Sunday, January 30, 2011

मोदी को नहीं, गुजरात को जानता हूं, दारुल उलूम देवबंद के कुलपति गुलाम मोहम्मद वस्तानवी

वह देश के145 साल पुराने शीर्षस्थ इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद के कुलपति हैं। उनकी कई खासियत हैं, जो उन्हें इस प्रतिष्ठित केंद्र के कुलपति रह चुके बाकी लोगों से अलग कतार में खड़ा करती हैं। वह इस धार्मिक शिक्षण संस्था के पहले ऐसे कुलपति हैं जो एमबीए डिग्री होल्डर हैं। वह पहले कुलपति हैं जो उप्र के बाहर (गुजरात) के हैं। वह अतीत के बजाय भविष्य पर नजर रखने के पक्षधर हैं। वह शरियत के सख्त पाबंद हैं, लेकिन बेवजह की फतवाबाजी के खिलाफ हैं। जी, हां बात हो रही है मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी की, जो इसी महीने दारुल उलूम देवबंद के कुलपति नियुक्त हुए हैं। कुलपति बनने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक बयान से विवाद के घेरे में हैं। उन पर इल्जाम यह है कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी। नरेंद्र मोदी पर उनके बयान से लेकर दारुल उलूम में उनके खिलाफ होने वाले विरोध तक के घटनाक्रम पर उप्र राज्य ब्यूरो प्रमुख नदीम ने मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी से बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश- नई जिम्मेदारी मिलते ही इस तरह की मुश्किल में घिरना, कैसा महसूस कर रहे हैं आप? सब कुछ गलतफहमी की वजह से हुआ है। मीडिया ने मेरी बातों को गलत तरीके से पेश किया जिसकी वजह से यह माहौल बना। मैंने हकीकत में जो बात कही थी वह सबके सामने रख दी। अगर कुछ लोग समझने को तैयार नहीं हैं तो मैं क्या कर सकता हूं? विवाद की वजह है कि आपने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी। क्या यह सही है? मैंने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट नहीं दी। और भला मैं नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाला कौन हो सकता हूं? गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की जो भूमिका रही है उसे भुलाया नहीं जा सकता। क्लीन चिट न सही लेकिन उनके शासन की तारीफ तो की आपने? मैंने किसी की तारीफ नहीं की। मैं किसी नरेंद्र मोदी को नहीं जानता। मैं गुजरात को जानता हूं। अगर आप मुझसे आठ साल पहले के गुजरात के बारे में पूछेंगे तो मैं तब के हालात बताऊंगा और जब आप आज के हालात पूछेंगे तो मैं आज के हालात बताऊंगा। आज की तारीख में मैं यह तो नहीं कह सकता है कि गुजरात में दंगा हो रहा है। कफ्र्यू लगा है। लोग मारे जा रहे हैं। आपका कहना है कि मीडिया ने आपके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया। क्या आप बता सकते हैं कि आपने कहा क्या था? गुजरात के बारे में वही बात जो अभी मैंने आपसे कही। आज का गुजरात कैसा है? सभी लोग खा-पी रहे हैं। मस्त हैं। इसी वजह से तो मोदी के शासन की तारीफ हो रही है और आप उसकी तस्दीक कर रहे हैं.. (सवाल को बीच में काटते हुए) मैं दारुल उलूम का कुलपति हूं। आप मुझसे यहां के बारे में सवाल करिये। गुजरात के बारे में अगर आपको बात करनी है तो वहां के किसी आदमी से बात करिए। क्या आप नरेंद्र मोदी को माफ करने को तैयार हैं? नहीं, किसी भी सूरत में नहीं। मैं क्या नरेंद्र मोदी को तो अल्लाह भी माफ नहीं करेगा। दारुल उलूम देवबंद में आपको लेकर इतना विरोध क्यों? जितने विरोध की बात मीडिया में आ रही है, उतना विरोध वास्तव में हो नहीं रहा है। असंतोष पर काबू पाने के लिए छात्रों को निलंबित करना पड़ा और आप कह रहे हैं उतना विरोध नहीं है जितना मीडिया में आ रहा है? परिसर में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं होगी। दारुल उलूम की छवि खराब करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। छात्रों के असंतोष के पीछे क्या आपको अपने खिलाफ कोई साजिश भी दिखाई देती है? मेरे पास इसका कोई सबूत नहीं है। जब तक मेरे पास कोई पुख्ता सबूत न हो, मैं इसे साजिश नहीं सकता। बच्चे हैं, हो सकता है कि खुद बहक गए हों। यह भी हो सकता है कि किसी के बहकावे में आ गए हों, लेकिन उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने भविष्य में ऐसी गलती न करने की बात कही तो मैंने उनका निलंबन वापस कर दिया। आपने इस्तीफा देने की घोषणा की थी, क्या यह फैसला किसी दबाव में था? नहीं कोई दबाव नहीं था। मैं नहीं चाहता था कि बेवजह मेरी वजह से समस्या पैदा हो। आज की तारीख में आप मुसलमानों की सबसे बड़ी क्या समस्या देखते हैं? गरीबी और अशिक्षा आज की तारीख में मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या हैं। मुसलमानों को अपने आपको तालीम और तिजारत सेजोड़ना होगा। इसके बिना मुसलमानों की तरक्की मुमकिन नहीं है। मुसलमानों को यह बहुत अच्छी तरह समझनी होगी कि उनकी गरीबी मिटाने के लिए कोई दूसरा नहीं आएगा। अपनी गरीबी मुसलमानों को खुद मिटानी होगी। आप कह रहे हैं कि तरक्की के लिए मुसलमानों को अपने को तालीम और तरक्की से जोड़ना होगा, इसके लिए आपको क्या रास्ता दिखता है? किसी चीज की भी भूख खुद रास्ता दिखा देती है। जिस दिन मुसलमान में यह भूख पैदा हो गई कि उसे हर कीमत पर तालीम चाहिए, वह तालीम याफ्ता हो जाएगा। तालीम के बाद उसने अगर तिजारत की ठानी तो वह तिजारती हो जाएगा। बात जब मुसलमानों की तरक्की की होती है, आगे बढ़ने की होती है तो लड़कियों की सह शिक्षा, पुरुषों के साथ काम करने जैसे मुद्दों पर फतवे आ जाते हैं, इससे क्या तरक्की का मार्ग बाधित नहीं होता है? किसी विषय पर कुरान क्या कहता है, यह फतवा है। फतवा मांगना गलत नहीं बस उसकी गलत व्याख्या नहीं होनी चाहिए। कहा जाता है कि मुसलमानों की तरक्की में बाधा उनका रूढि़वादी होना भी है? यह बात कतई गलत है। मुसलमान न तो रूढि़वादी होते हैं और न ही आधुनिक। उनका ईमान कुरान होता है। कुरान में जो हिदायत दी गई है, मुसलमान उस हिसाब से जिंदगी जीता है। कुरान को मानना हर मुसलमान के लिए जरूरी शर्त है। दारुल उलूम देवबंद में आपको जो नई जिम्मेदारी दी गई है उसके बाद आपने क्या कोई लक्ष्य निर्धारित किया है? इस इदारे का अपना एक मुकाम और पहचान है। यह और तरक्की हासिल करे और इसे और शोहरत हासिल हो।

और खतरनाक हुआ पाकिस्तान, ऐटमी हथियारों की संख्या दोगुनी

वॉशिंगटन. आतंकवाद को बढ़ावा देकर पहले ही भारत और बाकी दुनिया के लिए खतरा बन चुका पाकिस्तान अब ज्‍यादा खतरनाक बन गया है। उसने भारत को काफी पीछे छोड़ते हुए अपने परमाणु हथियारों की संख्या दोगुनी कर ली है। अमेरिका के मशहूर अखबार 'वॉशिंगटन पोस्ट' की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने पिछले कुछ सालों में परमाणु हथियारों का जखीरा दोगुना कर लिया है अब इनकी संख्या 100 पार कर चुकी है। अखबार के मुताबिक पाकिस्तान ने यूरेनियम और प्लूटोनियम उत्पादन में खासी तेजी लाते हुए नए परमाणु हथियार विकसित किए हैं। 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने गैर सरकारी जानकारों के हवाले से यह रिपोर्ट प्रकाशित की है।    

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के विकास से चिंतित है। पाकिस्तान को दुनिया के सबसे खतरनाक और अशांत इलाकों में से एक माना जाता है। यहां परमाणु हथियारों पर आतंकी कब्‍जे की भी आशंका जताई जाती रही है। ऐसे में पाकिस्‍तान में ज्‍यादा से ज्‍यादा परमाणु हथियार बनाने की होड़ से ओबामा प्रशासन के सामने ऊहापोह की स्थिति है। 

बताया जाता है कि भारत के पास करीब 50 से 70 परमाणु हथियार हैं।  भारत की नीति परमाणु ताकत बढ़ाने के बजाय परमाणु ऊर्जा का इस्‍तेमाल जनता के हितों के लिए करने की है। पर ओबामा प्रशासन को डर है कि पाकिस्‍तान की उल्‍टी नीति के चलते दक्षिण एशिया के बाकी देश भी परमाणु हथियार विकसित करने की होड़ में शामिल हो सकते हैं। 

ओबामा की असमंजस यह भी है कि वह भारत के साथ बेहतर आर्थिक, राजनैतिक और रक्षा संबंध बनाने की कोशिश के साथ ही अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ लड़ाई में मुख्य सहयोगी पाकिस्तान के साथ भी अपने रिश्ते गहरा करना चाहते हैं। लेकिन भारत और पाकिस्तान के खराब रिश्ते के चलते अमेरिका के सामने दुविधा की स्थिति है। 

सियासी तौर पर अस्थिर पाकिस्तान दो आशंकाओं के बीच फंसा हुआ है। पाकिस्तान को आशंका है कि आतंकवादी परमाणु हथियारों और बम बनाने वाले सामानों पर कहीं कब्जा न कर लें वहीं पाकिस्तान को इस बात का भी शक है कि अमेरिका उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम पर बंदिशें लगाकर भारत को फायदा पहुंचा सकता है। 

पिछले हफ्ते जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के परमाणु निशस्त्रीकरण के मुद्दे पर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के राजदूत जामिर अकरम ने  अमेरिका समेत दूसरी बड़ी ताकतों पर दोहरे मापदंड और भेदभआव का आरोप लगाया। अकरम ने कहा कि ताकतवर देश पाकिस्तान पर  उस समझौते के लिए दबाव बना रहे हैं कि जिसके तहत भविष्य में होने वाले यूरेनियम और प्लूटोनियम के उत्पादन पर रोक लगाने की बात कही गई है।    

पाकिस्तान के पास बम, भारत के पास सामानअमेरिकी मीडिया के मुताबिक पाकिस्तान ने भारत से ज़्यादा परमाणु बम विकसित कर लिए हैं। लेकिन भारत के पास भविष्य में बम बनाने के काम आने वाला यूरेनियम और प्लूटोनियम पदार्थ है। जबकि पाकिस्तान को इसका उत्पादन और विकास करना होगा। यही वजह है कि पाकिस्तान यह आरोप लगाता है कि भारत इस मामले में मजबूत स्थिति में है और भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते से भी भारत को काफी मदद मिली है।
 

पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता है अमेरिका अमेरिका रिका की कोशिश है कि इस साल के आखिर तक परमाणु हथियार को बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामानों पर प्रतिबंध लगा दिया जाए ताकि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान जैसे देशों के सामने परमाणु अप्रसार का मुद्दा मजबूती से रखा जा सके। इस क्षेत्र में चीन भारत को बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानता है। चीन ने पाकिस्तान में दो न्यूक्लियर एनर्जी रिएक्टर बनाने में सहयोग कर रहा है। रूस भारत के साथ ऐटमी सहयोग कर रहा है और उसने पाकिस्तान को पिछले हफ्ते बताया कि रूस पाकिस्तान की गतिविधियों से चिंतित है।  
अमेरिका के हथियारों के प्रमुख वार्ताकार रोज गॉटमोलर ने हाल ही में इस मुद्दे पर कहा, 'हमारा धैर्य खत्म हो रहा है।

संघर्षो के बीच दोराहे पर देवबंद


समकालीन संसार की सबसे बड़ी नादानियों में से एक है तमाम धर्म, मत संप्रदाय के आचार्यो को काटरून किरदारों में बदल देना। और इसीलिए इमामों का चित्रण लंबी-सी दाढ़ी और विकृत आंखों के साथ किया जाता है, पंडित की जरूरत से लंबी चोटी, बड़ी तोंद और लोलुप निगाहें दिखाई जाती हैं, तो ईसाई फादर बुरी नजर को छुपाने में नाकाम बगुलाभगत की तरह का आभामंडल रखते हैं। इस बेतुकेपन के लिए नैतिक ह्रास वाले आधुनिक संसार में धर्म की अवनति जिम्मेदार है और इसका एक आंशिक कारण हर धर्म-संप्रदाय के पुरोहित वर्ग में जड़तावादी चरमपंथ की मौजूदगी है, जो परमसत्ता के नाम पर हिंसा को न्यायसंगत ठहराता है। 

आस्था- मंदिर, मस्जिद या चर्च- स्वेच्छाचारिता और तानाशाही के असंख्य रूपों से निरंतर संघर्षरत लोगों के लिए परंपरागत अभयारण्य रही है। सक्षम सरकारें, चाहे वे तानाशाह हों या लोकतांत्रिक, धर्माचार्यो की ताकत को समझ चुकी हैं और दोहरी प्रतिक्रिया का चुनाव करती हैं : वे जड़तावादी चरमपंथ को दबाती हैं और चापलूसी व रिश्वत के चतुर मेल के जरिए धर्माचार्य वर्ग को स्थापित होने में सहयोग देने की निरंतर कोशिश करती रहती हैं। इस वर्ग के लिए परीक्षा की असली घड़ी तुलनात्मक रूप से शांत दौर में नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दमन के दौरों में आती है। 

यदि हम भारतीय और खासतौर से उत्तर भारतीय मुस्लिमों के जीवन में उलेमा के असर को समझना चाहते हैं, तो हमें 19वीं सदी में उतार के युग में उनके द्वारा निभाई गई शानदार भूमिका को याद करना पड़ेगा, जब सहारा देने वाला हर स्तंभ भरभरा रहा था। इन्हें या तो पतनकाल की दीमक चाट रही थी या ये ब्रिटिश सेना की उभरती हुई ताकत से परास्त हो रहे थे। तब वह उलेमा वर्ग ही था, जिसने समुदाय को बांधे रखा। यहां तक कि इसकी जड़तावादी शाखा शाह वलीउल्लाह के मदरसे के छात्रों (या तालिबान) ने राजनीतिक शक्ति की पुनस्र्थापना के लिए जेहाद की शुरुआत भी की। यह युद्ध विफल रहा, पर जो इस युद्ध में शामिल नहीं हुए थे, उन्होंने निचले स्तर पर नेतृत्व के जरिए उस समुदाय को कहीं ज्यादा बड़ी सेवा उपलब्ध कराई, जो आर्थिक और सामाजिक दबाव में था और न सिर्फ भरण-पोषण को लेकर डरा हुआ था, बल्कि अपनी भाषा और संस्कृति के खात्मे को लेकर भी भयभीत था। ऐसे पीड़ादायक हालात के बीच से ही करीब डेढ़ सदी पहले देवबंद से दार-उल-उलूम जैसे संस्थान का जन्म हुआ। महात्मा गांधी ने इस मदरसे के न सिर्फ धार्मिक महत्व, बल्कि जनसामान्य से इसके जुड़ाव के असर को भी पहचाना था। 

देवबंद बीसवीं सदी की शुरुआत में उच्चवर्ग, नवाब और जमींदारों के प्रभुत्व वाली मुस्लिम राजनीति का विरोधी था। पश्चिम प्रभावित संवाद में देवबंद का आमतौर पर दानवीकरण ही किया गया। हां, एक गौण गतिविधि भी है, जिसने देवबंद को प्रतिगामी घोषणाओं की एक फतवा फैक्टरी में बदल दिया है। और इसके कुछ प्रभावशाली नाम हिंसा को जायज ठहराते रहे हैं। लेकिन हर महान संस्थान से कुछेक ऐसे बच्चे तो निकलते ही हैं, जो अपने बुद्धिमान बुजुर्गो का सम्मान नहीं करते। देवबंद उन मुस्लिमों के लिए बेहद शानदार स्रोत है, जिन्हें जन्म और वंश परंपरा से कोई लाभ नहीं मिला। 

मुस्लिमों के बीच यह लगाव देवबंद को शक्ति केंद्र बनाता है। और जहां पर शक्ति होगी, वहां राजनीति भी होगी। फिलहाल हम विरोधी गुटों के बीच राजनीतिक संग्राम देख रहे हैं और अधिकारप्राप्त दल देवबंद पर नियंत्रण के लिए उन्हें हवा दे रहे हैं। मोहतमिम या एक तरह से वाइस चांसलर के तौर पर मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तान्वी की नियुक्ति से जन्मी अशांति के पीछे कई कारण हैं। वस्तान्वी एक असाधारण मौलाना हैं, जिन्होंने 1979 में गुजरात-महाराष्ट्र की सीमा पर एक जनजातीय क्षेत्र में महज छह छात्रों के साथ एक झोपड़ी में मदरसा शुरू किया था और उसे देशभर में दो लाख छात्रों वाले संस्थान में बदल दिया। इसीलिए वे उत्तरप्रदेश के बाहर के पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें यह सम्मान और जिम्मेदारी दी गई। उनकी मौजूदगी उन सुधारों के लिए भरोसा दिलाती है, जो छात्रों की गहरी इच्छा हैं। लेकिन यह उस वर्ग के लिए चिंता भी है, जिसने दिल्ली और देश के बाहर से व्यक्तिगत लाभों के लिए देवबंद को निचोड़ा है। गहरे तक पैठ चुके इन स्वार्थो को तो हर बहाने से वस्तान्वी को चुनौती देनी ही थी। और उन्होंने आत्मरतिकों की मदद से ताकत के भूखे पत्रकारों को खोज ही लिया। 

जैसा कि पहले भी हो चुका है, देवबंद दोराहे पर है। अगर यह धार्मिक कर्मकांडी समूह की मिल्कियत बन जाता है, जो अपने लालच के लिए इस महान नाम का शोषण करना चाहते हैं, तो फिर वस्तान्वी बाहर हो जाएंगे। अगर देवबंद अपने संस्थापकों के आदर्शो के प्रति ईमानदार बना रहता है, तो फिर यह शैक्षिक सुधार और खुले विचारों की ओर जाएगा, जो एक साधनहीन भारतीय मुस्लिम बच्चे को साधनसंपन्न वयस्क में बदल सकता है।

एम.जे. अकबर
लेखक द संडे गार्जियन के संपादक और इंडिया टुडे के एडिटोरियल डायरेक्टर हैं

Saturday, January 29, 2011

'प्रस्ताव' ठुकराया तो छात्रा को चाकू भोंका प्रफेसर ने

चेन्नै ।। 22 साल की स्टूडेंट द्वारा ठुकराए जाने से नाराज एक प्रफेसर ने उस पर चाकू से कातिलाना हमला कर दिया। मामला तिरुपाचूर के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज का है। 

पुलिस के मुताबिक इंजीनियरिंग कॉलेज की फाइनल इयर स्टूडेंट एस प्रीति रामावरम की एक कंपनी से वापस लौट रही थीं जहां वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक प्रॉजेक्ट कर रही थीं। रास्ते में ही प्रफेसर अरुण कुमार ने उन पर चाकुओं से हमला कर दिया। प्रीति की गरदन, सर और बाईं उंगली में चोटें आईं। दोस्तों ने शोर मचाया, लेकिन अरुण कुमार वहां से भागने में सफल रहा। प्रीति को तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां उनका इलाज चल रहा है। वालासरवक्कम पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। 

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक माधवरम के अरुण कुमार तिरुपाचूर इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रफेसर और इलेक्ट्रॉनिक्स के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हैं जहां प्रीति स्टूडेंट है। अरुण कुमार शादीशुदा हैं लेकिन उनकी शादीशुदा जिंदगी में कुछ समस्याएं चल रही हैं। 

अरुण कुमार ने कुछ दिनों पहले प्रीति को प्रोपोज किया था, लेकिन प्रीति ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इसके बावजूद जब अरुण कुमार ने उसकी पीछा नहीं चोड़ा और उसे लगातार परेशान करते रहे तब प्रीति ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। प्रीति की शिकायत पर पुलिस ने अरुण कुमार को प्रीति से दूर रहने की हिदायत दी थी। माना जा रहा है कि इसी से नाराज अरुण कुमार ने प्रीति पर हमला कर दिया।

मॉर्निंग में सेक्स

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(pic: Gettyimages)
आज तक यह माना जाता रहा है कि सुबह अच्छा नाश्ता आपको दिनभर तरो-ताजा रखता है। पर, अमेरिका के एक रिसर्च साइंटिस्ट और सेक्स सलाहकार डॉ. डेबी हरबेनिक ने सुबह-सुबह सेक्स को सेहत के लिए सबसे फायदेमंद बताया है। डॉ. डेबी के मुताबिक, लोग यह समझते हैं कि एक कप अच्छी चाय के साथ सुबह की शुरुआत बढ़िया रहती है। पर, अगर कोई सुबह सेक्स से दिन की शुरुआत करे तो उसकी सेहत कहीं अधिक अच्छी रहेगी। 

इसकी वजह उन्होंने यह बताई कि सुबह के वक्त ऐसा करने से जो केमिकल शरीर से निकलते हैं, वे आपको कहीं अधिक संतुष्टि देते हैं और ये आपको प्रसन्न रखने के साथ-साथ सेहतमंद भी रखते हैं। एक और अमेरिकी सेक्स सलाहकार जेन ग्रीनर ने कहा कि सुबह सभी को और कामों की जल्दी भी होती है। ऐसे में सेक्स क्रिया भी थोड़ी जल्दी में होती है, जिससे शारीरिक ऐक्टिविटी कहीं अधिक तेज होकर एक तरह से किसी एक्सरसाइज की तरह मदद करती हैं। 

डॉ. डेबी ने अपनी रिसर्च के पक्ष में बेलफास्ट यूनिवर्सिटी के शोध का भी हवाला दिया है। उस शोध में यह पाया गया है कि हफ्ते में तीन दिन सेक्स से किसी भी तरह के स्ट्रोक पड़ने का खतरा आधा रह जाता है। वर्ष 2009 में की गई एक और स्टडी के हवाले से उन्होंने कहा कि ऐसा करने से पुरुष और महिलाओं दोनों की ही प्रजनन क्षमता बढ़ भी जाती है

6 करोड़ बार देखे जाने के बाद भी अविश्वस्नीय है यह वीडियो


दिल्ली : यूट्यूब पर मोस्ट पॉपुलर वीडियो सर्च करने पर बैटल एट क्रुगर नाम से एक वीडियो डिस्पले होता है। मई 2007 में पोस्ट हुए इस वीडियो को अब तक लगभग 6 करोड़ बार देखा जा चुका है लेकिन फिर भी यह वीडियो अविश्वसनीय सा लगता है।  जंगल के कानून को दर्शाता यह वीडियो सितंबर 2004 में शूट किया गया था। आठ मिनट के इस वीडियो में दक्षिण अफ्रीका के क्रुगर नेशनल पार्क में कैप बफैलो (अफ्रीकी भैंसों), शेरों के एक झुंड और एक या दो मगरमच्छों के बीच की झड़प दिखती है। यह वीडियो गाइड फ्रैंक वॉट्स द्वारा गाइड की गई एक सफारी के दौरान शूट किया गया था। इसे वीडियोग्राफर डेविड बुडजिंस्की और फोटोग्राफर जेसन स्कोलबर्ग ने शूट किया था।   डिजीटल कैम रिकार्डर द्वारा शूट किए गए इस वीडियो में एक भैंसों के झुंड पानी की ओर बढ़ता हुआ दिखाई देता है जिस पर हमला करने के लिए शेर घात लगाए बैठे हैं। शेरों को देखकर भैंसों भाग जाते हैं लेकिन एक बच्चा शेरों के शिकंजे में फंस जाता है। इस बच्चे का शिकार करने की मशक्कत में शेर इसे लेकर पानी में गिर जाते हैं जहां एक या दो मगरमच्छ शेरों से इस बच्चे को छीनने की कोशिश करते हैं।  सभी शेर मिलकर बच्चे को मगरमच्छों के मुंह से निकाल लेते हैं। इससे पहले की वो इस बच्चे को अपना भोजन बनाते भैंसों का झुंड दोबारा इकट्ठा होकर शेरों पर हमला करता है। कई मिनट तक शेरों के जबड़ों में रहने के बाद भी भैंस का बच्चा जिंदा बच जाता है और भैंसों का समूह अंत में शेरों को खदेड़ कर इस बच्चे की जान बचा लेता है। इस वीडियो को देखकर इस पर आसानी से यकीन नहीं होता। लेकिन यह वीडियो है एकदम असली। भैंस का बच्चा पहले शेरों के चंगुल से छूटकर पानी में गिरता है जहां मगरमच्छ उस पर हमला बोल देते हैं। शेर उसे मगरमच्छ के मुंह से निकालते हैं लेकिन भैंसें वापस आकर उसे छुड़ा ले जाते हैं। यूट्यूब पर आते ही यह वीडियो बेहद लोकप्रिय हो गया था। बाद में इस वीडियो पर टाइम मैग्जीन ने एक लेख भी प्रकाशित किया था। यही नहीं नेशनल ज्योग्राफिक चैनल ने भी इस वीडियो पर डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की थी

राहुल जी आप ही की तो देन है भ्रष्‍टाचारी राजनीतिक तंत्र?

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औरंगाबाद। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने महाराष्‍ट्र के औरंगाबाद जिले में युवाओं से कहा, कि वे भ्रष्‍टाचारी राजनीतिक तंत्र को खत्‍म करने के लिए आगे आएं। लेकिन इस बार फिर वे अपनी पार्टी के गिरेबान में झांकना भूल गए। अरे राहुल जी जिस भ्रष्‍टाचारी तंत्र को आप जड़ से उखाड़ फेंकने की बात कर रहे हैं, वो आपकी ही कांग्रेस पार्टी की देन है। तो क्‍या देश के युवा बाहर से आकर आपकी पार्टी के भ्रष्‍टाचारी नेताओं को बाहर करेंगे? क्‍या आपको पता है, भ्रष्‍टाचार के सबसे ज्‍यादा मामले आपकी ही सरकार में उजागर हुए हैं? 

यह सवाल हर उस युवा के मन में चल रहा है, जो अपने देश को भ्रष्‍टाचार से मुक्‍त देखना चाहता है। राहुल गांधी के शनिवार के भाषण ने इसके अलावा कई और सवाल युवाओं के बीच खड़े कर दिए हैं। आइये एक-एक कर सवालों पर गौर करते हैं। 

क्लिक करें- छात्रों की क्‍लास में फेल हुए राहुल गांधी 

पहला सवाल भ्रष्‍टाचार का है, जिसमें राहुल गांधी अपने हर भाषण में युवाओं से भ्रष्‍टाचार को खत्‍म करने के लिए राजनीति में आने का आह्वान करते हैं। 12 जनवरी को राहुल ने यही बात लखनऊ में भी कही थी, तब एक छात्र ने उनसे पूछा कि क्‍या राजनीति में करियर सुरक्षित है? तो राहुल का जवाब था, अगर आपको करियर बनाना है, तो आप जाकर बीबीए, एमबीए करें। अपने इस बयान से राहुल गांधी ने बीबीए, एमबीए करने वाले छात्रों के लिए राजनीति के दरवाजे सीधे बंद कर दिए और सभागार में मौजूद युवाओं के सवाल अनसुलझे रहे। ऐसा ही कुछ शनिवार को औरंगाबाद में हुआ। यहां भी राहुल यह नहीं बता सके, कि राजनीति में कैसे आएं। 

महाराष्‍ट्र दौरे पर आए राहुल गांधी ने कहा कि लोग शिकायत करते हैं, लेकिन भ्रष्‍टाचार खत्म करने के लिए राजनीतिक तंत्र को बदलने की कोशिश नहीं करते। राजनीतिक तंत्र में खराबी है और इसे बदलने के लिए युवाओं की सहभागिता की जरूरत है। राहुल जी जरा बताएं कि अगर भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अगर देश के युवा लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन करें, तो क्‍या गारंटी है, कि आपकी सरकार उन पर लाठी नहीं बरसाएगी। 

राहुल गांधी का कहना है कि अब बदलाव की जरूरत है और इस बदलाव के लिए युवा और कुशल लोग हमारे साथ जुड़ें, क्योंकि बदलाव के लिए हमें उनकी जरूरत है। यहां सवाल यह उठता है कि अगर कोई युवा सिर पर कफन बांध कर कांग्रेस से जुड़ भी गया, तो क्‍या उसे पार्टी से भ्रष्‍टाचारी तत्‍वों को बाहर करने की पूरी छूट दी जाएगी? शायद नहीं! 

जी हां हर राज्‍य में राहुल गांधी का एक ही भाषण अब युवाओं पर कोई असर डालने वाला नहीं है। अगर कांग्रेस को वाकई में देश के युवाओं को अपने साथ जोड़ना है, तो उससे पहले पार्टी में सफाई करनी ही होगी, नहीं तो आने वाले युवा भी गंदगी में ढल जाएंगे

दोर्जे के जरिए अपने नापाक मंसूबे हासिल करना चाहता है चीन, गुरु पर भी था शक


नई दिल्ली. चीन ने अपने हितों को साधने और प्रतिद्वंद्वी देशों की खुफिया जानकारी हासिल करने के लिए ऐसे देशों में बड़े पैमाने पर अपने एजेंट रखे हुए हैं। इनमें अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हैं। चीन भारत में अपने जासूसी का जाल बिछाने की कोशिश कर रहा है। करमापा के निवास से विदेशी खासकर चीनी मुद्रा की बरामदगी से भारत की खुफिया एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। भारतीय जांच एजेंसियों को करमापा के चीन का जासूस होने का शक है। साफ है चीन भारत में भी अपनी पकड़ बनाना चाहता है।  

सूत्रों का कहना है कि चीन चाहता है कि दोर्जे हिमालय के भारत में मौजूद हिस्से में वही करें जो चीन ने नेपाल में किया है। भारत-नेपाल सीमा पर चीन ने करीब 17 चीन स्टडी सेंटर खोल दिए हैं। यहां चीनी भाषा और वहां की संस्कृति पढ़ाई जाती है। लेकिन जानकारों का मानना है कि चीन की बड़ी योजना नेपाल में चीन के असर को बढ़ाना है, जिससे भारत के हित प्रभावित होंगे। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि चीन ने दोर्जे को भारत इसलिए भेजा ताकि दलाई लामा की गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके और दोर्जे खुद को दलाई लामा के उत्तराधिकारी के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकें। इसके साथ ही सूत्रों का दावा है कि चीन चाहता है कि दोर्जे सिक्किम के रूमटेक बौद्ध मठ पर भी नियंत्रण कर लें। रूमटेक मठ बौद्ध धर्म के काग्यु मत का प्रमुख केंद्र है। लेकिन दोर्जे के प्रतिद्वंद्वी करमापा के विरोधियों की सक्रियता की वजह से अब तक ऐसा नहीं हो सकता है। हाल ही में भारत-नेपाल सीमा पर तीन चीनी नागरिकों को फर्जी पासपोर्ट के साथ गिरफ्तार किया गया है। इन लोगों के भी जासूस होने का शक है। हालांकि, चीन ने इन्हें सिविल इंजीनियर बताया है।     

गुरु पर भी था शक
करमापा के गुरु ताई सीतु रिंपोछे को बौद्ध मठ निर्माण में चीनी धन के निवेश व चीन के साथ संबंधों के चलते उन्हें भारत छोडऩे का सर्कुलर जारी किया गया था, जिसके विरोध में रिंपोछे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उन्हें भारत में रहने की अनुमति दी थी। रिंपोछे के मठ में अधिकतर चीन प्रभावित देशों के बौद्ध अनुयायी निरंतर आते-जाते हैं। ताई सेतु रिंपोछे के चीनी अधिकारियों से संपर्क में होने के आरोपों के चलते उनका भारत में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था।

अमेरिका में भी जासूस 
चीन अपने प्रतिद्वंद्वी देशों में न सिर्फ अपने एजेंट से जानकारियां हासिल करता है बल्कि वह प्रतिद्वंद्वी देशों की खुफिया एजेंसी में भी अपने जासूस घुसाने की कोशिश करता है। हाल ही में अमेरिका की मिशिगन अदालत ने एक अमेरिकी नागरिक को चार साल की सज़ा सुनाई। इस आदमी पर आरोप था कि वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए में भर्ती होने की कोशिश कर रहा था ताकि वह चीन के लिए जासूसी कर सके। 29 साल के ग्लेन श्राइवर ने यह माना कि उसने अक्टूबर में राष्ट्रीय रक्षा से जुड़ी जानकारियां चीन के खुफिया अधिकारियों को देने की साजिश रची थी। श्राइवर ने यह भी माना कि उसने चीनी अधिकारियों से 70 हजार अमेरिकी डॉलर की रकम भी हासिल की थी। हाल ही में एक अन्य मामले के तहत एक भारतीय मूल के शख्स को अमेरिकी अदालत ने चीन को लड़ाकू विमान की तकनीक बेचने के मामले में दोषी मानते हुए ३२ साल की सज़ा सुनाई है

जासूसी के शक में करमापा पर चल सकता है केस, दोबारा हो रही पूछताछ


नई दिल्ली/धर्मशाला. हवाला कारोबार और चीन का जासूस होने के आरोपों का सामना कर रहे बौद्ध धर्म के तिब्बती गुरु करमापा उग्येन दोर्जे से शनिवार की दोपहर में पुलिस और खुफिया एजेंसी के अधिकारी दोबारा पूछताछ कर रहे हैं। इससे पहले शुक्रवार रात में भी दोर्जे से पूछताछ की गई। इस बारे में ब्योरा आज सामने आ सकता है। बताया जा रहा है कि दोर्जे शनिवार सुबह की प्रार्थना में शामिल नहीं हुए। माना जा रहा है कि दोर्जे से पूछताछ के बाद उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। दोर्जे के पास कोई कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए कोई राजनयिक विशेषाधिकार (इम्युनिटी) नहीं है और भारतीय कानूनों के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।   

हिमाचल प्रदेश में करमापा के मठ और दिल्ली के मजनू का टीला से 23 देशों की मुद्राओं में करीब 7 करोड़ रुपये की रकम बरामद की गई है। इस बरामदगी के बाद शक जताया जा रहा है कि करमापा के तार चीन से जुड़े हो सकते हैं। उधर, करमापा के कार्यालय की ओर से साफ किया गया है कि करमापा कानूनी कार्रवाई में सहयोग करने के लिए तैयार हैं। केंद्र सरकार के एक अधिकारी ने कहा, 'भारत तिब्बत की सरकार को मान्यता नहीं देता है तिब्बत की किसी निष्कासित सरकार को भारत मान्यता नहीं देता है। भारत धर्मशाला में तिब्बतियों की सरकार को दलाई लामा का एक ब्यूरो भर मानता है। भारत के लिए तिब्बती शरणार्थी हैं, उनके पास कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए कोई अधिकार नहीं हैं। अधिकारी ने कहा कि कानून अपना काम करेगा।'  हालांकि कोर्ट के एक आदेश के मुताबिक 1985 से पहले जन्मे तिब्बती शरणार्थी भारतीय नागरिकता ले सकते हैं।

भारत ने लगा रखी हैं बंदिशें, करमापा भी नहीं मानती 
 भारत सरकार को जब यह अंदेशा हुआ कि दोर्जे का तिब्बत से भागना और भारत आकर रहना चीन की बड़ी योजना का हिस्सा था, उसके बाद भारत ने दोर्जे की गतिविधियों पर लगाम लगा दी थी। सूत्रों ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा कि वह करमापा भी नहीं हैं और वह सिर्फ उग्येन दोर्जे हैं। भारत सरकार ने साफ किया है कि करमापा दलाई लामा के संभावित उत्तराधिकारियों में से एक हैं, लेकिन अभी उन्हें चुना जाना बाकी है। वहीं, एक अन्य अधिकारी का कहना है कि भारत तिब्बती धर्मगुरुओं को धार्मिक नेता ही मानता है, इसलिए उनके साथ वही बर्ताव किया जाएगा तो भारतीय धर्मगुरुओं के साथ किया जाता है। 

दोर्जे पर ज़मीन खरीदने का आरोप

दोर्जे पर आरोप है कि उन्होंने धर्मशाला के पास कोटला गांव में किन्नौर की किसान माया देवी के नाम से जमीन का एक बड़ा टुकड़ा खरीदा हुआ है। पुलिस इस खरीद के बदले चुकाई गई रकम के स्रोत की जांच कर रही है और कांगड़ा के जिलाधिकारी के पास यह मामला लटका हुआ है। इस मामले में अगली सुनवाई 23 मार्च को होनी है। हिमाचल पुलिस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक तिब्बती शरणार्थियों के करीब 400 बेनामी जमीन सौदों के बारे में पुलिस को जानकारी है और इनमें से 263 में मामले भी दर्ज हैं।  


चीन का जासूस होने का शक 

केंद्र सरकार ने करमापा उग्येन दोर्जे के हिमाचल प्रदेश स्थित अस्थायी आवास से करोड़ों रुपए की विदेशी मुद्रा बरामद होने पर गंभीर चिंता जताई है। सरकार को संदेह है कि दोर्जे चीन के लिए एजेंट के रूप में काम कर रहा था। केंद्र सरकार इस मामले की जांच करेगी। जांच एजेंसियों ने पता लगाया है कि करमापा चीन प्रशासन के लगातार संपर्क में थे। वे कश्मीर में लद्दाख से अरुणाचल में तवांग तक स्थित बौद्ध मठों पर नियंत्रण के लिए चीन की मदद कर रहे थे। जब उनके निवास पर छापा मारा गया तो करमापा घर में ही थे और उन्होंने कार्रवाई का कोई विरोध नहीं किया। 

सरकारी सूत्रों का कहना है कि दोर्जे के चीन से संबंध स्पष्ट हैं। 17वें करमापा को हमेशा से ही चीन का आदमी माना जाता रहा है। चीन हिमालय सीमा लद्दाख से तवांग पर स्थित सभी बौद्ध मठों पर अपने नियंत्रण का प्रयास करता रहा है और करमापा उसकी मदद करता आया है। सूत्रों के मुताबिक करमापा पहले चीन में रहता था और फिर भारत आया था। उस पर काफी पहले से ही संदेह रहा है। करमापा की गतिविधियों को लेकर भी संशय रहा है क्योंकि यह देखा गया कि वह धार्मिक भावनाओं की आड़ लेकर चीन का एंजेडा चला रहा था। सूत्रों के मुताबिक खुफिया एजेंसियों ने करमापा पर काफी समय से नजर रखी हुई थी। करमापा के 2000 में तिब्बत से भागने को भारतीय एजेंसियां हमेशा से ही शक की नज़र से देखती रही हैं। करमापा ने दावा किया था वे चीन सरकार को चकमा देते हुए नेपाल पहुंचे थे। 25 साल के दोर्जे ने जनवरी, 2000 में तिब्बती से भागने की वजह से सुर्खियां बटोरी थीं। उस समय उनकी उम्र महज 14 साल थी।  

खुफिया एजेंसियों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक एजेंसियों के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि करमापा के तार चीन से जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि करमापा के निवास से 11 लाख युआन (करीब 77 लाख रुपये)  मिलना सिर्फ हमारे अंदेशे को पुख्ता करता है। खुफिया एजेंसियों को शक है कि करमापा दोर्जे चीन के एजेंट के तौर पर चीन की ओर दोस्ताना रुख रखने वाले तिब्बती संस्थान पूरे हिमालय क्षेत्र में खड़ा करने का काम कर रहे हैं। 

सिद्धबाड़ी में करमापा नजरबंद

करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे को उनके सिद्धबाड़ी स्थित अस्थायी निवास पर अघोषित नजरबंद कर दिया गया है। ग्यूतो तांत्रिक विवि सिद्धबाड़ी स्थित करमापा के कार्यालय व आवास के बाहर सशस्त्र पुलिस बल तैनात किया गया है। पुलिस करमापा सहित उनके अन्य प्रमुख सहयोगियों से किसी भी समय पूछताछ कर सकती है। उधर, शुक्रवार को दलाईलामा कर्नाटक के लिए रवाना हो गए। करमापा को भारत ने सामान्य तिब्बती की तरह शरण दे रखी है। ऐसे में सशस्त्र पहरे के कदम को अलग नजर से देखा जा रहा है।

करमापा अकाउंटेंट कार्यालय से पुलिस को भारत और 25 अन्य देशों की मुद्रा बरामद हो चुकी है, जिनकी कीमत करीब छह करोड़ है। इनमें चीनी मुद्रा के 11 लाख युआन भी शामिल हैं। इसके अलावा 6 लाख यूएस डॉलर, 30 लाख भारतीय मुद्रा सहित ताइवान, नेपाल, कनाडा, डेनमार्क, सिंगापुर, हांगकांग व जर्मनी की मुद्राएं शामिल हैं। करमापा के अस्थायी निवास से बरामद भारतीय और विदेशी मुद्रा की गिनती अभी जारी है। मैहतपुर में गाड़ी में एक करोड़ ले जाते वक्त गिरफ्तार युवकों की सूचना पर पुलिस ने ग्यूतो तांत्रिक विश्वविद्यालय में बुधवार रात ढाई बजे छापा मारा था। 

अकाउंटेंट कार्यालय से बरामद भारतीय और विदेशी मुद्रा को गिनने के लिए नोट गिनने वाली मशीन लगानी पड़ी है। करीब दो दर्जन पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी भी इसमें जुटे हैं। शुक्रवार सुबह 4 बजे नोटों की गिनती बंद कर गिनी गई राशि पुलिस के माल खाने में जमा करवाई गई। शुक्रवार सुबह दस बजे दोबारा गिनती शुरू की गई। जांच में आईबी, रॉ, सीआईडी सहित जिला कांगड़ा और ऊना पुलिस जुटी हैं। शुक्रवार दोपहर बाद अकाउंटेंट कार्यालय में नोटों की बरामदगी का काम पूरा करने के बाद जांच एजेंसियों ने करमापा के निजी सचिव गोम्पो छेरिंग के कार्यालय का ताला तोड़कर कमरे में रखे नोटों के बैगों को कब्जे में लेकर गिनती शुरू कर दी है

Indian Educator, Humanist and Politician

"If we are to live and grow as a university, one of whose paramount tasks is to not only leaders of thought and action but also workers dedicated to the service of the nation, we cannot sit idle with philosophic concern and let things drift as they may. So far as we are concerned, it is for us to set our house in order. It is for us, and specially the younger generation, Hindus, Moslems and Christians alike, to combine and resolutely stand for the permanent well-being of our province and to rescue her from the deadly stagnation which now seems to envelop her."
Speech delivered at Calcutta University Convocation on 2nd March1935.

मिस्रवासियों के अधिकारों का सम्मान करें मुबारक: ओबामा

वॉशिंगटन।। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शुक्रवार को मिस्र की सरकार से कहा कि वह अपने नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करे। मिस्र इन दिनों राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक की बर्खास्तगी की मांग को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन से जूझ रहा है। 

ओबामा ने मुबारक से टेलिफोन पर बात करने के थोड़े ही समय बाद वाइट हाउस में ये बातें कही। इसके ठीक पहले मुबारक ने अपने सम्बोधन में पद न छोड़ने का संकल्प लिया था, लेकिन उन्होंने इस बात की घोषणा की थी कि वह अपनी कैबिनेट भंग कर रहे हैं। 

ओबामा ने कहा, 'मौजूदा समय में इस तरह के ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है, जो मिस्त्र के लोगों की मांगे पूरी करता हो।' इसके पहले शुक्रवार को अमेरिका ने धमकी दी थी कि यदि मुबारक सरकार प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा पर तत्काल रोक नहीं लगाती और सुधारों को लागू करने के लिए आगे नहीं बढ़ती तो उसे दी जाने वाली सहायता रोक दी जाएगी। 

ओबामा ने कहा कि उन्होंने मुबारक से कहा कि उन्हें सुधार के अपने वादे पर अमल करने की आवश्यकता है। ओबामा ने कहा, 'वादे को अर्थवान बनाने की उनकी जिम्मेदारी है।' 

ओबामा ने जोर देकर कहा कि अमेरिका की मुख्य चिंता हिंसा रोकने को लेकर है। उन्होंने सरकार और प्रदर्शनकारियों, दोनों से शांति बनाए रखने का आह्वान किया। ओबामा ने मुबारक सरकार से इंटरनेट और मोबाइल फोन सेवाएं बहाल करने के लिए कहा। 

गौरतलब है कि कि अमेरिका, मुबारक का लम्बे समय से सहयोगी रहा है, लेकिन ओबामा ने अपनी टिप्पणियों में जोर देकर कहा कि वॉशिंगटन मिस्र के लोगों के सार्वभौम अधिकारों के पक्ष में है। 

ओबामा ने कहा, 'मिस्त्र के लोगों के अपने सार्वभौम अधिकार हैं। इसमें शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होने, अभिव्यक्ति की आजादी और अपने भाग्य का फैसला करने के अधिकार शामिल हैं। ये सभी मानवाधिकार हैं और अमेरिका इन अधिकारों के लिए कहीं भी खड़ा रहेगा।'

कश्मीर घाटी में टूटने लगा हुर्रियत नेता गिलानी का तिलिस्म

श्रीनगर, जागरण संवाददाता : घाटी के लोग अब अलगाववादी नेताओं से तंग आ चुके हैं। यही कारण है अब उनकी किसी कॉल का असर नहीं हो रहा है। शुक्रवार को भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी ने अपने एक करीबी साथी गुलाम मोहम्मद भट की गिरफ्तारी के खिलाफ जुमे की नमाज के बाद स्थानीय मस्जिदों के बाहर प्रदर्शन करने का आह्वान किया था, लेकिन लोगों ने उसे अनसुना कर दिया। मस्जिदों में जुमा की नमाज अता करने के बाद लोग अपने घर चले गए। यहां तक कि डाउन-टाउन में भी गिलानी की कॉल का कोई असर नहीं दिखा। नौहट्टा स्थित एतिहासिक जामिया मस्जिद में भी जुमा की नमाज पढ़कर लोग शांतिपूर्वक वहां से चले गए। गौरतलब है कि जून 2010 से शुरू होने वाली क्विट कश्मीर मूवमेंट के दौरान गिलानी ने हड़ताली कैलेंडरों का एक न थमने वाला सिलसिला शुरू कर पांच महीनों तक लोगों को हड़ताल करने पर मजबूर कर दिया था।

भ्रष्टाचार मिटाने को बदलना होगा सिस्टम

Jan 29, 10:42 am
औरंगाबाद। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि देश में बदलाव लाने के लिए नौजवान अपने जीवन के 10 साल राजनीति को दें। उन्होंने कहा कि लोग भ्रष्टाचार की शिकायत करते है लेकिन इसे खत्म करने के लिए राजनीतिक व्यवस्था को बदलने की कोशिश नहीं करते। राजनीतिक तंत्र में खराबी है और इसे बदलने के लिए युवाओं की सहभागिता की जरूरत है।
महाराष्ट्र के तीन दिवसीय दौरे के अंतिम दिन औरंगाबाद पहुंचे राहुल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि राजनीतिक दलों में लोकतंत्र का अभाव है जिसके कारण भ्रष्टाचार जैसी बुराइयां पैदा हुई है। राहुल ने कहा कि बदलाव के दो ही तरीके है एक तो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो, उन्हे 20 साल के बजाय छह महीने में सजा मिले और दूसरा तरीका है राजनीतिक व्यवस्था को बदलना। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए दोनों तरीकों का इस्तेमाल करना होगा।
गांधी ने कहा कि बातचीत करने का वक्त अब खत्म हो गया है अब बदलाव की जरूरत है और इस बदलाव के लिए युवा और कुशल लोग हमारे साथ जुड़े, क्योंकि बदलाव के लिए हमें उनकी जरूरत है।
गांधी ने कहा कि मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि 10 साल बाद आपको अपने निर्णय पर गर्व होगा और देश की राजनीति एक नई दिशा में गतिमान हो जाएगी। युवक कांग्रेस में चुनाव के मुद्दे पर गांधी ने कहा कि लोग कह रहे है कि चुनाव में वही लोग जीतेंगे जो बड़े नेताओं या प्रभावशाली लोगों के रिश्तेदार होंगे। गांधी ने कहा कि कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा दे रही है।
अजंता-एलोरा की गुफाओं में मौजूद ऐतिहासिक चित्रों को भारत की कार्यक्षमता से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि यह गुफाएं इस बात का ऐलान करती है कि हमारे देश में किस स्तर का काम करने की क्षमता है।
राहुल युवाओं को राजनीति से जोड़ने के अपने उद्देश्य के तहत दोपहर में कोंकण क्षेत्र के लिए रवाना होंगे।
राहुल गांधी ने तेल माफिया द्वारा महाराष्ट्र में अतिरिक्त कलेक्टर यशवंत सोनवाणे की हत्या पर दुख जताते हुए आज कहा कि इस तरह की घटनाएं फिर नहीं होनी चाहिए और भ्रष्टाचार के मामलों में छह महीने के अंदर कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि तेल माफिया द्वारा सोनवाणे की हत्या से वह स्तब्ध रह गए थे। उन्होंने कहा कि इस तरह के मामलों में कदम उठाए जाएं ताकि ये फिर न हो। उन्होंने कहा कि हमें इस बात को देखना होगा कि यह घटना क्यों हो रही है। हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि यह दुबारा नहीं हो

मिस्त्र: पद नहीं छोड़ने पर अड़े मुबारक, अशांति कायम

Jan 29, 09:33 am
काहिरा। मिस्त्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने पद नहीं छोड़ने का संकेत देते हुए शनिवार को अपनी सरकार को बर्खास्त कर दिया। इस बीच हजारों प्रदर्शनकारियों ने 30 वर्ष के निरंकुश शासन के खात्मे की मांग को लेकर क‌र्फ्यू का उल्लंघन कर प्रदर्शन किया।
देर रात्रि टेलीविजन पर दिए अपने संदेश में 82 वर्षीय मुबारक ने पुलिसिया कार्रवाई का विरोध किया। पुलिस ने आंसू गैस के गोले, रबर की गोलियां और पानी के बौछारों का प्रयोग कर प्रदर्शनकारियों पर अंकुश लगाने की कोशिश की।
पिछले तीन दशकों से मिस्त्र पर शासन कर रहे मुबारक ने अपनी कैबिनेट को इस्तीफा देने को कहा और सुधारों का वादा किया। उन्होंने कहा कि मैंने सरकार से इस्तीफा देने को कहा है और कल नई सरकार अस्तित्व में आएगी। उन्होंने कहा कि सुधारों पर हम पीछे नहीं हटेंगे। हम नए कदमों के साथ आगे बढ़ेंगे जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और इसके शासन तथा नागरिकों के लिए और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करेगा।
उनकी घोषणा के बावजूद हजारों प्रदर्शनकारियों ने काहिरा, अलेक्जांद्रिया और सुएज में कल रात क‌र्फ्यू का उल्लंघन किया और उन्होंने सड़कों पर उतरकर गश्त कर रहे सैनिकों से भी प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की। काहिरा के कई हिस्सों में लूटपाट की खबरें आ रही हैं जिसमें सरकारी दफ्तरों में लूटपाट भी शामिल है। संघर्ष में कम से कम 27 लोग मारे गए हैं और सौ से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। चार दिन पहले शुरू हुए प्रदर्शनों में अब तक देश भर में करीब एक हजार प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है।
एक अभूतपूर्व घटना में कल प्रदर्शनकारियों ने काहिरा में मुबारक के नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के मुख्यालय और दो थानों में आग लगा दी और सुरक्षा बलों के वाहन को क्षतिग्रस्त कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने विदेश मंत्रालय के कार्यालय में भी धावा बोल दिया।
मुबारक ने काहिरा, अलेक्जांद्रिया और सुएज शहरों में शाम छह बजे से सुबह सात बजे तक क‌र्फ्यू लगा रखा है। बाद में क‌र्फ्यू को देश भर में लागू कर दिया गया। राष्ट्रपति ने कल सुरक्षा बलों को पुलिस से सहयोग करने, निर्णयों को लागू करने, सुरक्षा बनाए रखने और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और निजी संपत्तियों की रक्षा करने को कहा।
रिपोर्टों में कहा गया है कि प्रदर्शन में शामिल हुए लोकतंत्र समर्थक नेता मोहम्मद अलबरदेई को नजरबंद कर दिया गया है। अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को व्यापक स्तर पर रैलियां आयोजित करने से रोकने के लिए कल देश भर में इंटरनेट और मोबाइल फोन सेवाओं को बंद कर दिया था।
बेरोजगारी, खाद्य पदार्थों के मूल्यों और भ्रष्टाचार के बढ़ने को लेकर लोगों में काफी आक्रोश है और इसलिए वे मुबारक को हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
मुबारक ने सीधे तौर पर कहा कि वह लोगों की भावनाओं को समझ रहे है। उन्होंने लोगों से गरीबी, बेरोजगारी और लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार करने का वादा किया।

क्या मैं विनम्र हूं?


 
 
एक शाम मैंने अपनी बेटी माला और नाती मैना से जानना चाहा कि क्या मैं वास्तव में विनम्र हूं। मैंने उनसे अपनी स्वतंत्र राय व्यक्त करने को कहा। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि मैं विनम्र व्यक्ति नहीं हूं। शायद वे दोनों सही हैं। अलबत्ता मैं हमेशा अपने ही बारे में बात नहीं करता, लेकिन यह जरूर सच है कि मैं हमेशा अपने ही बारे में सोचता रहता हूं। मैं विनम्रता की परीक्षा में फेल हो गया हूं।

अपने लंबे जीवन में जिन आकर्षक और जीवंत महिलाओं से मेरी भेंट हुई, धर्मा कुमार उनमें से एक थीं। लेकिन वे बहुत गर्ममिजाज भी थीं। उनके बारे में कभी सही-सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता था कि वे कब क्या कह देंगी। अपने इसी मिजाज के कारण उन्होंने अपने कई मित्रों को गंवा दिया था, जिनमें मैं भी शामिल हूं। कुछ साल पहले ब्रेन टच्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी एकमात्र संतान हैं राधा कुमार। राधा कुमार उन तीन वार्ताकारों में से एक हैं, जो कश्मीर घाटी में अमन-चैन कायम करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं।

मुझे धर्मा कुमार की याद तब आई, जब मैंने हिंदी के इन शब्दों को सुना : विनय, विनीत, विनम्रता। मैं उर्दू और पंजाबी में इनके समकक्ष केवल एक ही शब्द के बारे में सोच पाता हूं : मिटा हुआ। धर्मा कुमार अक्सर अपने चचेरे भाई राघवन अय्यर के बारे में बताया करती थीं, जो हर परीक्षा में अव्वल रहते थे। वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गए थे। अय्यर का यह मानना था कि चुनाव जीतने के लिए वोट मांगना या कैनवासिंग करना शालीन आचरण की श्रेणी में नहीं आता है। उन्हें स्टूडेंट यूनियन का चुनाव जिताने में उनके समर्थकों और प्रशंसकों का योगदान था। जैसे ही चुनाव परिणामों की घोषणा हुई, अय्यर के समर्थक दौड़ते हुए उनके कमरे में आए और उन्हें यह खुशखबरी सुनाई। अय्यर पद्मासन की मुद्रा में फर्श पर बैठे थे और उनकी आंखें मुंदी हुई थीं। उनके मित्र जोरों से चिल्लाए : ‘अय्यर, तुम चुनाव जीत गए’। अय्यर ने अपने दाहिने हाथ की तर्जनी ऊपर उठाई और धीमे से बुदबुदाते हुए कहा : ‘हे ईश्वर, यह तुम्हारी विजय है!’

अय्यर के बारे में धर्मा कुमार इससे भी दिलचस्प एक और कहानी सुनाया करती थीं। कहानी कुछ इस तरह थी : एक बार अय्यर अपने समर्थकों से घिरे हुए थे। उनमें से एक ने उनसे पूछा : ‘अय्यर, तुमने अपने जीवन में इतनी सारी उपलब्धियां हासिल की हैं। इसके बावजूद तुम इतने विनम्र कैसे रह पाते हो?’ अय्यर ने जवाब दिया : ‘सवाल बहुत अच्छा है। वास्तव में मैंने एक फॉमरूले की ईजाद की है, जिसका नाम है : आत्म-विलोपन। मैं हर सुबह फर्श पर ध्यान की मुद्रा में बैठ जाता हूं और मन ही मन यह दोहराने लगता हूं कि मैं वह राघवन अय्यर नहीं हूं, जो मद्रास यूनिवर्सिटी से फस्र्ट क्लास में पास हुआ, मैं वह राघवन अय्यर नहीं हूं, जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भी फस्र्ट क्लास रहा, मैं वह राघवन अय्यर नहीं हूं, जो स्टूडेंट्स यूनियन का निर्वाचित अध्यक्ष है, मैं पूर्व दिशा से आया मेधावी दार्शनिक राघवन अय्यर नहीं हूं, मैं केवल दिव्य शक्तियों का प्रवक्ता हूं।’ अय्यर यही ध्यान शाम के समय भी करते थे और इन सभी पंक्तियों को एक बार फिर दोहराते थे। लेकिन वे अंतिम पंक्ति में थोड़ा फेरबदल कर देते थे। शाम को वे स्वयं को ‘दिव्य शक्तियों का प्रवक्ता’ के स्थान पर ‘महात्माओं का माध्यम मात्र’ कहते थे।

हम भारतीय लोग स्वभावत: विनम्र होते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि हम लोग विनम्रता के आराधक हैं। पश्चिम में जब लोग आपस में मिलते हैं तो हाथ मिलाकर जोशोखरोश से अभिवादन करते हैं। जबकि हम किसी से भेंट करने पर विनम्रता से हाथ जोड़ लेते हैं, जैसे प्रार्थना कर रहे हों। हम अभिवादन के रूप में नमस्ते, नमस्कार, वणक्कम या सत श्री अकाल कहते हैं। अदब की यही तहजीब मुस्लिमों में भी है। वे अभिवादन में झुककर सलाम करते हैं और दाहिने हाथ से अपनी पेशानी को छूते हैं। लेकिन वास्तव में विनम्रता एक दुर्लभ गुण है। हम अक्सर अपने बारे में ही बात करना पसंद करते हैं। कोई भी व्यक्ति, जो हमेशा अपने ही बारे में बात करना चाहता है, उसे विनम्र नहीं कहा जा सकता। राजनेता विनम्र नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हें बार-बार सभी को यह बताना पड़ता है कि वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से बेहतर हैं। यही स्थिति धनी लोगों की भी है। हो सकता है कि ऊपरी तौर पर वे विनम्र और शिष्ट दिखाई दें, लेकिन भीतर से वे अहंकारी होते हैं। धन-दौलत के साथ अहंकार भी आ ही जाता है। धनियों के बारे में रॉबर्ट बर्टन ने अपनी किताब द एनाटमी ऑफ मेलंकली में सच ही लिखा था : ‘उन्हें अपनी विनम्रता पर गर्व होता है। उन्हें इस बात पर भी गर्व होता है कि उन्हें कोई गर्व नहीं है।’

मुझे लगता था कि मैं विनम्र व्यक्ति हूं। एक शाम मैंने अपनी बेटी और अपनी नाती से जानना चाहा कि क्या मैं वास्तव में विनम्र हूं। मैंने उनसे अपनी स्वतंत्र राय व्यक्त करने को कहा। मेरी नातिन मैना, जो अपनी अक्खड़ता और मुंहफटपन के लिए घरभर में जानी जाती है, ने जवाब दिया : ‘आप और विनम्र! कहीं आप मजाक तो नहीं कर रहे? आपको अपनी खुशामद करवाना पसंद है। जब महिलाएं आपको कबाब, खीर, केक और गुलदस्ते भेजती हैं तो आपको बहुत अच्छा लगता है। इससे आपके अहंकार की तुष्टि होती है। कुछ लोग हैं, जो आपको विंटेज स्कॉच परोसते हैं और इस तरह आपकी खुशामद करते हैं, जैसे आप कोई छोटे-मोटे मसीहा हों।’

मानो इतना ही काफी नहीं था। इसके बाद मेरी बेटी माला ने बोलना शुरू किया। उसने कहा : ‘जब आपके श्रोता आपकी चुटीली और चटपटी बातों से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं तो आप उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे आपके बारे में अच्छी-अच्छी बातें बोलें। लेकिन जब वे चुप हो जाते हैं तो आप ऊबने लगते हैं और आप उन लोगों को वहां से चले जाने को कह देते हैं। ऐसे में यह कैसे संभव है कि आपको एक विनम्र व्यक्ति कहा जाए?’

शायद वे दोनों सही हैं। अलबत्ता मैं हमेशा अपने ही बारे में बात नहीं करता, लेकिन यह जरूर सच है कि मैं हमेशा अपने ही बारे में सोचता रहता हूं। मैं विनम्रता की परीक्षा में फेल हो गया हूं। मैं हमेशा गुरु नानक की यह बात याद रखता हूं : अहंकार बहुत बड़ा रोग है, लेकिन यही रोग की दवा भी है।

आपको यह नहीं मालूम होगा 
1 से लेकर 99 तक की अंग्रेजी वर्तनी में ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और ‘डी’ अक्षर कहीं भी नहीं आते हैं।
(‘हंड्रेड’ शब्द में पहली बार ‘डी’ अक्षर का इस्तेमाल होता है)

1 से लेकर 999 तक की अंग्रेजी वर्तनी में ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ अक्षर कहीं भी नहीं आते हैं।
(‘थाउजेंड’ शब्द में पहली बार ‘ए’ अक्षर का इस्तेमाल होता है।)

1 से लेकर 999999999 तक की अंग्रेजी वर्तनी में ‘बी’ और ‘सी’ अक्षर कहीं भी नहीं आते हैं।
(‘बिलियन’ शब्द में ‘बी’ अक्षर पहली बार आता है।)

और अंग्रेजी की समूची गणना में ‘सी’ अक्षर का इस्तेमाल कहीं भी, किसी भी वर्तनी में नहीं होता है। 
(सौजन्य : विपिन बख्शी, दिल्ली

मिस्र में जन विद्रोह

ट्यूनिशिया से उड़ी चिंगारी से अब मिस्र में आग लग चुकी है। लपटें यमन में भी उठ रही हैं। पिछले कुछ दिनों में अल्जीरिया और लीबिया से भी हलचल की खबरें मिली हैं। उत्तर अफ्रीका और पश्चिम एशिया के इन देशों में जन विद्रोह का ऐसा नजारा पहले कभी नहीं दिखा। इस क्षेत्र में क्रांति का मतलब सैनिक तख्तापलट ही रहा है। इसका एकमात्र अपवाद ईरान था, जहां 1979 में जन क्रांति हुई, लेकिन वह इस्लामी रंग में डूबी हुई थी। लेकिन आज सड़कों पर आम जनता है। उसका असंतोष वहां तेजी से बढ़ी खाद्य और ईंधन की कीमतों, पुलिस ज्यादतियों और भ्रष्टाचार की कहानियां कह रहा है। 

विगत 14 जनवरी को 23 साल से सत्ता पर कुंडली जमाए ट्यूनिशिया के तानाशाह जाइन अल-अबिदीन बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा। अब 30 साल से गद्दी पर जमे मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक का सिंहासन हिल रहा है। देश में सुधारों के समर्थक अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पूर्व प्रमुख मुहम्मद अल-बरदाई के वियना से मिस्र लौट जाने के बाद वहां के विद्रोह को एक ऐसा नेता मिल जाने की ठोस संभावना बन गई है, जिसकी हैसियत है और साख भी। यानी राष्ट्रपति मुबारक की मुश्किलें कई गुना बढ़ चुकी हैं। इस लहर की शुरुआत ट्यूनिशिया में 17 दिसंबर को मुहम्मद बाउजिजी नाम के एक बेरोजगार ग्रेजुएट नौजवान को पुलिस द्वारा सब्जी बेचने की इजाजत न देने से हुई, जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली। बाउजिजी तब से पूरे अरब जगत में तानाशाही के विरोध का प्रतीक बना हुआ है। विद्रोह की इस लहर की यही खूबी है कि इस पर मजहबी रंग नहीं है। इस हलचल का क्या परिणाम होगा, कहना मुश्किल है, क्योंकि इन देशों में विपक्ष का कोई ढांचा नहीं है। फिलहाल यह तो साफ है कि जनता जाग गई है

Friday, January 28, 2011

एक नई खिचड़ी बोली का उद


 
 
हमें शायद पूरी तरह इसका अंदाजा न हो, लेकिन भारत और पाकिस्तान का शिक्षित मध्य वर्ग एक नए किस्म की भाषा ईजाद कर रहा है, जो अंग्रेजी और हिंदुस्तानी का घालमेल है। लाहौर की मोनी मोहसिन इस खिचड़ी भाषा की मुख्य प्रतिनिधि हैं। उनकी पुस्तक द डायरी ऑफ ए सोशल बटरफ्लाय के अंश नियमित रूप से अखबारों में प्रकाशित होते रहे हैं। उनकी लेखन शैली बहुत रोचक है। वे हाल ही में अपनी दूसरी किताब टेंडर हुक्स (रैंडम हाउस से प्रकाशित) के विमोचन के लिए दिल्ली आई थीं। मैंने उनकी पहली किताब को ‘मजेदार’ बताया था। उनकी दूसरी किताब को मैं ‘मजे की इंतहा’ कहना चाहूंगा। किताब की मुख्य थीम है एक कुंवारे नौजवान के लिए उपयुक्त दुल्हन की तलाश। दुल्हन का खानदानी और खूबसूरत होना जरूरी है। साथ ही वह ऐसी भी होनी चाहिए, जो अपने साथ खासा दहेज लेकर आए। कहानी का एक बड़ा हिस्सा लड़के के परिवार की औरतों के बीच होने वाली बातचीत पर केंद्रित है। मैं यहां किताब के पहले अध्याय से एक अंश प्रस्तुत कर रहा हूं :

‘तुम जोंकर्स को जानती हो ना? ओह बाबा, तुम्हारी याददाश्त को क्या हो गया है? तुम हमारे बूढ़े अंकल की तरह सबकुछ भूलती जा रही हो। ठीक है, मैं तुम्हारे लिए एक बार फिर बता देती हूं, लेकिन यह आखिरी मर्तबा है। जोंकर्स मेरा मौसेरा भाई है। पूसी मौसी की इकलौती औलाद।’ ‘लेकिन पूसी मौसी कौन हैं?’ ‘ओहो, मुझे तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा है। अगली बार तुम पूछोगी कि तुम्हारा खुद का नाम क्या है। पूसी मौसी मम्मी की मौसेरी बहन हैं। उन दोनों की मम्मियां बहनें थीं। बूढ़े अंकल पूसी मौसी के पिता हैं।’

‘अच्छा तो मैं क्या कह रही थी? हां, जोंकर्स। कल रात उसकी सैंतीसवीं सालगिरह थी और पूसी मौसी मुझे, मम्मी और जोंकर्स को कुक्कू के रेस्टोरेंट ली गईं। यह रेस्टोरेंट पुराने शहर में बादशाही मस्जिद के करीब है। मुझे कुक्कू इसलिए अच्छा लगता है, क्योंकि सब उसे ‘तबाही’ कहकर पुकारते हैं। फॉरेनर्स तो इस पर बस फिदा ही हैं। लाहौर में मानव बमों के हरकत में आने से पहले वे बड़ी तादाद में यहां आया करते थे। अलबत्ता यह जरा बुरी बात है कि कुक्कू पुराने शहर में है, जहां के टॉयलेट्स बहुत बदबूदार हैं। लेकिन जो तवायफें पहले डायमंड मार्केट के करीब पाई जाती थीं, वे अब डिफेंस हाउसिंग सोसायटी की छोटी-छोटी कोठियों में शिफ्ट हो गई हैं। ये कोठियां उनके सियासी बॉयफेंड्रों ने उन्हें खरीदकर दी हैं। शुक्र है कि अब पुराने शहर में बुरे किस्म के किरदारों से हमारा सामना नहीं होता, बशर्ते वे कोई मानव बम न हों। इन मानव बमों के लिए हमारी फौज जिम्मेवार है, जिसकी वजह से आतंकवादी पूरे मुल्क में आराम से घूम-फिर रहे हैं। ‘कुक्कू के साथ एक और गड़बड़ यह है कि उसकी छत तक पहुंचने के लिए पचपन हजार सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, अलबत्ता वहां से दिखने वाला नजारा बेहतरीन है। यहां से सीधे मस्जिद के बरामदे में देखा जा सकता है। हालांकि धुएं के कारण हम कुछ नहीं देख सके। लाहौर की तीन ही सबसे बड़ी परेशानियां हैं : धुआं, ट्रैफिक और आतंकवादी। बाकी सब ठीकठाक है।

‘बहरहाल, पूसी मौसी ने जानू को भी डिनर पर बुलाया था। अगर तुम यह भी भूल चुकी हो कि वे कौन हैं तो मैं तुम्हें बता दूं वे मेरे शौहर हैं। लेकिन वे अपने गांव शार्कपुर में थे। ठीक है, ठीक है, मुझे कहना चाहिए हमारा गांव, क्योंकि मैं उनकी बीवी हूं। लेकिन शुक्र है कि वह वास्तव में मेरा गांव नहीं है और मैंने तीन साल से उसकी तरफ मुड़कर भी नहीं देखा है। जानू अपना आधा वक्त वहीं बिताते हैं। वे वहां खेत और आम-संतरे के बाग की देखभाल करते हैं। लेकिन चूंकि खेतीबाड़ी से मेरा कोई नाता नहीं है और मेरा काम केवल उस पैसे को खर्च करना है, जो खेतीबाड़ी से हमें मिलता है, लिहाजा मेरे लिए तो यही बेहतर होगा कि मैं लाहौर में रहूं। आखिर यहां इतने शानदार बाजार जो हैं। पूसी मौसी ने कुलचू को भी बुलाया था, लेकिन उसने यह कहकर इनकार कर दिया कि वह अपना होमवर्क कर रहा है। हालांकि मेरा ख्याल है कि वह फेसबुक पर मसरूफ था। ऐसा नन्हा किताबी कीड़ा है मेरा प्यारा बेबी।’

मोहसिन लाहौर से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक फ्राइडे टाइम्स के लिए नियमित रूप से लिखती हैं। उनके उपन्यास द एंड ऑफ इनोसेंस के लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया जा चुका है।

हमारी डाक सेवाएं : भुवनेश्वर में रहने वालीं श्रीमती राव मेरे लेखन के बारे में अपनी राय व्यक्त करना चाहती थीं, लेकिन उनके पास मेरा पता नहीं था। लिहाजा उन्होंने मेरे नाम के आगे लिख दिया : ‘पगड़ीवाले’। मेरा पता भी उन्होंने कुछ इस तरह लिखा : ‘ए बी से वाई जेड एवेन्यू, नईदिल्ली’। हमारी डाक सेवाओं में काम करने वाले किसी सज्जन ने उनकी इस कारस्तानी को दुरुस्त किया और मेरा सही पता लिखकर मुझे उनका पत्र भेज दिया। मैं डाक विभाग की इस कुशलता से बहुत प्रभावित हुआ था। 

बीस साल पहले तक मैं किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता था, जिसका नाम भी मेरी तरह खुशवंत सिंह हो। लेकिन अब टेलीफोन डायरेक्टरी में कई खुशवंत सिंह हैं। कभी-कभार मुझे कुछ ऐसे खत भी मिल जाते हैं, जो मेरे लिए नहीं हैं। मुझे मिलने वाले बहुत से पत्र ऐसे होते हैं, जिन पर पते के तौर पर केवल नई दिल्ली लिखा होता है। जब ऐसे पत्र भी मेरे घर पहुंच जाते हैं तो मैं हमारी डाक सेवाओं के प्रति सराहना के भाव से भर जाता हूं। 

अस्सी के दशक में जब पंजाब में भिंडरावाला सक्रिय थे, तब मुझे कनाडा में बसे उनके एक समर्थक का पत्र मिला। पत्र गुरमुखी में लिखा हुआ था और उसमें मुझे भारी-भरकम गालियां दी गई थीं। पत्र पर अंग्रेजी में यह पता लिखा था : ‘नालायक खुशवंत सिंह, भारत’। हमारे डाक विभाग में से किसी सज्जन ने इस पत्र को भी मुझ तक पहुंचा दिया। मेरे मन में हमारी डाक सेवा के लिए इज्जत और बढ़ गई।

खुशवंत सिंह
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं

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