एक शाम मैंने अपनी बेटी माला और नाती मैना से जानना चाहा कि क्या मैं वास्तव में विनम्र हूं। मैंने उनसे अपनी स्वतंत्र राय व्यक्त करने को कहा। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि मैं विनम्र व्यक्ति नहीं हूं। शायद वे दोनों सही हैं। अलबत्ता मैं हमेशा अपने ही बारे में बात नहीं करता, लेकिन यह जरूर सच है कि मैं हमेशा अपने ही बारे में सोचता रहता हूं। मैं विनम्रता की परीक्षा में फेल हो गया हूं।
अपने लंबे जीवन में जिन आकर्षक और जीवंत महिलाओं से मेरी भेंट हुई, धर्मा कुमार उनमें से एक थीं। लेकिन वे बहुत गर्ममिजाज भी थीं। उनके बारे में कभी सही-सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता था कि वे कब क्या कह देंगी। अपने इसी मिजाज के कारण उन्होंने अपने कई मित्रों को गंवा दिया था, जिनमें मैं भी शामिल हूं। कुछ साल पहले ब्रेन टच्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी एकमात्र संतान हैं राधा कुमार। राधा कुमार उन तीन वार्ताकारों में से एक हैं, जो कश्मीर घाटी में अमन-चैन कायम करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
मुझे धर्मा कुमार की याद तब आई, जब मैंने हिंदी के इन शब्दों को सुना : विनय, विनीत, विनम्रता। मैं उर्दू और पंजाबी में इनके समकक्ष केवल एक ही शब्द के बारे में सोच पाता हूं : मिटा हुआ। धर्मा कुमार अक्सर अपने चचेरे भाई राघवन अय्यर के बारे में बताया करती थीं, जो हर परीक्षा में अव्वल रहते थे। वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गए थे। अय्यर का यह मानना था कि चुनाव जीतने के लिए वोट मांगना या कैनवासिंग करना शालीन आचरण की श्रेणी में नहीं आता है। उन्हें स्टूडेंट यूनियन का चुनाव जिताने में उनके समर्थकों और प्रशंसकों का योगदान था। जैसे ही चुनाव परिणामों की घोषणा हुई, अय्यर के समर्थक दौड़ते हुए उनके कमरे में आए और उन्हें यह खुशखबरी सुनाई। अय्यर पद्मासन की मुद्रा में फर्श पर बैठे थे और उनकी आंखें मुंदी हुई थीं। उनके मित्र जोरों से चिल्लाए : ‘अय्यर, तुम चुनाव जीत गए’। अय्यर ने अपने दाहिने हाथ की तर्जनी ऊपर उठाई और धीमे से बुदबुदाते हुए कहा : ‘हे ईश्वर, यह तुम्हारी विजय है!’
अय्यर के बारे में धर्मा कुमार इससे भी दिलचस्प एक और कहानी सुनाया करती थीं। कहानी कुछ इस तरह थी : एक बार अय्यर अपने समर्थकों से घिरे हुए थे। उनमें से एक ने उनसे पूछा : ‘अय्यर, तुमने अपने जीवन में इतनी सारी उपलब्धियां हासिल की हैं। इसके बावजूद तुम इतने विनम्र कैसे रह पाते हो?’ अय्यर ने जवाब दिया : ‘सवाल बहुत अच्छा है। वास्तव में मैंने एक फॉमरूले की ईजाद की है, जिसका नाम है : आत्म-विलोपन। मैं हर सुबह फर्श पर ध्यान की मुद्रा में बैठ जाता हूं और मन ही मन यह दोहराने लगता हूं कि मैं वह राघवन अय्यर नहीं हूं, जो मद्रास यूनिवर्सिटी से फस्र्ट क्लास में पास हुआ, मैं वह राघवन अय्यर नहीं हूं, जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भी फस्र्ट क्लास रहा, मैं वह राघवन अय्यर नहीं हूं, जो स्टूडेंट्स यूनियन का निर्वाचित अध्यक्ष है, मैं पूर्व दिशा से आया मेधावी दार्शनिक राघवन अय्यर नहीं हूं, मैं केवल दिव्य शक्तियों का प्रवक्ता हूं।’ अय्यर यही ध्यान शाम के समय भी करते थे और इन सभी पंक्तियों को एक बार फिर दोहराते थे। लेकिन वे अंतिम पंक्ति में थोड़ा फेरबदल कर देते थे। शाम को वे स्वयं को ‘दिव्य शक्तियों का प्रवक्ता’ के स्थान पर ‘महात्माओं का माध्यम मात्र’ कहते थे।
हम भारतीय लोग स्वभावत: विनम्र होते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि हम लोग विनम्रता के आराधक हैं। पश्चिम में जब लोग आपस में मिलते हैं तो हाथ मिलाकर जोशोखरोश से अभिवादन करते हैं। जबकि हम किसी से भेंट करने पर विनम्रता से हाथ जोड़ लेते हैं, जैसे प्रार्थना कर रहे हों। हम अभिवादन के रूप में नमस्ते, नमस्कार, वणक्कम या सत श्री अकाल कहते हैं। अदब की यही तहजीब मुस्लिमों में भी है। वे अभिवादन में झुककर सलाम करते हैं और दाहिने हाथ से अपनी पेशानी को छूते हैं। लेकिन वास्तव में विनम्रता एक दुर्लभ गुण है। हम अक्सर अपने बारे में ही बात करना पसंद करते हैं। कोई भी व्यक्ति, जो हमेशा अपने ही बारे में बात करना चाहता है, उसे विनम्र नहीं कहा जा सकता। राजनेता विनम्र नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हें बार-बार सभी को यह बताना पड़ता है कि वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से बेहतर हैं। यही स्थिति धनी लोगों की भी है। हो सकता है कि ऊपरी तौर पर वे विनम्र और शिष्ट दिखाई दें, लेकिन भीतर से वे अहंकारी होते हैं। धन-दौलत के साथ अहंकार भी आ ही जाता है। धनियों के बारे में रॉबर्ट बर्टन ने अपनी किताब द एनाटमी ऑफ मेलंकली में सच ही लिखा था : ‘उन्हें अपनी विनम्रता पर गर्व होता है। उन्हें इस बात पर भी गर्व होता है कि उन्हें कोई गर्व नहीं है।’
मुझे लगता था कि मैं विनम्र व्यक्ति हूं। एक शाम मैंने अपनी बेटी और अपनी नाती से जानना चाहा कि क्या मैं वास्तव में विनम्र हूं। मैंने उनसे अपनी स्वतंत्र राय व्यक्त करने को कहा। मेरी नातिन मैना, जो अपनी अक्खड़ता और मुंहफटपन के लिए घरभर में जानी जाती है, ने जवाब दिया : ‘आप और विनम्र! कहीं आप मजाक तो नहीं कर रहे? आपको अपनी खुशामद करवाना पसंद है। जब महिलाएं आपको कबाब, खीर, केक और गुलदस्ते भेजती हैं तो आपको बहुत अच्छा लगता है। इससे आपके अहंकार की तुष्टि होती है। कुछ लोग हैं, जो आपको विंटेज स्कॉच परोसते हैं और इस तरह आपकी खुशामद करते हैं, जैसे आप कोई छोटे-मोटे मसीहा हों।’
मानो इतना ही काफी नहीं था। इसके बाद मेरी बेटी माला ने बोलना शुरू किया। उसने कहा : ‘जब आपके श्रोता आपकी चुटीली और चटपटी बातों से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं तो आप उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे आपके बारे में अच्छी-अच्छी बातें बोलें। लेकिन जब वे चुप हो जाते हैं तो आप ऊबने लगते हैं और आप उन लोगों को वहां से चले जाने को कह देते हैं। ऐसे में यह कैसे संभव है कि आपको एक विनम्र व्यक्ति कहा जाए?’
शायद वे दोनों सही हैं। अलबत्ता मैं हमेशा अपने ही बारे में बात नहीं करता, लेकिन यह जरूर सच है कि मैं हमेशा अपने ही बारे में सोचता रहता हूं। मैं विनम्रता की परीक्षा में फेल हो गया हूं। मैं हमेशा गुरु नानक की यह बात याद रखता हूं : अहंकार बहुत बड़ा रोग है, लेकिन यही रोग की दवा भी है।
आपको यह नहीं मालूम होगा
1 से लेकर 99 तक की अंग्रेजी वर्तनी में ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और ‘डी’ अक्षर कहीं भी नहीं आते हैं।
(‘हंड्रेड’ शब्द में पहली बार ‘डी’ अक्षर का इस्तेमाल होता है)
1 से लेकर 999 तक की अंग्रेजी वर्तनी में ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ अक्षर कहीं भी नहीं आते हैं।
(‘थाउजेंड’ शब्द में पहली बार ‘ए’ अक्षर का इस्तेमाल होता है।)
1 से लेकर 999999999 तक की अंग्रेजी वर्तनी में ‘बी’ और ‘सी’ अक्षर कहीं भी नहीं आते हैं।
(‘बिलियन’ शब्द में ‘बी’ अक्षर पहली बार आता है।)
और अंग्रेजी की समूची गणना में ‘सी’ अक्षर का इस्तेमाल कहीं भी, किसी भी वर्तनी में नहीं होता है।
(सौजन्य : विपिन बख्शी, दिल्ली
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