वहा भी अगर वो निशपक्छ नहीं रहा तो वो वहा भी तरक्की नहीं कर सकेगा..
पत्रकार को हिंदुस्तान मे सब उचे दर्जे से देखते है पर कुछ पत्रकार ने इसे सबसे नीचे पाईदान मे रख दिया है...
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