Wednesday, February 20, 2013

अल्पसंख्यकों के लिए...



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मशहूर साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का यह व्यंग्य करीब दो दशक पहले एक अखबार में प्रकाशित हुआ था

अल्पसंख्यक दो प्रकार के होते हैं: एक वे जो बहुसंख्यक हैं पर अपने को अल्पसंख्यक कहकरउम्दा रोजगार और उम्दा तालीम के सिवा,अपनी सनक और समझ के अनुसार सरकार से कोई भी मांग कर सकते हैंदूसरे वे जो इतने अल्पसंख्यक हैं कि अपनी पहचान बनाए रखने के लिए वे सरकार को बराबर कुछ देते रहते हैंउससे कुछ खींच नहीं पाते. उदाहरण के लिएदूसरी कोटि के अल्पसंख्यक उत्तर प्रदेश के रोमन कैथोलिक हैंउनकी संख्या सिर्फ हजारों में हैलाखों में नहीं. वे प्राय: विपन्न पर खामोशपरिश्रमी और आत्मसम्मानी लोग हैं. उत्तर प्रदेश की सबसे उम्दा शिक्षा संस्थाएं उन्होंने स्थापित की हैंउन्हें वही चला रहे हैं.
पहली कोटि के अल्पसंख्यक हमारे बहुसंख्यक मुसलमान भाई हैं. अपनी पहचान या अस्मिता कायम रखने की चिंता अगर किसी को है तो इन्हीं कोउत्तर प्रदेश के कैथोलिक ईसाइयोंमहाराष्ट्र के पारसियों या गुजरात के यहूदियों को नहीं. मुसलमान दंगे-फसाद से घबराए रहते हैं जो कि सचमुच ही चिंतनीय हैपर उससे भी ज्यादा वे घबराए हुए हैं कि हिंदुस्तान की सरकार कहीं उन पर एक से ज्यादा बीवियों को तलाक देने की प्रक्रिया दिक्कततलब न बना देकहीं उर्दू का नामोनिशान न खत्म कर देहजयात्रियों को मिलने वाले अनुदान में कहीं कटौती न हो जाएआदि-आदि.
इस हालत में केंद्र सरकार और राज्यों को क्या करना चाहिएयह सवाल ज्यादा मुश्किल नहीं है. अगर इन अल्पसंख्यकों के नेताओं की मांगें जांची जाएं तो साफ है कि उनको आधुनिक तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा की खास जरूरत नहीं हैकुरान की तालीम देने वाले मदरसों से वे संतुष्ट हैंरोटी की जगह कुछ उत्तरी और मध्यवर्ती राज्यों में उर्दू को राजभाषा बनाकर उन्हें परोस दीजिएउनका काम चल जाएगा. फिर भी अगर उन्हें लगे कि उनकी सही पहचान नहीं हो रही है तोजैसा कि केरल में हुआ हैउन्हें शुक्रवार की छुट्टी देना शुरू कर दीजिए.
यही छुट्टी वाली तरकीब काफी पुरानी और आजमाई हुई है. अंग्रेजी हुकूमत में मालाबार के मुस्लिम बहुल स्कूल शुक्रवार को काफी देर बंद रहते थे. 1967 में मार्क्सवादी मुख्यमंत्री नंबूदरीपाद महाशय ने कुछ क्षेत्रों में शुक्रवार का अवकाश घोषित किया. उनकी निगाह में यह धर्मनिरपेक्षता की और उनकी सहयोगी मुस्लिम लीग की निगाह में मुस्लिम अस्मिता की जीत थी. यह कायदा तब मल्लापुरम इलाके में लागू हुआ. अब केरल की मौजूदा सरकार ने मुस्लिम शिक्षालयों में शुक्रवार को छुट्टी का पुख्ता इंतजाम कर दिया है.
अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघभारतीय जनता पार्टी और उसी रंग-रेशे के दूसरे संगठन-जो अपनी अस्मिता के लिए मुसलमानों ही की तरह व्याकुल हैं- इसे अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण बताएं तो इसका भी इलाज है. उनके स्कूलों में मंगलवार का अवकाश दे दें ताकि उस दिन वे लाल लंगोटे वाले की आराधना कर सकें. शर्त सिर्फ यह रहे कि चाहे हिंदू हो या मुसलमानरविवार की छुट्टी सबके लिए बरकरार रहे.
इसके अलावा और क्या किया जाएआप चाहे भाजपा के अध्यक्ष ही क्यों न होंमुस्लिम नेताओं को बुलाकर रमजान में इफ्तार की दावत जरूर दें. संक्षेप मेंअगर अपने समाज की पहचान पक्की बनाने के लिए उसके नेता उसे पंद्रहवीं सदी में लिए जा रहे हों तो सरकार की नीति उन्हें और पीछे खिसकाकर तेरहवीं सदी में ले जाने की हो सकती है. यह अल्पसंख्यकों का आदर्श तुष्टीकरण होगा. पीछे जाने की उनकी महत्वाकांक्षा को इतना उत्तेजित किया जाए कि वे एक आधुनिक सभ्य समाज की जगह 'गुलिवर ट्रैवल्सके याहू बनने का भरपूर मौका पा सकें.

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