Wednesday, February 15, 2012

इस की खूबसूरती पर मर-मिटते थे हजारों जिंदगियां!

आम्रपाली

अपने सौंदर्य की ताकत से कई साम्राज्य को मिटा देने वाली आम्रपाली के रूप की चर्चा जगत प्रसिद्ध है। उस समय उसकी एक झलक पाने के लिए सुदूर देशों के अनेक राजकुमार उसके महल के चारों ओर अपनी छावनी डाले रहते थे। आम्रपाली नगरवधु थी। इसे गणिका भी कहा जाता था। उस समय गणिका का मुख्य काम होता था गणों का मनोरंजन करना उन्हें सुख पहुंचाना। इसलिए आम्रपाली को नर्तकी और वेश्या दोनों ही रूपों में याद किया जाता है।

अपने जमाने में मशहूर वैशाली की नगरवधू दो प्रसिद्ध गणिकाएं थीं। आम्रपाली औऱ वसंतसेना। आम्रपाली वैशाली की और बसंतसेना उज्जैन की थी। तब उपयोग इनका जासूसी कार्यों में भी किया जाता था। जब जासूसी करती थीं तो विषकन्याएं कहलाई जाती थीं। ये दो तरह के जासूसी कार्यों में प्रयुक्त की जाती थीं। स्थिर औऱ संचारक यानि एक जगह रहकर जासूसी करने वाली औऱ घूमघूमकर जासूसी करने वाली।

वैशाली का जन्म करीब 25 सौ वर्ष पूर्व आम्रकुंज में हुआ था। वह महनामन नामक एक सामंत को मिली थी। सामंत राजसेवा से त्याग पत्र देकर आम्रपाली को पुरातात्विक वैशाली के निकट अंबारा गांव चला आया। जब आम्रपाली की उम्र करीब 11 वर्ष हुई तो सामंत उसे लेकर फिर वैशाली लौट आया।

चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग द्वारा लिखित दस्तावेजों के मुताबिक, आम्रपाली सौंदर्य की मूर्ति थी। वैशाली गणतंत्र के कानून के अनुसार हजारों सुंदरियों में आम्रपाली का चुनाव कर उसे सर्वश्रेष्ठ सुंदरी घोषित कर जनपद कल्याणी की पदवी दी गई थी।

आम्रपाली को देखकर बुद्ध को अपने शिष्यों से कहना पड़ा कि तुम लोग अपनी आँखें बंद कर लो। वह जानते थे कि आम्रपाली के सौंदर्य को देखकर उनके शिष्यों के लिए संतुलन रखना कठिन हो जाएगा।

पहली मुलाकात में दिल दे बैठा शहंशाह

मगध सम्राट बिंबसार ने आम्रपाली को पाने के लिए वैशाली पर जब आक्रमण किया तब संयोगवश उसकी पहली मुलाकात आम्रपाली से ही हुई। आम्रपाली के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध होकर बिंबसार पहली ही नजर में अपना दिल दे बैठा। माना जाता है कि आम्रपाली से प्रेरित होकर बिंबसार ने अपने राजदरबार में राजनर्तकी के प्रथा की शुरुआत की थी। बिंबसार को आम्रपाली से एक पुत्र भी हुआ जो बाद में बौद्ध भिक्षु बना।

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