Wednesday, December 14, 2011

जिसके साहित्य में प्रेम और यौन संबंध हाथ पकड़ कर चलते हैं

असमिया लेखिका इंदिरा गोस्वामी कहती थीं, ज्यादातर मामलों में औरत की तुलना में आदमी ज्यादा भयानक है। पुरुष के लिए नारी और नारी के लिए पुरुष का भयानक होना स्वाभाविक है, क्योंकि आदमी को शरीर और यौन संबंधों से नापने वाले इस समाज में कोई किसी से बच नहीं सकता। भूपेन हजारिका की मृत्यु से अभी असमिया समाज उबर भी नहीं पाया था कि मामोनी दी का जाना उसके लिए एक बड़े सदमे की तरह है। ये दोनों असमिया समाज में कला और साहित्य के सबसे बड़े प्रतिमान तो थे ही, बाहर की दुनिया में उसकी पहचान भी थे। 

इंदिरा जी का एक उपन्यास है नीलकंठी ब्रज। इसमें विधवा सौदामिनी शिल्पकार राकेश से कहती है, आप तो शिल्पकार हो, आप में अनुभूति है। मेरा प्रेम और इच्छा.... आप विश्वास मानिए, मैंने अपना ही शोध किया है। कुछ भी तो नहीं बदला। एक अन्य उपन्यास उवेखोवा हौदा की नायिका विधवा पात्र गिरिबाला कहती है, प्रेम ही यौन संबंध को उत्साहित और नियंत्रित करने वाला शस्त्र है। किसी भी प्रकार का नैतिक ज्ञान और संस्कार शरीर की इस संपत्ति को वश में नहीं कर सकता। छूकर देखो साहब, क्या विधवा होने से मेरी देह में कुछ भी नहीं रह गया है? इतनी बेबाकी से डॉ. गोस्वामी की नारी पात्र ही बोल सकती थी। उनके साहित्य को पढ़कर ऐसा लगता है कि प्रेम और यौन संबंध हाथ पकड़कर चलते हैं, इसीलिए उनके नारी चरित्र प्रेम और यौन इच्छाओं के पक्ष में इतने मुखर हैं। 

देखा, सुना और भोगा सच 
डॉ इंदिरा गोस्वामी को लोग मामोनी रायसम गोस्वामी के नाम से भी जानते थे। उनकी रचना की सबसे बड़ीखूबी यह थी कि उन्होंने सत्य के साथ कभी समझौता नहीं किया। सत्य जो उन्होंने खुद देखा सुना और भोगा था।ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित इंदिरा गोस्वामी ने मामोरे धरा तरोवाल चेनाबर स्रोत ,अहिरण आदि उपन्यासों के जरिए श्रमिक वर्ग की वेदना और नीलकंठी ब्रज उपन्यास में तीर्थ स्थान में रहने वालीहिंदू विधवाओं की पीड़ा प्रस्तुत की है। एक उपन्यास में उन्होंने असमिया वैष्णव सत्र के पतन का चित्रण किया है।यह सभी रचनाएं उन्होंने उन स्थानों में रहकर और उन पात्रों के साथ मिलकर रची हैं। 

आधा लिखा दस्तावेज उनकी आत्मकथा है। इसमें उन्होंने जीवन संघर्ष को बयान किया है। छिन्नमस्तार मानुहटोउपन्यास में उन्होंने कामाख्या देवी पीठ पर बलि देने की परंपरा का विरोध किया है। इससे समझा जा सकता हैकि एक पशु की बलि भी उनके हृदय को कितना दुखी करती थी जबकि वे उसी समाज की अंग थीं। इंदिरागोस्वामी के अधिकांश उपन्यासों की पृष्ठभूमि असम से बाहर की है लेकिन कहानियों में असम और असमियासमाज के चित्र हैं। 

कामिल बुल्के से मुलाकात 
रामायणी साहित्य पर उनका शोध बहुत सराहा गया था। वह फादर कामिल बुल्के से रांची में मिली थीं। ये बातसन् 1972 की है। फादर ने इंदिरा जी को राम साहित्य को समझने की नई प्रेरणा दी। इंदिरा जी के जीवन केहादसों के विवरण सुन कर उन्होंने उनसे कहा था हमेशा अच्छे काम करते जाओ। अच्छे काम का फल कभी बुरानहीं होता। इस अनोखी लेखिका का निजी जीवन घटनाओं दुर्घटनाओं से भरा हुआ था। ग्यारह साल की उम्र मेंही वे अवसाद का शिकार हो गई थीं। परिवार में या आसपास होने वाली कोई भी दुर्घटना उनके अवसाद को बढ़ादेती थी। किसी की मृत्यु देख कर वह घबरा उठती थीं। अपने पिता की मृत्यु उन्होंने बहुत ही करीब से देखी थी।हर बार अवसाद का सामना करने के लिए वे कलम उठा लेती थीं। उन्होंने कहा भी था मेरे शरीर में ख़ून के रूपमें स्याही बहती है इसीलिए मैं जिंदा हूं। 

विवाह के सिर्फ अठारह महीने बाद ही उनके पति की मौत हो गई थी। इसके बाद अपना सामान और गहने वहींबांट कर वे कश्मीर से असम लौट आई थीं। लेकिन लेखन कभी बंद नहीं हुआ। एक अभिजात परिवार में जन्मलेने और पलने बढ़ने के बावजूद उनकी नजर हमेशा समाज के उपेक्षित और अपमानित लोगों पर ही रहती थी।शायद उन्हें अपने दुख पीडि़त लोगों के जीवन में ही दिखते थे। उनके साहित्य में महलों में जीवन जीने वालेलोग नहीं उनके आसपास झुग्गियों में जीने वाले लोगों की कहानियां दिखती हैं। उन लोगों के सुख दुख हंसनारोना ही थी उनकी कलम की शक्ति और सृष्टि का आधार। 

डॉ गोस्वामी के लेखन का एक महत्वपूर्ण पक्ष है पतित और उपेक्षित नारी। कोई पति के विश्वासघात की वजहसे कोई अवैध संतान की मां होने की वजह से कोई विधवा होने के कारण। लेकिन उनके नारी पात्रों कीविशेषता है कि वे आवाज उठाती हैं। विद्रोह करती हैं और अपनी शक्ति का परिचय देती हैं। प्रेम और अधिकारपाने के लिए संघर्ष करती हैं। 

बेबाक अंदाज 
उनके पात्र बहुत बेबाक हो कर अपनी बात रखते हैं। उनके उपन्यास उवे खोवा हौदा की गिरिबाला कहती है , 'साहब मैं दुर्गा दीदी और छोटी मां की तरह जीवन नहीं बिता सकती। मेरे पति गुजर गए। पिताजी कहते हैं किमुझे हमेशा मृत पति की खड़ाऊं मे फू ल चंदन चढ़ाना चाहिए। कहते हैं मृत पति की पूजा करो। उसी पति कीजिसने जीवित रहते हुए दूसरी औरत का हाथ पकड़ा था। मेरे साथ पलंग पर बैठ कर कहता था कि ब्याह करकेलाने वाली औरत में कोई रस नहीं होता। 

इंदिरा गोस्वामी की हर रचना को पढ़कर ऐसा लगता है कि हम भी उन्हीं पात्रों में से एक हैं। डॉ गोस्वामी कीआत्म विश्लेषण की क्षमता से उन पात्रों में रह कर डर सा प्रतीत होता है। क्या वाकई इतना कड़वा या नग्न सत्यलेकर हम इस समाज में जी पाएं गे?

3 comments:

राजेश कुमार ठाकुर हम छि मिथिलावासी said...

bahut achha sahi aur sachaie hai yahi

Unknown said...

पर कुछ लोग इस सचाई से इंतना दूर क्यों भाग रहा है

दीनदयाल झा राघब said...

dil ki baat kalam ke raste kore kagaj par....kai bar padha, par eitni gahrai ke liye jitna gota lagay usmen moti nahin mile, sayad aur gote lagane parenge, very nice.

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