Sunday, January 30, 2011

मोदी को नहीं, गुजरात को जानता हूं, दारुल उलूम देवबंद के कुलपति गुलाम मोहम्मद वस्तानवी

वह देश के145 साल पुराने शीर्षस्थ इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम देवबंद के कुलपति हैं। उनकी कई खासियत हैं, जो उन्हें इस प्रतिष्ठित केंद्र के कुलपति रह चुके बाकी लोगों से अलग कतार में खड़ा करती हैं। वह इस धार्मिक शिक्षण संस्था के पहले ऐसे कुलपति हैं जो एमबीए डिग्री होल्डर हैं। वह पहले कुलपति हैं जो उप्र के बाहर (गुजरात) के हैं। वह अतीत के बजाय भविष्य पर नजर रखने के पक्षधर हैं। वह शरियत के सख्त पाबंद हैं, लेकिन बेवजह की फतवाबाजी के खिलाफ हैं। जी, हां बात हो रही है मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी की, जो इसी महीने दारुल उलूम देवबंद के कुलपति नियुक्त हुए हैं। कुलपति बनने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक बयान से विवाद के घेरे में हैं। उन पर इल्जाम यह है कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी। नरेंद्र मोदी पर उनके बयान से लेकर दारुल उलूम में उनके खिलाफ होने वाले विरोध तक के घटनाक्रम पर उप्र राज्य ब्यूरो प्रमुख नदीम ने मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी से बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश- नई जिम्मेदारी मिलते ही इस तरह की मुश्किल में घिरना, कैसा महसूस कर रहे हैं आप? सब कुछ गलतफहमी की वजह से हुआ है। मीडिया ने मेरी बातों को गलत तरीके से पेश किया जिसकी वजह से यह माहौल बना। मैंने हकीकत में जो बात कही थी वह सबके सामने रख दी। अगर कुछ लोग समझने को तैयार नहीं हैं तो मैं क्या कर सकता हूं? विवाद की वजह है कि आपने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी। क्या यह सही है? मैंने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट नहीं दी। और भला मैं नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाला कौन हो सकता हूं? गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की जो भूमिका रही है उसे भुलाया नहीं जा सकता। क्लीन चिट न सही लेकिन उनके शासन की तारीफ तो की आपने? मैंने किसी की तारीफ नहीं की। मैं किसी नरेंद्र मोदी को नहीं जानता। मैं गुजरात को जानता हूं। अगर आप मुझसे आठ साल पहले के गुजरात के बारे में पूछेंगे तो मैं तब के हालात बताऊंगा और जब आप आज के हालात पूछेंगे तो मैं आज के हालात बताऊंगा। आज की तारीख में मैं यह तो नहीं कह सकता है कि गुजरात में दंगा हो रहा है। कफ्र्यू लगा है। लोग मारे जा रहे हैं। आपका कहना है कि मीडिया ने आपके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया। क्या आप बता सकते हैं कि आपने कहा क्या था? गुजरात के बारे में वही बात जो अभी मैंने आपसे कही। आज का गुजरात कैसा है? सभी लोग खा-पी रहे हैं। मस्त हैं। इसी वजह से तो मोदी के शासन की तारीफ हो रही है और आप उसकी तस्दीक कर रहे हैं.. (सवाल को बीच में काटते हुए) मैं दारुल उलूम का कुलपति हूं। आप मुझसे यहां के बारे में सवाल करिये। गुजरात के बारे में अगर आपको बात करनी है तो वहां के किसी आदमी से बात करिए। क्या आप नरेंद्र मोदी को माफ करने को तैयार हैं? नहीं, किसी भी सूरत में नहीं। मैं क्या नरेंद्र मोदी को तो अल्लाह भी माफ नहीं करेगा। दारुल उलूम देवबंद में आपको लेकर इतना विरोध क्यों? जितने विरोध की बात मीडिया में आ रही है, उतना विरोध वास्तव में हो नहीं रहा है। असंतोष पर काबू पाने के लिए छात्रों को निलंबित करना पड़ा और आप कह रहे हैं उतना विरोध नहीं है जितना मीडिया में आ रहा है? परिसर में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं होगी। दारुल उलूम की छवि खराब करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। छात्रों के असंतोष के पीछे क्या आपको अपने खिलाफ कोई साजिश भी दिखाई देती है? मेरे पास इसका कोई सबूत नहीं है। जब तक मेरे पास कोई पुख्ता सबूत न हो, मैं इसे साजिश नहीं सकता। बच्चे हैं, हो सकता है कि खुद बहक गए हों। यह भी हो सकता है कि किसी के बहकावे में आ गए हों, लेकिन उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने भविष्य में ऐसी गलती न करने की बात कही तो मैंने उनका निलंबन वापस कर दिया। आपने इस्तीफा देने की घोषणा की थी, क्या यह फैसला किसी दबाव में था? नहीं कोई दबाव नहीं था। मैं नहीं चाहता था कि बेवजह मेरी वजह से समस्या पैदा हो। आज की तारीख में आप मुसलमानों की सबसे बड़ी क्या समस्या देखते हैं? गरीबी और अशिक्षा आज की तारीख में मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या हैं। मुसलमानों को अपने आपको तालीम और तिजारत सेजोड़ना होगा। इसके बिना मुसलमानों की तरक्की मुमकिन नहीं है। मुसलमानों को यह बहुत अच्छी तरह समझनी होगी कि उनकी गरीबी मिटाने के लिए कोई दूसरा नहीं आएगा। अपनी गरीबी मुसलमानों को खुद मिटानी होगी। आप कह रहे हैं कि तरक्की के लिए मुसलमानों को अपने को तालीम और तरक्की से जोड़ना होगा, इसके लिए आपको क्या रास्ता दिखता है? किसी चीज की भी भूख खुद रास्ता दिखा देती है। जिस दिन मुसलमान में यह भूख पैदा हो गई कि उसे हर कीमत पर तालीम चाहिए, वह तालीम याफ्ता हो जाएगा। तालीम के बाद उसने अगर तिजारत की ठानी तो वह तिजारती हो जाएगा। बात जब मुसलमानों की तरक्की की होती है, आगे बढ़ने की होती है तो लड़कियों की सह शिक्षा, पुरुषों के साथ काम करने जैसे मुद्दों पर फतवे आ जाते हैं, इससे क्या तरक्की का मार्ग बाधित नहीं होता है? किसी विषय पर कुरान क्या कहता है, यह फतवा है। फतवा मांगना गलत नहीं बस उसकी गलत व्याख्या नहीं होनी चाहिए। कहा जाता है कि मुसलमानों की तरक्की में बाधा उनका रूढि़वादी होना भी है? यह बात कतई गलत है। मुसलमान न तो रूढि़वादी होते हैं और न ही आधुनिक। उनका ईमान कुरान होता है। कुरान में जो हिदायत दी गई है, मुसलमान उस हिसाब से जिंदगी जीता है। कुरान को मानना हर मुसलमान के लिए जरूरी शर्त है। दारुल उलूम देवबंद में आपको जो नई जिम्मेदारी दी गई है उसके बाद आपने क्या कोई लक्ष्य निर्धारित किया है? इस इदारे का अपना एक मुकाम और पहचान है। यह और तरक्की हासिल करे और इसे और शोहरत हासिल हो।

और खतरनाक हुआ पाकिस्तान, ऐटमी हथियारों की संख्या दोगुनी

वॉशिंगटन. आतंकवाद को बढ़ावा देकर पहले ही भारत और बाकी दुनिया के लिए खतरा बन चुका पाकिस्तान अब ज्‍यादा खतरनाक बन गया है। उसने भारत को काफी पीछे छोड़ते हुए अपने परमाणु हथियारों की संख्या दोगुनी कर ली है। अमेरिका के मशहूर अखबार 'वॉशिंगटन पोस्ट' की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने पिछले कुछ सालों में परमाणु हथियारों का जखीरा दोगुना कर लिया है अब इनकी संख्या 100 पार कर चुकी है। अखबार के मुताबिक पाकिस्तान ने यूरेनियम और प्लूटोनियम उत्पादन में खासी तेजी लाते हुए नए परमाणु हथियार विकसित किए हैं। 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने गैर सरकारी जानकारों के हवाले से यह रिपोर्ट प्रकाशित की है।    

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के विकास से चिंतित है। पाकिस्तान को दुनिया के सबसे खतरनाक और अशांत इलाकों में से एक माना जाता है। यहां परमाणु हथियारों पर आतंकी कब्‍जे की भी आशंका जताई जाती रही है। ऐसे में पाकिस्‍तान में ज्‍यादा से ज्‍यादा परमाणु हथियार बनाने की होड़ से ओबामा प्रशासन के सामने ऊहापोह की स्थिति है। 

बताया जाता है कि भारत के पास करीब 50 से 70 परमाणु हथियार हैं।  भारत की नीति परमाणु ताकत बढ़ाने के बजाय परमाणु ऊर्जा का इस्‍तेमाल जनता के हितों के लिए करने की है। पर ओबामा प्रशासन को डर है कि पाकिस्‍तान की उल्‍टी नीति के चलते दक्षिण एशिया के बाकी देश भी परमाणु हथियार विकसित करने की होड़ में शामिल हो सकते हैं। 

ओबामा की असमंजस यह भी है कि वह भारत के साथ बेहतर आर्थिक, राजनैतिक और रक्षा संबंध बनाने की कोशिश के साथ ही अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ लड़ाई में मुख्य सहयोगी पाकिस्तान के साथ भी अपने रिश्ते गहरा करना चाहते हैं। लेकिन भारत और पाकिस्तान के खराब रिश्ते के चलते अमेरिका के सामने दुविधा की स्थिति है। 

सियासी तौर पर अस्थिर पाकिस्तान दो आशंकाओं के बीच फंसा हुआ है। पाकिस्तान को आशंका है कि आतंकवादी परमाणु हथियारों और बम बनाने वाले सामानों पर कहीं कब्जा न कर लें वहीं पाकिस्तान को इस बात का भी शक है कि अमेरिका उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम पर बंदिशें लगाकर भारत को फायदा पहुंचा सकता है। 

पिछले हफ्ते जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के परमाणु निशस्त्रीकरण के मुद्दे पर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के राजदूत जामिर अकरम ने  अमेरिका समेत दूसरी बड़ी ताकतों पर दोहरे मापदंड और भेदभआव का आरोप लगाया। अकरम ने कहा कि ताकतवर देश पाकिस्तान पर  उस समझौते के लिए दबाव बना रहे हैं कि जिसके तहत भविष्य में होने वाले यूरेनियम और प्लूटोनियम के उत्पादन पर रोक लगाने की बात कही गई है।    

पाकिस्तान के पास बम, भारत के पास सामानअमेरिकी मीडिया के मुताबिक पाकिस्तान ने भारत से ज़्यादा परमाणु बम विकसित कर लिए हैं। लेकिन भारत के पास भविष्य में बम बनाने के काम आने वाला यूरेनियम और प्लूटोनियम पदार्थ है। जबकि पाकिस्तान को इसका उत्पादन और विकास करना होगा। यही वजह है कि पाकिस्तान यह आरोप लगाता है कि भारत इस मामले में मजबूत स्थिति में है और भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते से भी भारत को काफी मदद मिली है।
 

पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता है अमेरिका अमेरिका रिका की कोशिश है कि इस साल के आखिर तक परमाणु हथियार को बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामानों पर प्रतिबंध लगा दिया जाए ताकि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान जैसे देशों के सामने परमाणु अप्रसार का मुद्दा मजबूती से रखा जा सके। इस क्षेत्र में चीन भारत को बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानता है। चीन ने पाकिस्तान में दो न्यूक्लियर एनर्जी रिएक्टर बनाने में सहयोग कर रहा है। रूस भारत के साथ ऐटमी सहयोग कर रहा है और उसने पाकिस्तान को पिछले हफ्ते बताया कि रूस पाकिस्तान की गतिविधियों से चिंतित है।  
अमेरिका के हथियारों के प्रमुख वार्ताकार रोज गॉटमोलर ने हाल ही में इस मुद्दे पर कहा, 'हमारा धैर्य खत्म हो रहा है।

संघर्षो के बीच दोराहे पर देवबंद


समकालीन संसार की सबसे बड़ी नादानियों में से एक है तमाम धर्म, मत संप्रदाय के आचार्यो को काटरून किरदारों में बदल देना। और इसीलिए इमामों का चित्रण लंबी-सी दाढ़ी और विकृत आंखों के साथ किया जाता है, पंडित की जरूरत से लंबी चोटी, बड़ी तोंद और लोलुप निगाहें दिखाई जाती हैं, तो ईसाई फादर बुरी नजर को छुपाने में नाकाम बगुलाभगत की तरह का आभामंडल रखते हैं। इस बेतुकेपन के लिए नैतिक ह्रास वाले आधुनिक संसार में धर्म की अवनति जिम्मेदार है और इसका एक आंशिक कारण हर धर्म-संप्रदाय के पुरोहित वर्ग में जड़तावादी चरमपंथ की मौजूदगी है, जो परमसत्ता के नाम पर हिंसा को न्यायसंगत ठहराता है। 

आस्था- मंदिर, मस्जिद या चर्च- स्वेच्छाचारिता और तानाशाही के असंख्य रूपों से निरंतर संघर्षरत लोगों के लिए परंपरागत अभयारण्य रही है। सक्षम सरकारें, चाहे वे तानाशाह हों या लोकतांत्रिक, धर्माचार्यो की ताकत को समझ चुकी हैं और दोहरी प्रतिक्रिया का चुनाव करती हैं : वे जड़तावादी चरमपंथ को दबाती हैं और चापलूसी व रिश्वत के चतुर मेल के जरिए धर्माचार्य वर्ग को स्थापित होने में सहयोग देने की निरंतर कोशिश करती रहती हैं। इस वर्ग के लिए परीक्षा की असली घड़ी तुलनात्मक रूप से शांत दौर में नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दमन के दौरों में आती है। 

यदि हम भारतीय और खासतौर से उत्तर भारतीय मुस्लिमों के जीवन में उलेमा के असर को समझना चाहते हैं, तो हमें 19वीं सदी में उतार के युग में उनके द्वारा निभाई गई शानदार भूमिका को याद करना पड़ेगा, जब सहारा देने वाला हर स्तंभ भरभरा रहा था। इन्हें या तो पतनकाल की दीमक चाट रही थी या ये ब्रिटिश सेना की उभरती हुई ताकत से परास्त हो रहे थे। तब वह उलेमा वर्ग ही था, जिसने समुदाय को बांधे रखा। यहां तक कि इसकी जड़तावादी शाखा शाह वलीउल्लाह के मदरसे के छात्रों (या तालिबान) ने राजनीतिक शक्ति की पुनस्र्थापना के लिए जेहाद की शुरुआत भी की। यह युद्ध विफल रहा, पर जो इस युद्ध में शामिल नहीं हुए थे, उन्होंने निचले स्तर पर नेतृत्व के जरिए उस समुदाय को कहीं ज्यादा बड़ी सेवा उपलब्ध कराई, जो आर्थिक और सामाजिक दबाव में था और न सिर्फ भरण-पोषण को लेकर डरा हुआ था, बल्कि अपनी भाषा और संस्कृति के खात्मे को लेकर भी भयभीत था। ऐसे पीड़ादायक हालात के बीच से ही करीब डेढ़ सदी पहले देवबंद से दार-उल-उलूम जैसे संस्थान का जन्म हुआ। महात्मा गांधी ने इस मदरसे के न सिर्फ धार्मिक महत्व, बल्कि जनसामान्य से इसके जुड़ाव के असर को भी पहचाना था। 

देवबंद बीसवीं सदी की शुरुआत में उच्चवर्ग, नवाब और जमींदारों के प्रभुत्व वाली मुस्लिम राजनीति का विरोधी था। पश्चिम प्रभावित संवाद में देवबंद का आमतौर पर दानवीकरण ही किया गया। हां, एक गौण गतिविधि भी है, जिसने देवबंद को प्रतिगामी घोषणाओं की एक फतवा फैक्टरी में बदल दिया है। और इसके कुछ प्रभावशाली नाम हिंसा को जायज ठहराते रहे हैं। लेकिन हर महान संस्थान से कुछेक ऐसे बच्चे तो निकलते ही हैं, जो अपने बुद्धिमान बुजुर्गो का सम्मान नहीं करते। देवबंद उन मुस्लिमों के लिए बेहद शानदार स्रोत है, जिन्हें जन्म और वंश परंपरा से कोई लाभ नहीं मिला। 

मुस्लिमों के बीच यह लगाव देवबंद को शक्ति केंद्र बनाता है। और जहां पर शक्ति होगी, वहां राजनीति भी होगी। फिलहाल हम विरोधी गुटों के बीच राजनीतिक संग्राम देख रहे हैं और अधिकारप्राप्त दल देवबंद पर नियंत्रण के लिए उन्हें हवा दे रहे हैं। मोहतमिम या एक तरह से वाइस चांसलर के तौर पर मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तान्वी की नियुक्ति से जन्मी अशांति के पीछे कई कारण हैं। वस्तान्वी एक असाधारण मौलाना हैं, जिन्होंने 1979 में गुजरात-महाराष्ट्र की सीमा पर एक जनजातीय क्षेत्र में महज छह छात्रों के साथ एक झोपड़ी में मदरसा शुरू किया था और उसे देशभर में दो लाख छात्रों वाले संस्थान में बदल दिया। इसीलिए वे उत्तरप्रदेश के बाहर के पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें यह सम्मान और जिम्मेदारी दी गई। उनकी मौजूदगी उन सुधारों के लिए भरोसा दिलाती है, जो छात्रों की गहरी इच्छा हैं। लेकिन यह उस वर्ग के लिए चिंता भी है, जिसने दिल्ली और देश के बाहर से व्यक्तिगत लाभों के लिए देवबंद को निचोड़ा है। गहरे तक पैठ चुके इन स्वार्थो को तो हर बहाने से वस्तान्वी को चुनौती देनी ही थी। और उन्होंने आत्मरतिकों की मदद से ताकत के भूखे पत्रकारों को खोज ही लिया। 

जैसा कि पहले भी हो चुका है, देवबंद दोराहे पर है। अगर यह धार्मिक कर्मकांडी समूह की मिल्कियत बन जाता है, जो अपने लालच के लिए इस महान नाम का शोषण करना चाहते हैं, तो फिर वस्तान्वी बाहर हो जाएंगे। अगर देवबंद अपने संस्थापकों के आदर्शो के प्रति ईमानदार बना रहता है, तो फिर यह शैक्षिक सुधार और खुले विचारों की ओर जाएगा, जो एक साधनहीन भारतीय मुस्लिम बच्चे को साधनसंपन्न वयस्क में बदल सकता है।

एम.जे. अकबर
लेखक द संडे गार्जियन के संपादक और इंडिया टुडे के एडिटोरियल डायरेक्टर हैं

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