Saturday, January 29, 2011

मिस्र में जन विद्रोह

ट्यूनिशिया से उड़ी चिंगारी से अब मिस्र में आग लग चुकी है। लपटें यमन में भी उठ रही हैं। पिछले कुछ दिनों में अल्जीरिया और लीबिया से भी हलचल की खबरें मिली हैं। उत्तर अफ्रीका और पश्चिम एशिया के इन देशों में जन विद्रोह का ऐसा नजारा पहले कभी नहीं दिखा। इस क्षेत्र में क्रांति का मतलब सैनिक तख्तापलट ही रहा है। इसका एकमात्र अपवाद ईरान था, जहां 1979 में जन क्रांति हुई, लेकिन वह इस्लामी रंग में डूबी हुई थी। लेकिन आज सड़कों पर आम जनता है। उसका असंतोष वहां तेजी से बढ़ी खाद्य और ईंधन की कीमतों, पुलिस ज्यादतियों और भ्रष्टाचार की कहानियां कह रहा है। 

विगत 14 जनवरी को 23 साल से सत्ता पर कुंडली जमाए ट्यूनिशिया के तानाशाह जाइन अल-अबिदीन बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा। अब 30 साल से गद्दी पर जमे मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक का सिंहासन हिल रहा है। देश में सुधारों के समर्थक अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पूर्व प्रमुख मुहम्मद अल-बरदाई के वियना से मिस्र लौट जाने के बाद वहां के विद्रोह को एक ऐसा नेता मिल जाने की ठोस संभावना बन गई है, जिसकी हैसियत है और साख भी। यानी राष्ट्रपति मुबारक की मुश्किलें कई गुना बढ़ चुकी हैं। इस लहर की शुरुआत ट्यूनिशिया में 17 दिसंबर को मुहम्मद बाउजिजी नाम के एक बेरोजगार ग्रेजुएट नौजवान को पुलिस द्वारा सब्जी बेचने की इजाजत न देने से हुई, जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली। बाउजिजी तब से पूरे अरब जगत में तानाशाही के विरोध का प्रतीक बना हुआ है। विद्रोह की इस लहर की यही खूबी है कि इस पर मजहबी रंग नहीं है। इस हलचल का क्या परिणाम होगा, कहना मुश्किल है, क्योंकि इन देशों में विपक्ष का कोई ढांचा नहीं है। फिलहाल यह तो साफ है कि जनता जाग गई है

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