Wednesday, February 20, 2013

क्या प्रेम में सेक्स जरूरी है?


वह नहा रही थी और उसका प्रेमी उसे नहाते हुए देखने के लिए आहें भर रहा था। किसी पहरेदार की तरह मौसम हर दिन श्यामला के घर के आसपास संदिग्ध तेवर में दिखता। खुद को व्यस्त दिखाने के लिए किसी से एक लफ्ज तक नहीं बोलता। कोई टोक दे तो अनसुना कर देता। श्यामला का बाथरूम कुछ ऐसा था कि उसके कपड़े दिख जाते थे। वह नहाते वक्त कपड़े को चाहारदिवारी पर रख देती। मौसम कपड़े देखता और बोलता अच्छा आज लाल वाली पहनी है। दूसरे दिन भी इसी तरह देखता और कहता आज नारंगी वाली पहनी है। फिर जोर से पैर को धूल भरी जमीन पर पटकते हुए आगे बढ़ जाता।

जैसे ही मौसम ने मायूस होकर आगे की ओर कदम बढ़ाए कि श्यामला के भाई ने आवाज लगाई, ‘का हो मौसम भाई कहां जा रहे हैं?‘ गांव में संबोधन के लिए हर कोई भाई है। पर इससे इस चक्कर में मत पड़िएगा कि संबंध भी भाई के ही हैं। संबंध और संबोधन कई बार आप विपरीत देखेंगे। जैसे- ‘अमर को मरते देखा धनपत कूटे धान।‘ बिल्कुल गंगनम स्टाइल में। मौसम को श्यामला के भाई में भी श्यामला की छवि कई बार दिखती थी। उसने कई बार मुझसे कहा, ‘इसकी आवाज मुझे एकदम श्यामला की तरह लगती है। वह इस आवाज को अनसुना कर दें ऐसा कभी नहीं हुआ। ऐसा वाकया मौसम को भी याद नहीं है।

फिर दोनों की घंटों बातें होतीं। घंटों इसलिए कि एक झलक श्यामला की मिल ही जाएगी। यह उस दौर की बात है जब गांवों में मोबाइल नहीं आया था। जाहिर है इन प्रेमी जोड़ों ने कई खतों को स्याही से रंगे होंगे। जब प्रेम सुनामी बना तो स्याही में लहू भी मिलाए गए। उस लहू से कुछ दिल की आह निकली तो कई बार लिखे गए-

लिख रही हूं खून से स्याही मत समझना
जीती हूं कैसे बेगानी मत समझना
तेरी याद मेरी रात है तेरी खुश्बू मेरी सांस
पता नहीं कब मिलेंगे टूटती नहीं आस

कितने खत रंगे गए, कितने आंसू निकले, कितने खत सार्वजनिक हो गए, कितने खत पहुंचाने वाले ने गुस्ताखी कर खुद के पास रख लिए, कितने खतों से ब्लैकमेल की कोशिश की गई चाहे जितनी बार बताऊं यकीन मानिए यह सिलसिला खत्म नहीं होगा। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। मौसम के साथ श्यामला का भी यह कहना है। ऐसा तब है जब आज की तारीख में दोनों अलग दांपत्य जी रहे हैं। आज की तारीख में दोनों एक दूसरे को भईया और छोटी बहन कहने को अभिशप्त हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि वह प्रेम मर गया। उस अतीत के ठहरे प्रेम में एक कंकड़ धीरे से मार दीजिए वे खुद को रिवर्स कर पांच साल पीछे जाकर जीने के लिए ललच जाते हैं।

इस बार करीब एक साल के बाद गांव गया। मुझे कई प्रेम कहानियों को सुनने का मौक मिला। ये बिखरी प्रेम कहानियां किसी महाकाव्य से कम नहीं। इनका जन्म खेत-खलिहान और गलियों में होता है और वहीं दम तोड़ देते हैं। लेकिन कुछ प्रेम कहानियां मुकाम तक भी पहुंच ही जाती हैं। यहां प्रेम के व्याकुल संवाद किसी मेट्रो स्टेशन या पार्क में नहीं होते। भला इन नादान परिंदों को इस पवित्र अनुभव के लिए कौन मंजूरी देगा। किसी ने देख लिया तो कुलटा से लेकर कुलनाशन तक तमगा पल में मिल जाएगा। गांव में लड़कों को कई मामलों में विशेषाधिकार मिले होते हैं। मसलन स्कूल के लिए गांव से शहर जाने की छूट के साथ वे कहीं अकेले भी आवाजाही कर सकते हैं। लड़कियों के लिए भाई और पिता पहरेदार हैं। हालांकि उसका प्रेमी भी खुद को उसका कई मामलों में पहरेदार ही समझता है।

मौसम ने एक दिन खतरनाक गुस्ताखी की। श्यामला नहा रही थी। उसने हर दिन की तरह कपड़े निकालकर चाहारदिवारी पर रखे। मौसम चारों तरफ देखकर तेजी से झपटा और कपड़े लेकर भाग गया। कपड़े ले जाने की खबर श्यामला तक को नहीं लगी। खत में श्यामला ने खुलासा किया कि उस दिन मेरे कपड़े लेकर भागे थे पता भी नहीं चला था। राम कसम मैं तो डर गई थी कि और किसकी नजर मेरे ऊपर लग गई। आप मुझे न बताए होते तो मैं आपको डर से इस वाकये के बार में बताती भी नहीं। मौसम ने पूछा क्यों नहीं बताती? आप फिर टेंशन में आ जाते कि वह और कौन है जो मुझे इस कदर चाहता है।

खत में ही श्यामला ने पूछा, आपने कपड़ों का क्या किया था उस दिन? कहां लेकर गए थे? मौसम की सांसें तेज हो गईं। उसने खुद को संभालते हुए कहा - कपड़े लेकर गेंहू के खेत में चला गया था। उसे सीने में दबाए देर शाम तक सोता रहा। श्यामला ने कहा धत तरी के एकदम पागल हैं क्या। कोई लड़की का कपड़ा लेकर खेत पर जाता है। जिस खत में मौसम और श्यामला के ये संवाद थे वह खत उस खेत की मिट्टी में मिल गया। लेकिन मौसम को उस खत की हर पंक्ति उसी शैली और इमोशन के साथ याद है। आप मौसम से इसे सुन लें तो लगेगा कि वह लिखा खत ऑडिया-विडियो बन गया है।

हो सकता है मौसम और श्यामला उस एकांत क्षण की तलाश में आज भी हों कि उन सारी बातों को कम से कम कह सकें। मौसम ने भरे दिल से कहा अब संभव नहीं है। अब तो उसके बच्चे मुझे मामा कहते हैं। मेरे बच्चे उसे बुआ। मौसम इस बात को कहकर हंसने लगते हैं। लेकिन उस हंसी में एक ऐसी प्यास होठों पर दिखती है जिसका बुझना शायद मरते दम तक बचा रहे।

आज की तारीख में मौसम पिता बन चुके हैं। श्यामला भी मां बन गई हैं। श्यामला उस मर्द की पत्नी बनी जिसे नहीं चाहती थीं और मौसम उस लड़की के पति बने जिसे वह नहीं चाहते थे। न चाहते हुए दोनों बच्चों के माता-पिता भी बन गए।

इस बार मौसम ने दिल भारी कर पूछा, ये कैसे रिश्ते हैं मित्र? हम नहीं समझ पाते हैं। आधी जिंदगी गुजर गई कुछ भी अब तक अपने मन से नहीं हुआ। यहां तक कि पत्नी भी अपने से चुनने की आजादी नहीं मिल सकी। पिताजी को और माताजी को अच्छी बहू की जरूरत थी, शायद वह मिल गई। लेकिन सच कह रहा हूं दोस्त, मन की पत्नी नहीं मिली। मुझे लगता है कि मुझसे जिस लड़की की शादी हुई वह मेरे घर की अच्छी बहू है लेकिन मेरे मन की चुनी हुई पत्नी नहीं। जाहिर है यही दर्द श्यामला का भी होगा।

मैंने मौसम से कहा, अब जो है उसे दिल से कबूल कर जीना शुरू कीजिए। मौसम ने आहत होकर कहा, ‘संभव नहीं है।‘

मैंने पूछा ऐसे कब-तक जीते रहेंगे?
जब-तक उससे एक बार सेक्स न कर लूं।
तो आप सेक्स के बाद उसे छोड़ देंगे?
मौसम का जवाब था, पता नहीं।
मौसम के इस जवाब से थोड़ा मैं भी कन्फ्यूज हूं। इस सवाल के साथ इस प्रेम कथा का अंत कर रहा हूं कि प्रेम और सेक्स में क्या संबंध है। क्या बिना सेक्स के प्रेम संभव नहीं है?

अल्पसंख्यकों के लिए...



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मशहूर साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का यह व्यंग्य करीब दो दशक पहले एक अखबार में प्रकाशित हुआ था

अल्पसंख्यक दो प्रकार के होते हैं: एक वे जो बहुसंख्यक हैं पर अपने को अल्पसंख्यक कहकरउम्दा रोजगार और उम्दा तालीम के सिवा,अपनी सनक और समझ के अनुसार सरकार से कोई भी मांग कर सकते हैंदूसरे वे जो इतने अल्पसंख्यक हैं कि अपनी पहचान बनाए रखने के लिए वे सरकार को बराबर कुछ देते रहते हैंउससे कुछ खींच नहीं पाते. उदाहरण के लिएदूसरी कोटि के अल्पसंख्यक उत्तर प्रदेश के रोमन कैथोलिक हैंउनकी संख्या सिर्फ हजारों में हैलाखों में नहीं. वे प्राय: विपन्न पर खामोशपरिश्रमी और आत्मसम्मानी लोग हैं. उत्तर प्रदेश की सबसे उम्दा शिक्षा संस्थाएं उन्होंने स्थापित की हैंउन्हें वही चला रहे हैं.
पहली कोटि के अल्पसंख्यक हमारे बहुसंख्यक मुसलमान भाई हैं. अपनी पहचान या अस्मिता कायम रखने की चिंता अगर किसी को है तो इन्हीं कोउत्तर प्रदेश के कैथोलिक ईसाइयोंमहाराष्ट्र के पारसियों या गुजरात के यहूदियों को नहीं. मुसलमान दंगे-फसाद से घबराए रहते हैं जो कि सचमुच ही चिंतनीय हैपर उससे भी ज्यादा वे घबराए हुए हैं कि हिंदुस्तान की सरकार कहीं उन पर एक से ज्यादा बीवियों को तलाक देने की प्रक्रिया दिक्कततलब न बना देकहीं उर्दू का नामोनिशान न खत्म कर देहजयात्रियों को मिलने वाले अनुदान में कहीं कटौती न हो जाएआदि-आदि.
इस हालत में केंद्र सरकार और राज्यों को क्या करना चाहिएयह सवाल ज्यादा मुश्किल नहीं है. अगर इन अल्पसंख्यकों के नेताओं की मांगें जांची जाएं तो साफ है कि उनको आधुनिक तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा की खास जरूरत नहीं हैकुरान की तालीम देने वाले मदरसों से वे संतुष्ट हैंरोटी की जगह कुछ उत्तरी और मध्यवर्ती राज्यों में उर्दू को राजभाषा बनाकर उन्हें परोस दीजिएउनका काम चल जाएगा. फिर भी अगर उन्हें लगे कि उनकी सही पहचान नहीं हो रही है तोजैसा कि केरल में हुआ हैउन्हें शुक्रवार की छुट्टी देना शुरू कर दीजिए.
यही छुट्टी वाली तरकीब काफी पुरानी और आजमाई हुई है. अंग्रेजी हुकूमत में मालाबार के मुस्लिम बहुल स्कूल शुक्रवार को काफी देर बंद रहते थे. 1967 में मार्क्सवादी मुख्यमंत्री नंबूदरीपाद महाशय ने कुछ क्षेत्रों में शुक्रवार का अवकाश घोषित किया. उनकी निगाह में यह धर्मनिरपेक्षता की और उनकी सहयोगी मुस्लिम लीग की निगाह में मुस्लिम अस्मिता की जीत थी. यह कायदा तब मल्लापुरम इलाके में लागू हुआ. अब केरल की मौजूदा सरकार ने मुस्लिम शिक्षालयों में शुक्रवार को छुट्टी का पुख्ता इंतजाम कर दिया है.
अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघभारतीय जनता पार्टी और उसी रंग-रेशे के दूसरे संगठन-जो अपनी अस्मिता के लिए मुसलमानों ही की तरह व्याकुल हैं- इसे अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण बताएं तो इसका भी इलाज है. उनके स्कूलों में मंगलवार का अवकाश दे दें ताकि उस दिन वे लाल लंगोटे वाले की आराधना कर सकें. शर्त सिर्फ यह रहे कि चाहे हिंदू हो या मुसलमानरविवार की छुट्टी सबके लिए बरकरार रहे.
इसके अलावा और क्या किया जाएआप चाहे भाजपा के अध्यक्ष ही क्यों न होंमुस्लिम नेताओं को बुलाकर रमजान में इफ्तार की दावत जरूर दें. संक्षेप मेंअगर अपने समाज की पहचान पक्की बनाने के लिए उसके नेता उसे पंद्रहवीं सदी में लिए जा रहे हों तो सरकार की नीति उन्हें और पीछे खिसकाकर तेरहवीं सदी में ले जाने की हो सकती है. यह अल्पसंख्यकों का आदर्श तुष्टीकरण होगा. पीछे जाने की उनकी महत्वाकांक्षा को इतना उत्तेजित किया जाए कि वे एक आधुनिक सभ्य समाज की जगह 'गुलिवर ट्रैवल्सके याहू बनने का भरपूर मौका पा सकें.

कोई स्त्री को कमजोर कहता है तो आंटी का वह चेहरा याद आता है


आपबीती- मूलतः प्रकाशित, तहलका 28 फरवरी 2013

पटना की यह मेरी दूसरी यात्रा थी. तब मैं रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ता था. मुझे जानकारी मिली थी कि मशहूर आलोचक नामवर सिंह व्याख्यान देने पटना आनेवाले हैं. उन दिनों साहित्य और नामवर सिंह मुझ पर नशे की तरह सवार थे. मैं नामवर सिंह को दूरदशर्न पर नियमित देखा करता और कभी उन्हें सामने देखते हुए सुनने की कल्पना करता. कॉलेज की लंबी छुट्टी होने वाली थी. मैंने तय किया कि रांची से पटना सीधा चला जाता हूं, नामवर सिंह को सुनना भी हो जाएगा और साहित्यिक किताबों की खरीदारी भी. उन दिनों रांची में साहित्यिक किताबें बहुत कम मिला करतीं. कुछ दोस्तों ने बताया था कि पटना में गांधी मैदान के ठीक सामने पुरानी किताबों की ढेर सारी दुकानें हैं. वहीं अशोक राजपथ से नई किताबें खरीदने का विकल्प भी था.


शाम को मैं कांटाटोली बस स्टैंड पहुंचा और बस में बैठ गया. बगल की सीट खाली थी. मैं सोच ही रहा था कि पता नहीं कौन आएगा तभी करीब 45 साल का एक व्यक्ति उस पर आकर बैठ गया. उसने मुस्कुराते हुए पूछा, ‘कहां जा रहे हो?’ मैंने कहा,- ‘पटना.’ ‘वहां पढ़ाई करते हो?’ मैंने कहा,- ‘नहीं, पढ़ाई यहां करता हूं,वहां किताबें खरीदने और व्याख्यान सुनने जा रहा हूं.’ उसने तीन बार कहा- ‘गुड, गुड, गुड.’

जरा सी देर में इस व्यक्ति ने मुझसे पढ़ाई-लिखाई के बारे में काफी कुछ पूछ लिया था. उसे भी पता था कि प्रेमचंद कौन हैं, रेणु ने क्या लिखा है. हम इंजीनियरिंग मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर रहे हैं, इसे लेकर हम दोस्तों-रिश्तेदारों के बीच मजाक के पात्र बनते थे. यह व्यक्ति मेरी पढ़ाई में दिलचस्पी ले रहा है, देखकर अच्छा लगा. 


फिर बस चल दी. थोड़ी देर में लाइटें ऑफ कर दी गईं. रांची छूटे कुछ ही समय हुआ था कि उस व्यक्ति ने मुझे छूना शुरू कर दिया. पहले तो मुझे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन उसके हाथों की हरकतें बढ़ने लगीं तो मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने उसके हाथ पकड़ लिए. थोड़ी देर तक शांत रहा. फिर उसने मेरी पैंट के बटन खोलकर अपना हाथ भीतर डाल वदया. अब मैं बुरी तरह घबरा गया था. मैं उठकर जाने लगा तो उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और बोला, ‘बैठो न, कुछ नहीं करूंगा.’ मैं चुप था और पटना जाने के फैसले पर अफसोस कर रहा था. आधे घंटे तक उसने कुछ नहीं वकया. फिर अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पैंट में डाल दिया. मैंने प्रतिरोध में हाथ पीछे खींचने की कोशिश की. लेकिन इतनी ताकत से मेरा हाथ वापस वहीं ले गया कि मैं एकदम से रो पड़ा. एक बार रुलाई छूटी तो फिर मैं रोता ही रहा. उसने मुंह दबाने की कोशिश की.


चलती बस की आवाज में पहले तो किसी को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन फिर एक महिला की आवाज गूंजी, ‘कंडक्टर साहब, लाइट जलाइए, कोई रो रहा है.’लाइट जली. एक महिला जो मेरी सीट के ठीक सामने बैठी थी, मेरे पास खड़ी थी. मैंने उस व्यक्ति की तरफ देखा.वह निढाल पड़ा था. उसकी पैंट पर सीमन बिखरे थे और मेरे कपड़े पर भी जहां-तहां फैल गए थे. उस महिला ने बिना मुझसे कुछ पूछे उस व्यक्ति को दनादन तीन-चार थप्पड़ जड़ दिए तो बाकी लोग भी मेरी सीट के पास जमा होने लगे. उसने मेरी पैंट पर अपनी मोटी फरवाली हैंकी डाल दी. शोर-शराबे की वजह से कंडक्टर ने गाड़ी रोक दी. तुम्हारा बैग कहां है ? मैंने रोते हुए इशारे से उस महिला को बताया और वो मेरा बैग लेकर मुझे अपने साथ लेकर नीचे उतर गई.

बैग से उन्होंने मेरा तौलिया निकाला और एक धुली पैंट और शर्ट. तौलिए लपेटकर मुझे पैंट उतारने कहा लेकिन मैं सिसकते हुए इतना कांप रहा था कि हाथ से पैंट की बटन और जिप खुल ही नहीं रही थी. उसने अपने हाथ लगाकर खोल दिए और पैंट की मोहरी खींचकर बाहर निकाल लिया. शर्ट के बटन भी उसने ही खोले. फिर एक-एक कर कपड़े पहनाए. अब उस व्यक्ति को बाकी लोग बुरी तरह पीटने लगे थे और धक्के देकर गेट की तरफ ले जा रहे थे. तय हुआ कि उसे ड्राइवर के बगल की सीट पर बिठाया जाए और आगे उतार दिया जाए. अब वह महिला मेरे बगल में थी. खिड़की की तरफ सिर टिकाकर मैं लगातार सिसक रहा था और वो मेरे सिर पर लगातार हाथ फेर रही थी. आंटी, मुझे उल्टी जैसी लग रही है..मैं फिर फफककर रोने लग गया था. उसने अपने बैग से परफ्यूम की शीशी निकाली और मुझ पर हल्का स्प्रे किया. जसमीन है, अच्छा लगेगा. वो कुछ बोल नहीं रही थी लेकिन उसका सहलाना जारी था.


सुबह के साढ़े छह बजे पटना पहुंचते-पहुंचते मेरी हालत बहुत खराब हो गई थी. बस से उतरकर मैं जमीन पर पैर रखता उससे पहले मैं अचेत होकर गिर पड़ा. आंखें खोलीं तो मैं एक प्रसूति घर में पड़ा था. चारों तरफ से बच्चों के रोने और महिलाओं के  दर्द से चीखने की आवाजें आ रही थीं. मैं कुछ पूछता कि इससे पहले बगल में बैठी उन आंटी ने धीरे से पूछा, ‘अब बताओ, तुम्हें पटना में कहां जाना है? मेरे घर चलोगे?’ मैंने न में सिर हिलाया. दोपहर में मुझे वहां से डिस्चार्ज कर दिया गया. आंटी मुझे लेकर बाहर आ गई. दोबारा पूछा, ‘घर चलोगे ?’ मैंने कहा, ‘नहीं आंटी, अब कहीं नहीं जाऊंगा, वापस रांची.’ मुझे अब न तो नामवर सिंह को सुनना था और न ही साहित्य की किताबें खरीदनी थीं.


आंटी करीब डेढ़ घंटे और मेरे साथ रहीं. उन्होंने खाना भी मेरे साथ खाया. फिर बोलीं, ‘अब तुम पक्का ठीक हो न?’ ‘हां आंटी, आप प्लीज जाइए’,मैंने कहा. उन्होंने फिर मेरे सिर पर हाथ फेरा और कागज पर घर का पता लिखकर मुझे देते हुए बोलीं, ‘पटना आना तो मेरे पास आना मत भूलना. मैं रांची आई तो तुमसे मिलूंगी.’


करीब 13 साल गुजर चुके हैं. इसके बाद मेरा पटना कभी जाना नहीं हुआ. एक-दो मौके आए भी तो मैंने टाल दिया. लेकिन अब भी जब मेरे दोस्त मेरे बनाए खाने या मेरे साफ-सुथरे घर की तारीफ में कहते हैं, ‘तुम्हारे नाम के अंत में आ लगा होता तो तुमसे शादी कर लेता’, मुझे उस आदमी का चेहरा याद आ जाता है. टीवी चैनलों पर खासकर दामिनी,दिल्ली गैंग रेप की घटना के दौरान जब भी स्त्री की सुरक्षा के लिए किसी की मां किसी की बहन बनाकर एक तरह से कमतर और पुरुषों के साये में रहने की दलील दी रही तो आंटी का वह आत्मविश्वास से भरा चेहरा याद आता है, उनकी बांहें याद आती हैं जिनमें 18 साल का एक युवा सुरक्षित था...

विनीत कुमार

Tuesday, February 19, 2013

तो हमें तुम्हारी जरूरत ही क्या है मौलाना?


कश्मीर की तीन मुसलमान लड़कियों को खामोश करके खुश तो बहुत होगे तुम! तुम दुनिया को यह बताना चाहते हो कि उनके गिटार को चुप करवा कर तुमने इस्लाम को बचा लिया भारत में, कश्मीर में. लेकिन असलियत तुम जानते हो, और दूसरे भी कि तुमने इस्लाम को नहीं बल्कि अपनी सत्ता को बचाया है. अगर आम मुसलमान अपनी जिंदगी के फैसले खुद करने लगेगा, खुद सोचने-समझने लगेगा तो फिर तुम किस मर्ज की दवा रह जाओगे? आखिर उन लड़कियों को कहना पड़ा कि 'मुफ्ती ही बेहतर जानते हैं कि अल्लाह का हुक्म क्या है, इसलिए हम मुफ्ती की बात मानते हुए अपना म्यूजिक बंद करते हैं.' वैसे अल्लाह ने ईरान, तुर्की, पाकिस्तान, बांग्लादेश और ट्यूनीशिया के मौलानाओं को म्यूजिक पर पाबंदी क्यूं नहीं बताई? सिर्फ भारतीय मौलाना से अल्लाह यह राजदारी क्यूं करता है? अपनी बेटियों से इतना डरे हुए क्यूं हो, मौलाना?
देखें मौलाना, ऐसा है कि आपका औरतों से दुश्मनी वाला रवैया अब किसी तरह परदे में रहने वाला नहीं. अब मुसलमान औरत को समझ में आ रहा है कि पहले तो आपने मजहब को, उसकी जानकारियों को, उसकी राहतों को अगवा कर अपने अंधेरे पिंजरों में कैद कर लिया जहां सिर्फ आपके हमखयाल ही दाखिल हो सकते हैं. जिसने भी जरा सी चूं-चां की, वह भटका हुआ करार दिया गया यानी कि मुसलमान औरत को पहले तो मजहब की उम्दा और आला तालीम से दूर रखा गया, उसके लिए अच्छे और बाकायदा मजहबी तालीम देने वाले संस्थान ही कायम नहीं होने दिए गए. मजहब के मामलों पर गौर-ओ-फिक्र से मुसलमान औरत को अलग रखा. किसी पर्सनल लॉ बोर्ड, किसी फिकह अकादमी, किसी मुशावरत, किसी कजियात में मुसलमान औरत को कभी कोई ऐसी फैसला लेने लायक भागीदारी नहीं दी गई कि वह इस्लाम में औरत को राहत देने वाले इंतजामों से बाखबर हो कर उनका अपने पक्ष में इस्तेमाल कर पाती.
इसके बाद मुसलमान औरत पर तुमने अपनी मनचाही मर्दाना शरियत थोपी. यहां पर भी वही जिद कि हम जो बताएं वही शरियत है और उस पर तुर्रा यह भी कि शरियत बदल नहीं सकती, हिमालय की तरह अटल है. किसको बेवकूफ बना रहे हो, मौलाना? शिया, मेमन, बोहरा, देवबंदी, बरेलवी, हनफी, शाफई, मलिकी, महदवी और न जाने कितनी तरह की शरियतें रचने के बाद औरतों को बताते हो कि शरियत अटल है? शरियत के नाम पर तीन तलाक की मानसिक हिंसा तुम करो और करवाओ और हम यह मान लें कि यही अल्लाह का इंसाफ है औरत के लिए? चार बीवियां तुम रखो और रखवाओ और हम मान लें कि यही अल्लाह का इंसाफ है? अरे, अल्लाह को क्यों बदनाम करते हो अपने मतलब के लिए?
मुसलमान औरत को कभी कोई ऐसी फैसला लेने लायक भागीदारी नहीं दी गई कि वह इस्लाम में औरत को राहत देने वाले इंतजामों से बाखबर हो कर उनका अपने पक्ष में इस्तेमाल कर पाती
हमें पता है कि तुमने इसी लिए भारत में मुसलमान औरतों को मस्जिद में नहीं आने दिया. अगर मुसलमान औरतें भी सारी दुनिया के मुस्लिम मुल्कों की तरह मस्जिदों में उसी हक से दाखिल हो जाएं जिस हक से मर्द होते हैं तो क्या आसमान टूट पड़ेगा कौम पर? लेकिन यह कोई मासूम- सी पाबंदी नहीं है, मौलाना. तुम्हें पता है कि अगर ये औरतें हर रोज एक छत के नीचे इकट्ठी होकर आपस में बातचीत कर लेंगी, अपने हाल एक-दूसरे पर जाहिर कर देंगी तो संगठित हो जाएंगी. अभी वे उन जुल्मों को सिर्फ 'अपनी बदनसीबी' और 'अल्लाह का इम्तेहान' समझ कर एक निजी दुख की तरह झेल लेती हैं. मगर वे एक जगह इकट्ठी हो गईं तो उन्हें पता चल जाएगा कि ये तो वे तारीखी ज़ुल्म हैं जो उनकी नानी-दादी-मांओं ने
भी झेले हैं.
आखिर 'कौम' की तमाम मुश्किलों पर मस्जिदों के भीतर ही तो एक राय बनाई जाती है न? यहां तक कि देहली की एक मस्जिद तो यह तक तय कर देती है कि कौम अगले चुनाव में वोट किसे देगी. तो मौलाना, तुम्हें भी पता है और हमें भी पता है कि मस्जिद में अगर औरतें इकट्ठी हो गईं तो सबसे पहले खतरा तुम पर ही आना है.
 मौलाना पूरी कौम के नाम पर या कौम के लिए तुम जो भी बोर्ड, मजलिस, मदरसा, स्कूल, नदवा, वगैरह बनाते हो उसमें मुसलमान औरतों को 50 फीसदी नुमाइंदगी क्यूं नहीं देते? तुम लगातार भारत सरकार को कोसते रहते हो कि वह मुसलमानों की तादाद के मुताबिक उन्हें नुमाइंदगी न दे कर उनके साथ नाइंसाफी करती है, उनकी तरक्की में रुकावट डालती है. लेकिन जहां तुम पॉवर में हो वहां भारत सरकार से भी बड़े वाले हुक्मरां बन जाते हो. तब तुम्हें यह खयाल नहीं आता कि मुसलमान औरतें आबादी का आधा हिस्सा हैं? अपने जलसों में जब तुम पूरी कौम के मामलात तय करते हो तो देहली की वजीर-ए-आला शीला दीक्षित और कांग्रेस सदर सोनिया गांधी को तो मंच के बीचोबीच जगह देते हो, लेकिन इसी जलसे में एक भी मुसलमान औरत तुम्हें नहीं मिलती शामिल रखने के लिए?
 लेकिन मौलाना उस ऊपरवाले का सितम देखो कि जब कौम पर मुश्किल आती है तो कोई तीस्ता सीतलवाड़, कोई मनीषा सेठी, कोई जमरूदा, कोई सीमा, कोई सहबा, कोई नंदिता, कोई अरुंधती ही सड़कों से ले कर मीडिया तक पर उतरती है अपने हमवतनों को बचाने के लिए. तब तुम चुप्पी साधे ताकते रहते हो औरतों के इस अहसान को. तब बरसों से जमा किया गया तुम्हारा इक्तेदार, सरकारों के साथ तुम्हारी वोट वाली सांठ-गांठ, या तुम्हारा 'खास इल्म' किसी काम नहीं आता कौम के. तुम लाखों की रैलियां करके जिन सियासी दलों को यह जताते हो कि देखो हमारे पास इतना बड़ा वोट-बैंक है लिहाजा हमसे सौदा करो, वे सियासी पार्टियां तुम्हें बस
एक बार भुनाने लायक बैंक-चेक से ज्यादा कुछ समझती नहीं.
किस्सा-कोताह यह कि तुम्हारे होने से कौम को राहत तो कोई मिलती नहीं, इसकी इज्जत और हिफाजत में तो कोई इजाफा होता नहीं, इसकी छवि एक सहनशील और इंसाफ-पसंद कौम की बनती नहीं, तुम्हारी अपनी औरतें और कमजोर और पसमांदा खुद तुमसे खुश नहीं, तुम्हारे जरिये चलाए जा रहे इदारों, मदरसों, स्कूलों से समाज के काम के इंसान तो निकलते नहीं. तो फिर तुम हो किस काम के? कोई ऐसी सामाजिक बुराई जो तुम्हारे होने से मिट गई हो उसका नाम बताओ, मौलाना? तुम उन खाप पंचायतों से किस तरह अलग हो जो जुल्म की शिकार औरतों पर ही उस जुल्म की जिम्मेदारी थोप देती हैं? दहेज घरेलू हिंसा, बेटियों-बहनों को जायदाद में हक, जात-बिरादरी की ऊंच-नीच जैसे मामलों पर तो कभी तुम्हारी आवाज बुलंद होते सुनी नहीं. वक्फ की जायदादों पर नाग की तरह कुंडली मारे बैठो हो जो  बेवाओं-यतीमों-तलाकशुदा औरतों का हक था.
अगर किसी तरह का कोई अच्छा काम तुमसे हो ही नहीं सकता तो हमें तुम्हारी जरूरत क्या? सिर्फ मर्दाने मदरसे चलाओ और बंद करो अपनी ये सामाजिक दुकानें, मौलाना !   
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शीबा असलम फ़हमी (तहलका मे प्रकाशित )


Wednesday, February 13, 2013


आप बीजपी के इतने बड़े नेता हैं फिर भी आप सारा दिन मेरा गुजरात मेरा गुजरात मेरा गुजरात कहते रहते हैं मेरा भारत क्यों नहीं कहते आप ??

नरेंद्र मोदी

पहली बात है जब मैं गुजरात कि सेवा करता हूँ तो उससे भारत कि ही सेवा होती .......

प्रभु चावला

कर तो ली आपने गुजरात कि सेवा 8 साल ,अब और कितनी करेंगे

नरेंद्र मोदी

अच्छा तो 8 साल सेवा कर ली तो आगे और सेवा ना करूँ

प्रभु चावला

लेकिन अब देश कि सेवा कीजिये ना ,देश को फायदा मिलना चाहिए आपकी काबिलियत का

नरेंद्र मोदी

आप एक बात बताइए ,अगर गुजरात अच्छा करेगा तो उससे देश का ही तो फायदा होगा ,आखिर गुजरात देश का ही तो हिस्सा है

प्रभु चावला

कोंग्रेस वाले ये कहते हैं कि क्योंकि गुजरात के बाहर आपकी स्वीकार्यता नहीं है तो इस लिए आप गुजरात के बाहर देखते नहीं है

नरेंद्र मोदी

अब इसका विश्लेषण तो मैं खुद नहीं करता ,इसका विश्लेषण तो गुजरात के बाहर के लोग खुद करें कि उनको मैं स्वीकार्य हूँ या अस्वीकार्य हूँ और वैसे भी गुजरात कि जनता ने तो मुझे इतना मान-सम्मान दिया है लेकिन एक बात और मैं बोलना चाहूँगा कि मैं देश में जहां कहीं भी जा रहा हूँ तो देश कि जनता से भी मुझे भरपूर प्यार मिल रहा है क्योंकि उनको इस बात का विश्वास हुआ है कि देश का एक राज्य वो काम कर रहा है जो सारे देश के काम रहा है ,तो इसलिए मेरे कोंग्रेस के मित्र मेरे बारे में क्या और किस आधार पर कहते हैं ये तो वही बता सकते हैं

प्रभु चावला

नरेंद्र मोदी प्रांतीय भाषा बोलते रहते हैं ,मैं गुजरात ,मेरा गुजरात ,मेरी गुजरात कि जनता आदि आदि ,फिर आपमें और मुलायम सिंह या मायावती में क्या फर्क हुआ ??

नरेंद्र मोदी

मेरा मंत्र है भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास ,जैसे कि मान लीजिए अगर मैं किसी नगरपालिका का प्रमुख हूँ और उस नगरपालिका को बहुत अच्छी बनाता हूँ ,बहुत बढ़िया चलाता हूँ ,बहुत अच्छा काम करता हूँ तो वो भी मैं देश कि ही सेवा कर रहा हूँ ,ये सोचना सही नहीं है कि एक नगरपालिका में अच्छा काम करना देश के लिए अच्छा काम करना नहीं है

प्रभु चावला

गुजरात के मोर्रार्जीदेसाई प्रधानमंत्री बने थे देश के ,गुजरात के सरदार वल्लभभाई पटेल गृहमंत्री बने थे देश के तो इससे क्या गुजरात का बुरा हो गया था क्या , आप बार- जब गुजरात- करते रहते हैं तो आप गुजरात vs इंडिया क्यों कर देते हैं ??

नरेंद्र मोदी

मैं गुजरात vs इंडिया करने वालों में से नहीं हूँ , मुझे तो इस बात का आनंद है कि मेरे देश हिन्दुस्तान का मैं और गुजरात एक हिस्सा हैं और जब मैं गुजरात का विकास करता हूँ तो मैं मेरे देश कि ही सेवा करता हूँ

प्रभु चावला

आपको विकास-पुरुष कहा जाता है ,बहुत सी स्टडी ये बताती हैं कि आपने गुजरात में पिछले 6-7 सालों में जो काम किया है वो पूरे देश में भी किसी भी राज्य में आजतक नहीं किया गया तो आपको विकास पुरुष भी कहते हैं पर लौह-पुरुष भी कहते हैं ,आप क्या मानते हैं आप क्या ज्यादा है ??

नरेंद्र मोदी-

मैंने गुजरात का विकास किया है ,ये बात आपके मुंह से सुनकर मुझे आनंद हुआ क्योंकि मेरे कई विरोधी तो इस पर ये कहना शुरू कर देते हैं कि गुजरात तो पहले से विकसित था ........

प्रभु चावला

इसमें क्या शक कि बात है कि आपने गुजरात का विकास किया है ,ये तो सबको पता लग चुका है ,मैं अगर चाहूँ भी तो भी नहीं कह सकता कि आपने गुजरात का विकास नहीं किया ,लोग झूठा समझेंगे मुझे, वैसे लोग ये भी कहते हैं कि आप हंसते बहुत कम है लेकिन आज आप काफी मुस्कुरा रहे हैं ये आप खुद पर हंस रहें हैं या मुझ पर

नरेंद्र मोदी

देखिये पहली बात है कि मैं ये मानता हूँ कि मुझे खुद पर ही हंसना चाहिए ,आप पर क्यूँ हंसूंगा मैं आपके पास टी.वी चैंनल हैं, मैगजीन हैं यहाँ से जाने के बाद मेरी धुलाई शुरू कर दोगे आपलोग

प्रभु चावला

कुछ लोग आपके बारे में कहते हैं कि आप तानाशाह हैं, लोग डरते हैं,कांपते हैं आपसे

नरेंद्र मोदी
मैं आभारी हूँ मेरे बारे में ऐसा कहने वाले लोगों का

प्रभु चावला

अभी आपने एक ऐसे कैंडीडेट को टिकट दिया था जिसके ऊपर आपराधिक मुकद्दमा चल रहा था वो दूसरी बात है कि कोर्ट ने उसे निर्दोष पाया लेकिन ....

नरेंद्र मोदी

जरा मुझे समझाइये निर्दोष पाया गया ये भी दूसरी बात है, अगर यही चीज कोंग्रेस वाले करें तो उनकी तो बड़ी प्रशंसा करते हैं आप लोग

प्रभु चावला

वो तो ठीक है लेकिन फिर बीजपी और कोंग्रेस में फर्क क्या हुआ

नरेंद्र मोदी

कोंग्रेस और बीजपी में बहुत फर्क है ,मेरे यहाँ सबसे छोटी आयु के लोग चुनाव लड़ रहे हैं , IAS और IPS के EXAMS में बैठे हुए बच्चे भी मेरे यहाँ चुनाव लड़ रहे हैं

प्रभु चावला

आपका एक मुख्यमंत्री होने के नाते देश कि minority यानी हमारे मुसलमान भाइयों के लिए क्या संदेश है कि आप क्या करेंगे उनकी भलाई के लिए ??

नरेंद्र मोदी

संदेश नम्बर वन मैं minority के लिए ना कुछ करता हूँ और ना ही कभी करूँगा ,मैं majority के लिए भी कुछ करता नहीं हूँ ,करूँगा भी नहीं ....,मैं जो भी करता हूँ वो सिर्फ गुजरात के साढ़े 5 करोड़ नागरिकों के लिए करता हूँ ,ना मैं उनकी जाती देखता हूँ ना मैं उनका सम्प्रदाय देखता हूँ ना मैं उनकी बिरादरी देखता हूँ मैं बस मेरे राज्य का भला देखता हूँ ,मैं उन सब का घौर विरोधी हूँ जो साम्प्रदायिक तराजू से ही हर चीज को तौलते हैं ,मुझे एक बारी किसी ने पूछा था कि आपने एक मुसलमान को अपने राज्य कि पुलिस का डीजीपी क्यों बनाया क्योंकि आप तो मुसलमानों को पसंद नहीं करते तो मैंने कहा था कि मैंने किसी मुसलमान को डीजीपी नहीं बनाया है ,मैंने एक सीनियर मोस्ट आईपीएस अधिकारी को डीजीपी बनाया है ,वो आपको मुसलमान नजर आता होगा लेकिन मुझे मात्र वो एक सीनियर मोस्ट आईपीएस अफसर ही नजर आता है

प्रभु चावला

आडवाणी जी कहते हैं कि हमारे तमाम मुख्यमंत्री चाहे वो गुजरात में नरेंद्र मोदी हों ,मध्य-प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान हों या छत्तीसगढ़ में रमन सिंह आदि हों उन सबने बहुत अच्छा काम किया है परन्तु फिर भी लोग भारतीय जनता पार्टी को हमेशा या तो बाबरी मस्जिद से जोड़कर देखते हैं या फिर गुजरात दंगो से ,तो आपको नहीं लगता कि आप बीजपी वालों में ये एक बड़ी कमी है कि आप अभी तक लोगों कि इस धारणा को बदलने में कामयाब नहीं हो सके ,आप लोग अपनी बात कि मार्केटिंग सही ढंग से नहीं कर पाए हैं ?? आपकी सहयोगी पार्टियां ही आप लोगों का खुलकर साथ नहीं देती , नितीश कुमार ने आपको बिहार में भी नहीं आने दिया था

नरेंद्र मोदी

मैं आजतक चैंनल से और प्रभु चावला से हाथ जोड़कर विनती करता हूँ कि नितीश कुमार ने अगर एक बार भी मेरा नाम लेकर कुछ कहा हो या ये कहा हो कि नरेंद्र मोदी बिहार में दौरा ना करें तो आप प्लीज़ वो अपने टी.वी पर दिखाइए

प्रभु चावला

नितीश कुमार ने बहुत साफ़ बोला था आपके बिहार आने कि बात पर कि हमारे पास अपना मोदी (सुशील मोदी ) है और वो भी बड़ा काबिल है ,इसलिए हमें किसी और कि जरूरत नहीं है

नरेंद्र मोदी

नहीं आप तो पहले ये कह रहे थे ना कि उन्होंने मुझे बिहार में नहीं आने दिया या मुझे मना किया था

प्रभु चावला

मैंने कहा कि नितीश कुमार बोले कि मोदी हमारे पास पहले से है

नरेंद्र मोदी

तो मैं भी तो यही कह रहा हूँ कि मोदी उनके पास पहले से ही है और मुझे गर्व है कि नितीश कुमार मानते हैं कि सुशील मोदी एक दमदार नेता है इसलिए उन्हें मेरी या किसी और कि जरूरत नहीं है तो मेरे लिए तो ये खुशी और गर्व कि बात है

प्रभु चावला

अगर ये बात है तो आप गए क्यों नहीं बिहार में ??

नरेंद्र मोदी

मुझे बताइए कि एक व्यक्ति हिंदुस्तान में कितनी जगहों पर जाएगा भई

प्रभु चावला

आप बिहार के पड़ोस में झारखंड में गए लेकिन बिहार में नहीं गए ,ये आप सीधी बात नहीं कर रहे मोदी जी सीधी बात कार्यक्रम में

नरेंद्र मोदी

मैं सीधी बात ही कर रहा हूँ आप जरा मेरी बात तो सुन लीजिए

प्रभु चावला

जी बोलिए

नरेंद्र मोदी

बिहार में जब बाढ़ आई थी तब उस बाढ़ में बिहार कि मदद के लिए पहुँचने वाला सबसे पहला व्यक्ति मैं था मेरा गुजरात था , उस समय मैं सबसे पहला व्यक्ति था जिसने नितीश कुमार को फोन किया था और मेरे बिहारी भाइयों कि मदद के लिए 10 करोड़ रुपैयों कि घोषणा कि थी और वे सारे रुपैये पहुंचा दिए थे , 2 महीनों तक मैंने बिहार में कैम्प लगाए, 23 Ambulance मैंने अपनी वहाँ भेजी थी , रोज 5-5000 लोगों का खाना मेरी सरकार वहाँ तैयार करती थी ताकि मेरे बिहारी भाई-बहनों को कोई असुविधा ना हो सके , अब आप मुझे बताइए कि अगर मेरा नितीश कुमार और बिहार से प्रेम का नाता ना होता तो क्या ये सब सम्भव हो सकता था

प्रभु चावला

मोदी जी ये सब तो हम मानते हैं कि आपने किया लेकिन आप झारखंड गए ,आप ओडिसा गए आप महाराष्ट्र गए लेकिन बिहार नहीं गए ,ऐसा क्यों

नरेंद्र मोदी

अब यूँ तो मैं अभी तक केरल भी नहीं गया ,सब जगह पर नहीं जा पाता हूँ भाई

प्रभु चावला

चुनावों में आप हमेशा गाँधी परिवार जैसे सोनिया गाँधी ,राहुल गाँधी आदि को निशान बनाते हैं और वे भी आपको निशाना बनाते हैं तो क्या कोई understanding है क्या आपकी उनके साथ ??

नरेंद्र मोदी

मेरा उनसे कोई ज्यादा व्यक्तिगत परिचय नहीं है इसलिए understanding का तो सवाल ही नहीं बनता लेकिन अगर मैं कहीं पर सीधी बात कार्यक्रम कि बात करूँगा और अगर उसमें प्रभु चावला है तो मैं प्रभु चावला कि भी बात करूँगा , जब सीधी बात कार्यक्रम में प्रभु चावला नहीं होगा तो मैं क्यों प्रभु चावला कि बात करूँगा ,तो जब वे और मैं राजनीती में है तो एक दुसरे के बारे में अगर बात करते हैं तो क्या गलत करते हैं

प्रभु चावला

लेकिन आप इमोशनल तो हो ही जाते हैं ना

नरेंद्र मोदी

मुझे खुद भी इमोशनल होना है और दूसरों को भी इमोशनल करना है भैया ,ये मेरा काम है ,अगर मेरे भीतर ये सम्वेदनाएं ना होती ,भावनाएं ना होती तो मैं भरी जवानी में ही देश के लिए मर-मिटने को क्यों निकलता ,ये बचपन से ही है मेरे अंदर और यही मेरी सबसे बड़ी ताकत है

प्रभु चावला

आपने बोला कि मैं फांसी पे चढने के लिए तैयार हूँ ,लगता है भगत सिंह के बाद अगला नम्बर आपका ही है फांसी पे चढने का

नरेंद्र मोदी

मुझे इसमें कोई डर ,समस्या या संकोच नहीं है भैया

प्रभु चावला

लेकिन ये फांसी पे चढने का शब्द प्रयोग करना ,ये तो इमोशन है ना

नरेंद्र मोदी

देखिये भाई जब कुछ लोग मेरे बारे में कहते हैं कि मोदी को फांसी दे दो तो मैं भी बस उन्हीं कि बात तो दोहराता हूँ कि हाँ भाई दे दो ,फिर इसमें बुरा क्या है , ये जो मेरे विरोधी विरोधी मेरे बारे में बार- कहते रहते हैं कि मोदी को फांसी पे लटका दो ,मोदी को ये कर दो मोदी को वो कर दो तो मैं भी बस इतना ही तो कहता हूँ कि अच्छी बात है ,कर सकते हो तो करो भाई,जरूर करो

प्रभु चावला

आप अपना दिल बड़ा क्यों नहीं करते ,पार्टी कि सेवा करने के लिए ,देश कि सेवा करने के लिए ताकि ना केवल गुजरात बल्कि सारे देश को फायदा मिले आपके अनुभव का उसके लिए थोड़ा अपना मन बड़ा करिये ना और प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना भी शुरू कीजिये ना

नरेंद्र मोदी ( हंसते हुए ) –

अच्छा तो जो लोग प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं देखते वो क्या बड़े मन के लोग नहीं होते हैं ?? ऐसे बहुत से लोग हैं जो कि राजनीती में नहीं आये हैं लेकिन वे भी बड़े मन के लोग हैं ,कई लोग हैं जो चुनाव नहीं लड़ते हैं लेकिन वे भी बड़े मन के लोग होते हैं ,कई लोग हैं जो किसी पद कि इच्छा नहीं रखते हैं वे भी बड़े मन के ही लोग होते हैं ,इसलिए भई बड़े मन और छोटे मन को मापने के लिए आपके वाले तराजू से मैं सहमत नहीं हूँ

प्रभु चावला

कुछ लोग कहते हैं कि आपको पश्चाताप करना चाहिए किसी चीज के लिए ,किस चीज के लिए ये मैं नहीं कहूँगा ,आप भी समझते हैं मैं क्या कहना चाह रहा हूँ , आपको क्या लगता है कि कोई ऐसी चीज है जिसके लिए आपको पश्चाताप करना है ??

(
इस सवाल पर मोदी जी ने जवाब नहीं दिया और प्रभु चावला को जिस तरह से 15-16 सेकंड तक आँखों में आँखें मिलाके देखा उससे प्रभु चावला कि सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी और फिर उसने बात संभालने कि कोशिश कि )

मैंने किसी चीज का नाम नहीं लिया ,आपकी कोई क़ानूनी बात हो सकती है ,आपका कोई व्यक्तिगत कार्य हो सकता है ,आपकी सरकार का कोई फैसला हो सकता है ,आपका गुजरात से बाहर दिल्ली ना जाने का फैसला हो सकता है ,मैं तो इन सब बातों के बारे में पूछ रहा हूँ किसी विशेष बात के बारे में नहीं

नरेंद्र मोदी

मैंने आपको पहले ही बताया कि अभी मुझे गुजरात कि जनता ने गुजरात का काम दिया है तो इसलिए मुझे उसको ही पूरी लगन से ,पूरे समर्पण से ,पूरी निष्ठा से करना चाहिए और वही मैं कर रहा हूँ ,अब अगर गुजरात में अच्छा काम करना ये भी मेरा गुनाह है, गुजरात का विकास करने से मैं देश का कुछ बुरा कर रहा हूँ अगर ऐसा कुछ लोगों का मानना है तो भई मैं तो और क्या कर सकता हूँ ,मैं तो फिर देश से माफ़ी ही मांगूंगा अच्छा काम करने के लिए भी

प्रभु चावला

आप हमारे स्टूडियो में आये इसके लिए आपका बहुत- धन्यवाद

नरेंद्र मोदी

आपका भी बहुत- धन्यवाद भैया
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