Wednesday, February 22, 2012

अंबरीश कुमार के वॉल पर दिलीप मंडल को अजीत अंजुम ने दौड़ाया


फेसबुक-ट्विटर-ब्लाग-वेब ने इतना तो कर दिया है कि संपादकों को उनके-उनके मीडिया माध्यमों और उनके प्रबंधन के भय से इतर एक जगह गपियाने, बोलने-बतियाने, बहसियाने और लड़ने का मौका दे दिया है. हालांकि बहुत सारे पत्रकार व संपादक अब भी चुप्पी साधे रहते हैं, जुबान बंद किए रहते हैं, शायद इस भय से कि कुछ ऐसा न निकल जाए, लिख जाए जिससे उनकी नौकरी पर बन आए. तो नौकरी करने वाले क्लर्क टाइप के पत्रकार-संपादक भले सोशल नेटवर्किंग साइट्स व न्यू मीडिया से दूरी बनाए रखें, लेकिन जिन लोगों ने यहां सक्रियता दिखाई है, उनके जरिए बहुत ढेर सारे पत्रकारों को बहुत कुछ सीखने समझने का मौका मिल रहा है. कहा भी जाता है कि पत्रकार-संपादक जहां होंगे वहां बहस होगी, बातें होंगी, चर्चाएं होंगी. फेसबुक ठीकठाक चौपाल बनता जा रहा है जहां खूब बातचीत पत्रकारों के बीच हो रही है.

ताजा प्रकरण अंबरीश कुमार के फेसबुकी अड्डे से जुड़ा है. अंबरीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं. जनसत्ता अखबार के यूपी ब्यूरो चीफ हैं. खरा बोलने और बेबाक लिखने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अपने वाल पर कुछ लिखा तो उस पर दिलीप मंडल ने ललकारते हुए कुछ कमेंट कर दिया. दिलीप मंडल का अब वो कमेंट उपलब्ध नहीं है क्योंकि उन्होंने अजीत अंजुम द्वारा दौड़ाए जाने के बाद अपनी कमेंट डिलीट कर गोल हो गए हैं. अजीत अंजुम ने दिलीप मंडल के हिप्पोक्रेसी की जमकर क्लास ली. खूब लिखा. लीजिए, पढ़िए...

Ambrish Kumar : अपने पुराने साथी आजतक के अमिताभ श्रीवास्तव जो सरोकार की राजनीति से भी जुड़े रहे, सोनी सोरी की पोस्ट पर जो लिखा, वह जस का तस पेश है. अजीत अंजुम का जबसे मैं सही नाम लिखने लगा हूँ, वे नजर भी नहीं डालते, खैर आगे पढ़े अमिताभ का कमेंट... Amitaabh Srivastava -पत्रकारिता में दिख रही ये जमात या तो ज़्यादातर उन कारखानों की देन है जिन्हें प्रोफेशनल जर्नलिज्म की सम्मानजनक शब्दावली में मीडिया स्कूल कहा जाता है और जहाँ सफलता के लिए विचारधारा विहीन होना ऑब्जेक्टिव होने की पहचान बना दिया गया है या फिर खाए पिए अघाए लोगों की मंडली जो बिल्डर, ब्रोकर और बैंकर की भाषा बोलती है और जिसने उदारवादी अर्थव्यवस्था का उदारता से फायदा उठाया है, जिसे अपने लाभ के अलावा किसी चीज़ से खास सरोकार नहीं है. इसमें समाज में बदलावों और पत्रकारिता के शिखर पुरुषों की भी महान भूमिका है. हमें बिलकुल हैरान नहीं होना चाहिए अगर ऐसी ही जमात से निकले कुछ लोग आगे चल कर प्रखर पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका अवार्ड जैसे पुरस्कारों से सम्मानित भी किये जाएँ.

        Ajit Anjum अरे भाई अंबरीश जी , मैं तो आपके लिखे का पुराना मुरीद हूं ...मैं तो कई बार लिख चुका हूं कि जनसत्ता में आपकी हर खबर कम से कम मैं जरुर पढ़ता हूं ...मैं आपके लिखे शब्दों को नजरअंदाज नहीं कर सकता भाई साहब
       
        Ambrish Kumar अजीत जी आपने दो एंकर की तारीफ़ की और मैंने बाकायदा उन्हें घंटे भर सुना मैंने तहलका की एक नई पत्रकार प्रियंका दुबे का लिखा पढने को कहा था ताकि प्रिंट की प्रतिभा को भी समझा जाए पर शायद आप पढ़ नहीं पाए .
         
        Ajit Anjum अंबरीश जी , प्रिंट से तो टीवी की तुलना ही नहीं की जा सकती . आज भी टीवी वाले बिना अखबार के किसी काम के नहीं है ...टीवी नहीं देखकर आपका काम चल सकता है , अखबार पढ़े बगैर नहीं .........प्रिंट में तो सैंकड़ों नहीं हजारों ऐसे पत्रकार हैं , जो टीवी की पूरी जमात पर भारी पड़ सकते हैं ...मुझे याद है साल में दो दिन ऐसे होते हैं , जब घर में अखबार नहीं आता , होली के अगले दिन और दिवाली के अगले दिन . दो दिन टीवी की खबरें विधवा की मांग की तरह हो जाती हैं क्योंकि उन्हें खबरों की खुराक ही नहीं मिलती .
       
        Ambrish Kumar किसी विधा पर मै नहीं जा रहा कंप्यूटर पर काम करते हुए भी बीच में खबरिया चैनल देखता रहता हूँ जिनमे पता चलता रहे प्रिंट का हाल बहुत अच्छा नहीं है तीन दशक बाद फिर एक नए प्रयोग की जरुरत प्रिंट में दिख रही है .
       
        Amitaabh Srivastava तो गोया टीवी वालों का सुहाग उधार के सिन्दूर से सलामत है. क्या बात है! प्रियंका का लेख सचमुच अच्छा है और उनकी समझ और संजीदगी का अंदाज़ा लगाने में मदद कर सकता है.
       
        Shailendra Jha अजित सर, मैं अमिताभ जी की बात से पूरी तरह सह्मत्र हूँ, प्रिंट के हिंदी के उन पत्रकारों की बात छोड़ दीजिये यदि जो आपलोगों की पीढ़ी के हैं, तो हमारी पीढ़ी के प्रिंट वाले भी वैसे ही हैं, विचारधारा विहीन पत्रकारिता, रोज़गार तो दिला सकती है पर पत्रकार नहीं बना सकती. सर मैं आपको एक उदहारण दूं मेरे यहाँ एक अनकर रखी गयी, एक दिन वीडियो लाइब्ररी में मैं कुछ फूटेज तलाश रहा था, तो मेरे पास आई और कहा '' सर कुड यु प्लीज़ टेल मी, व्हाट इस थिस मांगो मोर ? '' मैं सोचने लगा तभी मेरी नज़र उस वि टी आर की ओर गयी जिस पे वो मांगो मोर के फूटेज तलाश रही थी., मुझे वहां कहीं म्यांमार लिखा दिखा. मैंने पूछा '' आर यु टाकिंग अबाउट म्यांमार'' उसने बोला हाँ सर हाँ सर वही बोल रही थी. बताइए सर क्या होगा उस मुल्क का जहाँ म्यांमार और मेंगो मोर का फर्क नहीं जानने वाला खुद को पत्रकार कहे और उसे २०,००० रुपये दिए जा रहे हों. और बताऊँ मैं आपको एक बहुत सीनियर एंकर हैं - उन्होंने सुखराम को पूरे दिन सूखाराम पढ़ा , बाद में मुझे पता चला उन्हें सुखाराम वो अज्ञानता में कह रहे थे, उछारण दोष की वजह से नहीं
       
        Ambrish Kumar दिलीप मंडल और अमिताभ खुद ऎसी जगहों पर है जहाँ से काफी कुछ किया जा सकता है हालंकि अजित अंजुम का पहली पहले ही कहना है कि टीआरपी वाली पत्रकारिकता तलवार के धार पर चलने जैसी जोखम भरी है प्रिंट में इतना जोखम नहीं है पर प्रसार का दबाव भी कम नहीं होता .पर रास्ता बताए और दिशा तो दे नए लोगो को
       
        Shailendra Jha ‎.दिलीप जी ये सवाल पूछने के पहले एक सवाल का जवाब दे दें, जबसे आपने ,मुझे ब्लाक किया , आपसे ये सवाल पूछने का दिल था, पूछ नहीं प् रहा था, बड़े मौके से मिले हैं. आपको हिन्दू कोलेज का वो सभागार याद ही होगा जिसमे एक उत्साहित विद्यार्थी ने आपसे पूछा था क्या कोर्पोरेट मीडिया के अन्दर काम करते हुए, सिस्टम को ठीक नहीं किया जा सकता ? आपका जवाब था आपलोग हर बार क्रांति के लिए लाला के पैसे का मुंह क्यों देखते हैं ? क्या ह्जो गया दिलीप जी ? कोर्पोरेट मिडिया अब लाला मुक्त हो गया क्या ? और यदि नहीं हुआ तो उस बच्चे के जीवन का क्या जो आपकी बात को परमसत्य मानकर दिल्ली छोड़कर चला गया , क्रांति करने, भीख मांग रह है, अल्सर हो चुका है उसे और वो अपना इलाज़ नहीं करवा सकता ? करियर अलग ख़राब हो गया ? आप मौकापरस्त हैं ये बात भी बोलेंगे क्या किसी सभागार में ?
       
        Ambrish Kumar मंडल जी की इस बात के बाद सारी गलत फहमी दूर हो जानी चाहिए ,पर पत्रकारिता से भी कुछ तो किया ही जा सकता है अगर वह ढंग से हो जाए .दोस्तों निजी टिपण्णी न करे
     
        Shailendra Jha जी आप करने पर कहाँ कुछ करते हैं ? तर्क नहीं झेल पाने पर कर दिया था ब्लोक ? अच्छा तो आप इन दिनों दुनियावी ज़रूरतों के चलते आप रोज़ी रोज़गार में जुटे हैं और घर भरने के बाद फिर क्रांतिकारी की भूमिका में आयेंगे ? अच्छा मतलब आप क्चुह्ह समय क्रांतिकारी रहते हैं और फिर कुछ समय तक घर भरने वाले ? तो अब जब आपने खुद मान लिया है की आप इन दिनों घर भरने में लगे हैं तो क्यों न अ कुछ दिन के लिए क्रांति का चोला फेंक देते हैं ? फिर मौका देख कर पहन लीजियेगा
     
        Shailendra Jha अम्बरीश सर आप बड़े हैं, गलती हो तो माफ़ कर दीजियेगा बच्चा मानकर पर ये मैं बेहद ज़रूरी सवाल पूछ रहा हूँ . आप इनसे पूछ लीजिये कि इण्डिया तोड़े ज्वाइन करने के पहले जो इनका फेसबुक प्रोफाइल था वो इन्होने दिअक्तिवेत क्यों किया ? फिर भी यदि आप चुप रहने को कहते हैं तो मैं अब कुछ नहीं पूछुंगा
       
        Shailendra Jha सर जी असली मंडल मंदिर वाले तो आप हैं, मैं तो उस दौर में अंगूठा चूसता था, वो अप्क्मे दौर में हुआ था, मेरा दौर ये है इसमें ऐसा कुछ नहीं होगा, लिख कर दूं कहीं ?
       
        Shailendra Jha आप क्या हैं ये मैं कैसे कहूँ ?और मेरी नाराज़गी भी इसी चीज़ से है कि आप कभी कुछ कहते हैं कभी कुछ . किताब ज़रूर पढूंगा, नाम बताने के लिए शुक्रिया
       
        Ajit Anjum दिलीप जी , पिछले कई सालों से क्रांतिकारिता बघार रहे थे . बड़ी -बड़ी बातें कर रहे थे . लाला पत्रकारिता , दलाल पत्रकारिता , कॉरपोरेट पत्रकारिता .,,,आदि आदि ...और उसी कॉरपोरेट पत्रकारिता की गोद में जा बैठे ...मैं तो इंतजार कर रहा हूं कि कब दिलीप मंडल जी के संपादन में इंडिया टुडे का सेक्स सर्वे वाला विशेषांक निकलता है ...वैसे पिछले दिनों से प्रयोजित पन्नों से भरे कॉलेजों वाले विशेषांक निकले हैं ....देखकर अब तक नहीं लगा कि दिलीप जी जिन वजहों से मीडिया को गरियाते रहे हैं , वहां जाकर कोई क्रांति कर रहे हों .....हमें तो बहुत उम्मीद थी कि दिलीप मंडल जी अब पत्रकारिता को बदलने की दिशा में कुछ करेंगे ...कॉरपोरेट पत्रकारिता का जवाब देने के लिए सरोकारी पत्रकारिता करेंगे लेकिन पतली गली से वहां जाकर स्थापित हो गए .......
       
        Shailendra Jha फिर आ गए क्रन्तिकारी मुद्रा में ? आपने अभी कहा इन दिनों आप नौकरी कर रहे हैं?
       
        Ambrish Kumar मैंने भी पहले भी कहा था निजी टिपण्णी न करे जो किसी को आहत करे ऎसी एक टिप्पणी हटा दी गई है तर्कों पर बात करे गली गालौज के बिना भी कहा जा सकता है
       
        Shailendra Jha आपने याद कहाँ दिलाया ? पत्रकारिता का पहला लेसन भी जिसने पढ़ा है वो जानता है, पत्रकार निष्पक्ष होता है, जब तक पत्रकार होता है, आपतो लुम्पेनिज्म के स्टार पर जाकर एक्टिविज्म करने के लिए जाने जाते हैं
       
        Shailendra Jha ambrish sir maafi, ab aur nahi poochunga kuchh, kathor tip\[paniyon ke liye maaf kar dijiyega
       
        Shailendra Jha दिलीप जी मुझे आपको देखकर शंकराचार्य का '' शिशु मानव'' याद आता है वो तो आप अपने मन में सोच रहे होंगे कि कैसी कमेंट्स हैं
       
        Praveen Kumar Jha mera 8 sal ka beta jab kabhi mujhe nirottar karta hai to mai use jawab deta hu - beta tu abhi bachha hai ....
       
        Shailendra Jha saboot rahne dijiye dileep ji aap aaye aur apki itni lagi ye logon ko to dekhne dijiye, apki tippaniyan itni bekar hain ki 1 tarah se delted hi hain, to rahen dijiye unhe
       
        Ajit Anjum आपने पहले भी लाखों शब्दों का ज्ञान बांचकर खुद को कई सालों तक महान साबित करने की कोशिश की , कॉरपोरेट पत्रकारिता के खिलाफ स्वंयभू चैंपियन बनकर सेमिनारों में भाषण देते रहे ...देश भ्रमण करके मीडिया के अंडरवर्ल्ड के बारे में बांचते रहे और जब उस कॉरपोरेट घराने में एक अदद नौकरी मिली तो सब डिलीट कर दिया ....इसमें नया क्या है ....
       
        Ajit Anjum वैसे जाते जाते दिलीप जी बताते जाएं कि इंडिया टुडे का सेक्स सर्वे वाला विशेषांक निकलेगा या नहीं ....प्रायोजित पत्रकारिता वाले पन्ने भी तो आपके ही संपादन में तैयार होते होंगे न ...बड़े-बड़े सेठाधीशों के फोटो वाले विशेषांक का पन्ने भी आप के नेतृत्व में ही तैयार होते होंगे न....इंडिया टुडे में आपको तसल्ली तो मिल रही है न ... पिछले कुछ सालों से जिस किस्म की पत्रकारिता की बुनियाद आप फेसबुक ,सभा-सेमिनारों और ज्ञान मंडलियों में डाल रहे थे , वो वहां तो आपके नेतृत्व में फलफूल रहा है न ....
       
        Anant Kumar Jha ‎Ajit Anjum@
        लगता है मामला फंस गया है कहीं,
        बहस का रूप कुतर्कों मैं बदल रहा है.
       
        Praveen Kumar Jha mujhe dar hai log apna account de-activate na kar le.
       
        Anant Kumar Jha लेकिन सवाल यह कि लेकिन दिलीप मंडल ने अपने कमेन्ट डिलीट क्यों कर दिया?
       
        Anant Kumar Jha ‎Shailendra के इमोशन का असर है या Ajit Anjum के मामले में पड़ने के कारण ..
       
        Ajit Anjum अंबरीश जी , न चाहते हुए भी मैंने इतनी तल्ख और काफी हद तक व्यक्तिगत टिप्पणियां की हैं ...वो भी आपके वाल पर ...इसके लिए माफी चाहूंगा लेकिन ये जनाब पिछले तीन सालों से सरोकारी पत्रकारिता के चैंपियन बने थे और कभी सामने से तो कभी परदे के पीछे से छाया युद्ध लड़ रहे थे ......मेरा तो सिर्फ ये कहना है कि पहला पत्थर वो मारे जो पापी न हो .....ये नहीं हो सकता कि बेरोजगारी में क्रांतिकारी बन जाएं और जिस किस्म की पत्रकारिता के खिलाफ मुहिम चलाएं उसी में इंट्री के लिए जुगत लगाकर कुर्सी हासिल कर लें.....मुझे पता था कि दिलीप जी आज न कल यही करने वाले हैं .,...मोह भंग तो उनका हुआ होगा जो उन्हें महानता की तरफ अग्रसर एक नितांत सरोकारी पत्रकार मान रहे थे ....
       
        Praveen Kumar Jha aap bandhugan bura na mane parantu mujhe chinta ho rahi hai ...
       
        Sumant Bhattacharya अंबरीश भाई...जिन पत्रकार की बात चल रही है...उनसे पिछले दिनों फेसबुक मेरा एक ही निवेदन था...कृपया जातीय गौरव की बात करें..जातीय द्वेष नहीं....दूसरे इतिहास के स्थापित तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर और गलत तरीके से ना पेश करें...इतना करें तो पत्रकारिता नहीं मनुष्य जाति पर उपकार होगा....और ऐसा करते समय बाबा साहेब अंबेडकर की मेधा को लांघने की जुर्रत भी नहीं करेंगे...।।आमीन।।
       
        Ajit Anjum लगता है दिलीप जी चले गए ...लेकिन मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला कि इंडिया टुडे हिन्दी में सेक्स सर्वे आएगा या दिलीप जी उस पर रोक लगा पाएंगे ...या फिर दिलीप जी कहेंगे कि इस तरह के सर्वे समाजिक उत्थान और सरोकारी पत्रकारिता के लिहाज से कितना जरुरी है ...मैं तो हिन्दी इंडिया टुडे पहले से देखता - पढ़ता और पलटता रहा हूं लेकिन दिलीप जी के संपादक बनने के बाद गौर से देखता हूं . वजह साफ है ...ये जानना चाहता हूं कि महानता की तरफ अग्रसर दिलीप जी जैसे लोगों के आने से कॉरपोरेट पत्रकारिता का शुद्धिकरण कैसे होता है ......उस दिन का भी इंतजार कर रहा हूं जब दिलीप भी फिर इस कॉरपोरेट पत्रकारिता के गटर से बाहर आकर सभा -सेमिनारों में अच्छी -अच्छी ...बड़ी - बड़ी बातें कहते नजर आएंगे .......
       
        Ambrish Kumar दिलीप मंडल का अपना कमेंट डिलीट करना बहुत अच्छा संकेत मै नहीं मानता उनसे मेरे भी बहुत मुद्दों पर मतभेद रहे है और वे मेरे अख़बार के भी सहयोगी रहे है .हमें लगता है दूसरों की बात सुनने की सहनशीलता भी जरुरी है दूसरे किसी को भी जो तर्कों पर चल रहा है बहस छोड़कर नहीं जाना चाहिए था मैंने पाहले ही एक टिपण्णी हटा दी थी और सवर्ण सामंती और जातिवादी धारा का खुद मै भी विरोधी हूँ .
       
        Praveen Kumar Jha swasthanam gachhami !
       
        Ajit Anjum दिलीप जी से दिव्य ज्ञान प्राप्त करके क्रांतिकारी बन गए कितने बच्चे उन्हें खोज रहे हैं और कह रहे हैं ..हे महाप्रभु, हमें क्रांतिकारिता का पाठ पढ़ाते - पढ़ाते और कहां समा गए ...हमें बीच मझधार में क्यों छोड़ गए ....लोग इंडिया टुडे के पन्ने पलटते हैं दिलीप मंडल फैक्टर की तलाश करते हैं तब उन्हें लगता है कि दिलीप जो कह रहे थे और जो कर रहे हैं , उसमें कितना फर्क है .....
     
        Sumant Bhattacharya मुझे लगता है कि बड़ा मुद्दा ये नहीं है कि हिंदी पत्रकारिता किधर जा रही है..भले बात टीवी की हो या फिर प्रिंट की। मुझे एक कमी बेहद खलती है कि भाषाई पत्रकारिता में, खासतौर पर में हिंदी पत्रकारिता में नीतियों की बेहद कम समझ है...या कहूं तो ना के बराबर। यदि आप पॉलिसी स्टोरी की बात करने वाले पत्रकार की बात करें तो शायद ही नाम गिनवा पाएं या स्टोरी का जिक्र कर पाएं। मुझे लगता है कि यही वजह की हिंदी पत्रकारिता अपनी जगह से आगे नहीं बढ़ पा रही है...और यही वह दिशा है जिस पर हिंदी पत्रकारिता को नई ज़मीन तलाशनी होगी, आज नहीं तो कल.....।।आमीन।।।

        Satyendra Pratap Singh बहुत बड़ी बात लिख दी आपने.

        Sumant Bhattacharya सत्येंद्र भाई..क्या कोई गुस्ताखी हो गई क्या..
 
        Ajit Anjum अंबरीश जी , दिलीप जी ने ये कहकर अपने कमेंट्स डिलीट किए कि वो पॉलिटिक्स नें नहीं हैं ...लेकिन मुझे लगता है कि पिछले तीन सालों से वो खालिस राजनीति कर रहे थे ...नेताओं की तरह अपनी constituency को address कर रहे थे ...इसका जो फल उन्हें मिलना था , वो उन्हें मिल गया . अब वो फलाहारी बाबा बन कर संपादक की कुर्सी की गरमाहट के मजे ले रहे हैं ...आपको और हमको क्या पता कि तीन सालों की चैंपियनशिप से उन्हें क्या - क्या मिल गया ....
   
        Satyendra Pratap Singh वाह... बहुत अच्छी बहस है. काश दिलीप जी का पक्ष रखने वाला भी कोई होता:)
   
        Satyendra Pratap Singh Sumant Bhattacharya जी, मै तो नीरा जी की बड़ी इज्जत करता हूँ:)
     
        Sumant Bhattacharya हर व्यक्ति को इस व्यवस्था में अपनी तरह से राह बनाने का हक है...बस तरीका या कदम संविधान विरोधी नहीं होना चाहिेए...जातीय गौरव की राजनीति करना संविधान सम्मत है और इसे व्यक्तिगत नहीं माना जा सकता। आदि इतिहास में इसके बीज हैं और साथ खड़ा है एक मजबूत नैतिक आधार...।एतराज वहीं पर हो सकता है जब बात सूक्ष्म आरक्षण की की जाए और संविधान और लोकतंत्र के बुनियादी उसूलों के विरुद्ध हों...दिलीप मंडल ने यदि ऐसा करके अपनी जगह बनाई है तो सिर्फ जातीय द्वेष पर उसका प्रतिवाद नहीं किया जा सकता। प्रतिवाद और विरोध के ऐसे आधार वगैर शक संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा के खिलाफ हैं।।।।आमीन।।।
     
        Ajit Anjum दिलीप जी , अब इंडिया टुडे की नौकरी करते हुए इस बहस में हिस्सा नहीं ले सकते क्योंकि उनके लिखे हजारो शब्द ही उनकी कथनी और करनी के फर्क की चुगली कर देंगे ....अब या तो वो एम जे अकबर और अरुण पुरी पर दबाव बनाकर इंडिया टुडे को बदल दें या फिर जैसा चल रहा है , उसमें चलते हुए मोटी तनख्वाह पर मौज करते रहें ...
     
        Satyendra Pratap Singh ‎#नीरा राडिया.
       
        Satyendra Pratap Singh पहले कोई "योग्य " व्यक्ति प्रधानमंत्री बने, फिर सब योग्य हो जाएँ!
       
        Satyendra Pratap Singh वर्ग संघर्ष... हमेशा चलता रहता है.
       
        Ajit Anjum दिलीप जी , अब बुर्जुआ हो गए हैं ...
       
        Satyendra Pratap Singh मुझे तो अरुंधती याद आ रही हैं. उनमे हमेशा "निम्न मध्य वर्ग" जिंदा रहेगा, भले ही किसी स्तर पर समझौता कर जिंदगी काटनी पड़े! वो भारत में हमेशा सर्वहारा रहेंगे!
   
        Satyendra Pratap Singh चार पैसे में क्रांति तहखाने में चली जाती है, ये तो सर्वहारा का हमेशा से संकट रहा है:)
     
        Sumant Bhattacharya Satyendra Pratap Singh ,भाई, लेकिन नीरा के बारे में तो मैंने कुछ भी नहीं लिखा
     
        Akhilesh Pratap Singh Dilip Mandal जी पत्रकारिता जगत में कॉरपोरेट की निर्लज्ज घुसपैठ को गरियाते रहे और फिर एक ऐसी मैगजीन में चले गए जो तकरीबन उन्हीं उसूलों पर चलती है, जिनकी मुखालफत दिलीप जी करते रहे हैं. . ..... तो मान लिया जाए कि एक आदमी जो कबीर बन सकता था, आखिरकार बिहारियों की जमात में चला गया..... . . लेकिन ऐसा कहते हुए उन पर भी नजर डालें जो तमाम मजबूरियों के चलते ही सही पहले ही बिहारियों की जमात में तो हैं, लेकिन जिन्हें अपनी हालत से कोई शिकायत भी नहीं है. ..... . मुझे नहीं मालूम दिलीप जी ने अपने कमेंट्‌स किस वजह से हटाए हैं, वह ऐसा नहीं करते तो अच्छा लगता. . .
     
        Tahira Hasan Ambrish ji don,t you think print and electronic media is now controls by corporate even journalists also so naturally do not expect any ethics from them they are following shamelessly corporate loot sell every thing for profit.......virtual world is constructed in media and that has become more real than the real world
       
        Sumant Bhattacharya फ्रांसिसी क्रांति का एक नायक हुआ है मिराबो...जो आखिर तक कहता रहा कि मेरे व्यक्तिगत और निजी जीवन से क्रांति को क्या मतलब....मैं जो व्यवस्था के बारे में कह रहा हूं...उसके निहितार्थ को समझो...लेकिन प्रति क्रांतिकारियों ने मिराबो को गिलोटिन पर चढ़ा दिया। लेकिन उसके निहितार्थ बाद में लोकतंत्र के आधार बने और उसके कई निहितार्थ भारतीय संविधान में भी निहित हैं..., जरूरी नहीं कि व्यवस्था से भिड़ने वाले को रास्ते में उतरना ही हो...यदि ऐसा है तो गांधी को एक बार नहीं,,,सैकड़ों बार खारिज करना होगा....ये सारी बातें मित्र दिलीप मंडल पर लगाए जा रहे एकतरफा आक्षेपों पर कह रहा हूं...सविनम्रता और शालीनता के साथ...।।आमीन।।
       
        Satyendra Pratap Singh Sumant Bhattacharya भाई, अब सोने निकलता हूँ, नहीं तो तमाम लोग मुझे फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में से भी निकाल देंगे. बड़े लोगों की बात में नाहक नाक नहीं घुसेड़नी चाहिए:) शुभरात्रि.
       
        Ajit Anjum अंबरीश जी , अब आप चाहें तो मेरे कमेंट्स को भी डिलीट कर सकते हैं क्योंकि नक्कारखाने में तूती की आवाज का कोई फायदा नहीं .....या कहें तो मैं डिलीट कर दूं
       
        Sumant Bhattacharya अंबरीश भाई...आप एक बहुत कुशल कैंपेन मैनेजर के साथ, इस कला के भी कुशल खिलाड़ी हैं कि कैसे मुद्दा उछाला जाता है...बहस गरमाई जाती है और फिर खुद कोने में बैठकर मजा लिया जाता है। आज काफी दिनों बाद आपकी यही अदा एक बार फिर देख रहा हूं...मुबारक हो।।।आमीन।।
       
        Satyendra Pratap Singh Ajit Anjum बॉस, अम्बरीश जी ऐसे नहीं हैं. वो दुर्लभ/विलुप्तप्राय लोगों में से हैं, जो सब कुछ सुनने और उस पर विचार करने के आदी हैं:)
       
        Ajit Anjum सत्येन्द्र जी , मैं अंबरीश जी को कम से कम 22 सालों से जानता हूं और बेहद करीब से ...कई सालों तक हम पड़ोसी भी रहे हैं ....
       
        Satyendra Pratap Singh Ajit Anjum बॉस. मै बहुत कम सालों से जानता हूँ, लेकिन दावा ये है कि मेरी भी समझ कमजोर नहीं है, जिसके चलते मैंने ऐसा लिख मारा. हो सकता है कि गलत होऊं. अगर गलत होऊंगा तो ये गाकर काम चला लूँगा कि एक चहरे में कई चेहरे छुपा लेते हैं लोग:)
       
        Ajit Anjum अब आप पूरी तरह से सही हैं ...............और बॉस नहीं कहेंगे तो भी काम चल जाएगा......
       
        Rajendra Tiwari दिलीप जी पहले राघव बहल के सीएनबीसी में भी रह चुके हैं दलाल स्ट्रीट की महानता बखारते हुए, इस बात को मत भूलिये अजीत जी, जब भी रही भावना जैसी, दिलीप जी ने प्रभु मूर्ति देखी तब तैसी!!!
       
        Sumant Bhattacharya आखिर में एक बात...मीडिया इंडस्ट्री में यदि कोई पत्रकार खुद को सार्थवाह होने का मुगालता पाले हुए है तो पाले रहे। मैं तो एक ही रिश्ता मानता हूं..नौकर और मालिक का। जिसके पास पूंजी है वो मालिक है और जो महीने की दिहाड़ी पर है वो सिर्फ नौकर है। ये दीगर है कि कितने पत्रकार इस फख्र से नौकरी करते हैं कि यदि मालिक को अपनी पूंजी पर गुमान है तो हम नौकरों को अपनी मेहनत औ मेधा का गुरूर है।।।आमीन ।।
       
        Ajit Anjum राजेन्द्र जी , सही कह रहे हैं आफ
       
        Satyendra Pratap Singh Ajit Anjum बॉस, आपकी दाढ़ी सफ़ेद हो गई है और मेरी अभी नहीं :)
       
        Satyendra Pratap Singh Rajendra Tiwari जी, अजीत अंजुम जी ने पहले भी कई बहसों में तमाम सवाल उठाए हैं दिलीप जी की बहसों पर. अंतर सिर्फ इतना है कि अब दिलीप जी जवाब नहीं देते. शायद तब भी नहीं देते थे. कुछ ऐसे सवाल होते हैं, जिनका मास में जवाब देना संभव नहीं होता होगा. सब कारोबार का मामला है और मजदूर की एक सीमा होती है :(
       
        Dilip C Mandal ओह, आप लोग अभी भी वहीं खड़े हैं........ Anant Kumar Jhaजी, Shailendra Jha जी, Praveen Kumar Jha जी, Sumant Bhattacharya जी, Rajendra Tiwari जी, Ajit Anjum जी, Satyendra Pratap Singhजी, और भी तमाम माननीय लोगों.... आप सब का आभार, आप लोगों ने इतनी अच्छी-अच्छी बातें कीं. अंबरीश जी, माफी चाहूंगा. मैं इस सुख के संसार में व्यवधान डालने की मंशा नहीं रखता. अपने कमेंट इसीलिए हटाए थे.
       
        Harishankar Shahi यहाँ बहुत बड़े लोगों के बीच हम तो एकदम नाबालिक हैं और नाबलिकों के गुनाह भी कम होते हैं तो हम कहना चाहेंगे कि जितने भी बड़े धड़े हैं यहाँ उन्होंने कभी किसी को भी मौका दिया है कि वह पत्रकारिता में आगे आये वह भी बिना "अपनी तरह" से ठोक बजाकर देखने के, यह ठोक बजाना भी पत्रकारिता से अलग होता है यह कई जगह दिखा. कम से कम हमारे अपने अनुभव यही हैं, यह भी तो क्रांतिकारिता ही है जहाँ किसी को "जाति औरजेब में पाती" नहीं उसके काम के आधार पर मौका मिलता हो. खैर बड़े लोग तो बड़े हैं इनकी बहस में नहीं पड़ना चाहिए, बड़ों की संख्या ज्यादा है. अब "जाति में जाति" का कोटा बनाने भी बहुत है.
       
        Ambrish Kumar सुखी संसार में जमकर व्यवधान डाल सकते है ,सामाजिक बदलाव की ताकतों का विपरीत परिस्थितियों में हम लोगों ने भी साथ दिया है .पत्रकारिता में बहुत से ऐसे लोग ही जिन्होंने समाज में तनकर खड़े होने का साहस भी दिखाया है चाहिए मंडल का आंदोलन हो या मंदिर का .हर पत्रकार 'कारसेवक 'नहीं बन गया था .
       
        Ambrish Kumar भाई लोगो वह कमेन्ट ही डीलिट किया था जिसमे जानवरों से तुलना करने का प्रयास किया गया था शब्दों की कमी तो है नहीं फिर जंगल क्यों जा रहे है .अजीत जी जबरन कोई कमेन्ट क्यों डीलिट करा जाएगा बहस है तो ठीक से चले और जातीय श्रेष्ठता का आभास न हो .
       
        Satyendra Pratap Singh Dilip C Mandal बॉस, मेरे साथ तो बड़ा अत्याचार हुआ. आपके कमेन्ट पढ़ ही नहीं पाया :(
       
        Rishi Kumar Singh अजीत जी@ पत्रकारिता पर खुली बहस करते हैं। एक बार आईआईएससी में सुनने का मौका मिला था। पत्रकारिता के ताने-बाने में गलत-सही पर बात चल रही थी। हालांकि उनके पूरे व्याख्यान से माफी मांगने के शब्द ज्यादा समझ में आये थे। मुझे लगा कि जैसे वे कह रहे हों कि - मेरा जो तरीका है,बेशक गलत है। लेकिन यहां सब मैनेज करना (साधना) पड़ता है। ......चूंकि अंजुम जी स्वीकार करके शामिल हैं और दिलीप जी विरोध करके....इसीलिए नूराकुश्ती का आयोजन है।

प्रदेश महासचिव कुलजीत चहल पर पार्टी और वरिष्ठ नेताओं की छवि धूमिल करने के गंभीर आरोप

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