Monday, March 5, 2012

पुरुष को गठरी बना ले चलने में सक्षम हो नारी

राममनोहर लोहिया
प्रख्यात चिंतक राममनोहर लोहिया का कहना था कि भारतीय नारी द्रौपदी जैसी हो, जिसने कभी भी किसी पुरुष से दिमागी हार नहीं खाई। 

हिंदुस्तान के लोग दुनिया के सबसे ज्यादा उदास लोग हैं, क्योंकि वे दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब और बीमार लोग हैं। एक और उतना ही बड़ा कारण यह भी है कि उनके मन में, खासकर इतिहास के पिछले काल में, खास तरह का झुकाव आ गया। 

वे दुनिया से अलग रहने का एक दर्शन मानते हैं, जो तर्क में और अंतर्दृष्टि में बहुत ऊंचा है, लेकिन व्यवहार में वे जिंदगी से बुरी तरह चिपके रहते हैं। जिंदगी से उनका मोह इतना ज्यादा होता है कि किसी कोशिश में अपने को खतरे में डालने की बजाय, गरीबी और कष्ट की बुरी हालत में पड़े रहना पसंद करते हैं। और शक्ति के लोभ का प्रदर्शन इनसे ज्यादा दुनिया में कहीं और नहीं होता।

मुझे यकीन है कि वर्णो और स्त्रियों के कटघरे आत्मा के इस पतन के लिए बुनियादी तौर पर जिम्मेदार हैं। इन कटघरों में इतनी ताकत है कि ये जोखिम उठाने और खुशी हासिल करने की सारी ताकत को खत्म कर दें। जो लोग समझते हैं कि आधुनिक आर्थिक ढांचे के जरिए गरीबी मिट जाने पर ये कटघरे अपने आप टूट जाएंगे, वे बहुत बड़ी गलती करते हैं। गरीबी और ये कटघरे एक-दूसरे के पैदा हुए कीड़ों पर पलते हैं। 

देश की सारी राजनीति में राष्ट्रीय सहमति का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है, चाहे जानबूझ कर या परंपरा से, कि शूद्रों और औरतों को, जो हमारी आबादी का तीन-चौथाई भाग हैं, दबा कर और राजनीति से अलग रखा जाए। 

स्त्रियों की समस्या मुश्किल है, इसमें कोई शक नहीं। उनकी रसोई, बुरी तरह धुआं देने वाले चूल्हों की गुलामी बहुत ही बुरी है। उसे खाना बनाने का एक निश्चित समय मिलना चाहिए। उसे भुखमरी और बेकारी के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में हिस्सा तो लेना ही चाहिए, लेकिन उसकी समस्या और भी आगे जाती है।

माता-पिताओं ने आंखों में आंसू भरकर मुझे बताया है कि अगर दहेज की पूरी रकम देने में कुछ कठिनाई हो, तो उनकी लड़कियों से किस तरह बुरा बर्ताव किया जाता है और कभी-कभी मार तक डाला जाता है। जिस तरह खेती में कभी-कभी मेहनत करने की बजाय, खेत पट्टे पर उठा देने में ज्यादा लाभ होता है, उसी तरह कम पढ़ी-लिखी लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की से अच्छी होती है, क्योंकि उसका दहेज कम होता है। 

दहेज लेने और देने पर सजा तो मिलनी ही चाहिए, लेकिन लोगों के दिमाग और उनकी मान्यताओं को भी बदलना होगा। तस्वीर दिखाकर या एक सिमटती हुई छाया के हाथों लाए गए चाय के प्याले के वातावरण में शादी तय करने का तरीका नाई व ब्राह्मण के जरिए शादी तय कराने के पुराने तरीके से भी ज्यादा वाहियात है। यह ऐसा है कि घोड़े को खरीदते समय उसे देखे तो, लेकिन न उसके खुर छू सके, न दांत देख सके। 

कोई बीच का रास्ता नहीं है। हिंदुस्तान को अपना पुराना पौरुष फिर से हासिल करना होगा, यानी दूसरे शब्दों में, उसे आधुनिक बनना होगा। लड़की की शादी करना माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं, उनकी जिम्मेदारी अच्छी सेहत और अच्छी शिक्षा देने पर खत्म हो जाती है। 

मेरा विश्वास है कि हर पति-पत्नी की, जिनके तीन बच्चे हो चुके हों, प्रजनन शक्ति नष्ट कर देनी चाहिए और प्रजनन शक्ति नष्ट करने या कम से कम गर्भनिरोध की सुविधाएं हर ऐसे स्त्री व पुरुष को उपलब्ध होनी चाहिए, जो बच्चे न पैदा करना चाहते हों। 

ब्रह्मचर्य आमतौर पर एक कैद होती है। ऐसी कैद-आत्माओं से किसकी भेंट नहीं होती, जिनका कौमार्य उन्हें बांधे रहता है और जो उत्सुकता से अपने को मुक्त करने वाले का इंतजार करती हैं? 

अब समय है कि युवक और युवतियां इस तरह के बचपने के खिलाफ विद्रोह करें। उन्हें हमेशा याद रखना चाहिए कि यौन-संबंधों में सिर्फ दो अक्षम्य अपराध हैं : बलात्कार और झूठ बोलना या वादा तोड़ना। एक तीसरा अपराध दूसरे को चोट या पीड़ा पहुंचाना भी है, जिससे जहां तक मुमकिन हो, बचना चाहिए।

आज वर्ण और योनि के इन दो कटघरों को तोड़ने से बड़ा कोई पुण्य नहीं। युवक और युवतियां सिर्फ इतना ही याद रखें कि चोट या पीड़ा न पहुंचाएं और गंदे न हों, क्योंकि स्त्री और पुरुष का रिश्ता बड़ा नाजुक होता है। 

आज के हिंदुस्तान में एक मर्द और एक औरत शादी करके जो सात-आठ बच्चे पैदा करते हैं, उनके बनिस्बत मैं उनको पसंद करूंगा, जो बिना शादी किए एक भी नहीं या एक ही पैदा करते हैं। या, लड़की यानी उसके मां-बाप दहेज देकर, जिसे समाज कहेगा अच्छी-खासी शादी की, उसको मैं ज्यादा खराब समझूंगा, बनिस्बत एक ऐसी लड़की के, जो कि दहेज दिए बिना दुनिया में आत्म-सम्मान के साथ चलती है। 

मर्द कुछ भी करें, हिंदुस्तान में उनकी निंदा नहीं होती, लेकिन औरतों की निंदा हो जाती है। संसार में सभी जगह थोड़ा-बहुत ऐसा है। यह वृत्ति भी छूट जानी चाहिए। और खासतौर से राजनीति में जो औरतें आएंगी, वे तो थोड़ी-बहुत तेजस्वी होंगी, घर की गुड़िया तो नहीं होंगी। जब वह तेजस्वी होगी, तो जो परंपराग्रस्त संस्कार हैं, उनसे टकराव हो ही जाएगा। आज के हिंदुस्तान में किसी औरत की निंदा तो करनी ही नहीं चाहिए। केवल जहां तक विचार का संबंध है, उसमें भी, मैं समझता हूं, बहुत संभल कर उसके बारे में कुछ बोलना चाहिए।

भारतीय नारी द्रौपदी जैसी हो, जिसने कि कभी भी किसी पुरुष से दिमागी हार नहीं खाई। नारी को गठरी के समान नहीं बनाना है, परंतु नारी इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि वक्त पर पुरुष को गठरी बनाकर अपने साथ ले चले। 
(लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित ‘लोहिया के विचार’ से संपादित अंश, साभार) लेखक क्रांतिकारी, प्रख्यात चिंतक, विचारक, राजनीतिज्ञ है।

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