Friday, December 30, 2016

मोदी का इस्तीफा

समसामयिक घटनाएँ यदि आपको उद्वेलित न करें तो समझिये आप जीवित मृत हैं. 

पढाई की समय सीमा समाप्त होने को हो और परीक्षा की घडी सर पर हो तो एक कर्मठ और अपने भविष्य को लेकर चिंतित छात्र जाने क्या क्या करने लगता है... उसकी कोशिश होती है की सफल होने के सारे संभव तरीके अपना ले.. कोई कसर छुट न जाए उससे जो उसे सफल बनाने की दिशा में हो.


कमोबेश आज प्रधानीमंत्री मोदी जी का यही हाल है. वो दिए गए समय सीमा के समाप्त होने से पहले हर संभव प्रयास कर लेना चाहते हैं. यदि कोई सफल होने को लेकर प्रयासरत हो, अपने फैसलों के परिणाम को लेकर चिंतित हो तो नि:संदेह वो गद्दार, बेईमान, चोर, धोखेबाज, स्वार्थी या अकर्मण्य तो नहीं हीं हो सकता है न.

हम अपने निजी जीवन में आगे बढ़ने को, प्रगति करने को कई सारे क़दम उठाते हैं... फैसले लेते हैं. किन्तु जरुरी नहीं हर फैसला या निर्णय शत-प्रतिशत सटीक परिणाम देता हो. कई बार हम असफल होते हैं या कम सफल भी होते हैं. हम फिर से प्रयास करते हैं... गिरते हैं... उठते हैं... किन्तु प्रगति पथ पर आगे तो बढ़ते ही हैं. कम से कम हम उन लोगों से तो ज्यादा ही सफल होते हैं जो कुछ नहीं करते.. सिवाय अपने ओहदे में निहित आनंद की प्राप्ति के.

आज कई सवाल किये जा रहे हैं प्रधानमंत्री से. कोई कह रहा है वो असफल हुए. किसी भाई को उनका इस्तीफा चाहिए तो कोई कह रहा है वो सिर्फ दिखावे की राजनीती कर रहे हैं... उनका दल देश में अव्यवस्था और अराजकता कायम कर रहा है.

एक जिम्मेवार नागरिक को आवश्यकता है इन सारे सवालों का जवाब पूर्वाग्रह छोड़कर ढूंढने की. सोचने की - कि क्या आगे बढ़ने को, प्रगति करने को प्रयास करना गलत है ?

क्या एक प्रधानमंत्री को बस प्रधानमंत्री पद का स्वाद लेते रहना चाहिए... क्या उसे वही सब करना चाहिए जो देश की आजादी के बाद ६०- ६५ वर्षों में किया गया ? स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी देश की 30% जनता को मुलभुत सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाया मगर २ या ३ साल में हमें सभी बिमारियों का ईलाज चाहिए...

दरअसल इसका भी एक सकारात्मक पक्ष है की हमें इस प्रधानसेवक से उम्मीदें बहुत ज्यादा थीं जो और भी चरम पर तब पहुँच जाती थी जब मोदी बड़ी बड़ी बातें करते थे.


अब भले प्रधानमंत्री इन उम्मीदों पर वो खड़े ना उतरें हों... (नहीं हीं उतरे हैं), मगर वो प्रयास तो कर रहे.. वो हिम्मत तो दिखा रहे.. दुनियां की नजर तो ईधर कर पाए.. दशकों बाद विकासशील से विकसित देश बनने की उम्मीद तो जगा पाए. क्या ये सब उपलब्धि नहीं ?


कितने लोग पहले सफाई और स्वक्षता के लिए इतने जागरूक थे देश में ? कितनी समझ थी लोगों को देश द्रोह की... कितना बहिष्कार हुआ था चीनी समानों का पहले ? इससे पहले कितने प्रधानमंत्रियों को हम इतना घेरते थे... कितने प्रधानमंत्रियों के पीछे कांग्रेस की अकूत संपत्ति के साथ साथ कुछ घटियातम अवसरवादी नेता हाथ धो कर पड़े थे ?दिखावे की राजनीती की शुरुआत इस देश में क्यों और कब शुरू हुयी ? क्या बड़ी बड़ी बातें कारने वाले नेताओं को हम पसंद नहीं करते हैं ? इंदिरा के २० सूत्री कार्यक्रम से बड़ा गप्प क्या कोई हुआ देश में ? ३० -३५ वर्षों से देश में गरीबी मिटाई जा रही है कांग्रेस की सरकारों द्वारा... मिट गई ? क्या कर लिया किसी ने तब ? कितने कन्हैया... कितने केजरीवाल, रविश और कितने दिलीप मंडल यूँ बुझा तीर लिए फिरे थे तब. कितने ऐसे राजनेता थे तब जो खुद का काम छोड़कर मोदी विरोध का एकसूत्री कार्यक्रम चलाये बैठे थे ?

रही बात अव्यवस्था की... अराजकता और असहिष्णुता की. तो क्या मोदी या भाजपा ने कश्मीर और पंजाब में आग लगाई... क्या मोदी ने आसाम और बंगाल में अलगाववादी पाले थे.. मोदी ने सिखों की हत्याएं करवाई थी या फिर आँखफोड़वा कांड करवाया था ? क्या तब अव्यवस्था और अराजकता नहीं फैली थी देश में ? संभवतः हमें तब इन सब शब्दों का मतलब नहीं पता था.. असहिष्णुता का अर्थ नहीं पता था हमें तब.

आज यदि गौ-हत्या पर चर्चा हो रही है, यदि कोई मुस्लिम सिविल कोड की चर्चा कर रहा है, स्त्री को परदे में रहकर बच्चे पैदा करने की मशीन बनाये रखने का विरोध कर रहा है, JNU में पाकिस्तान जिंदाबाद का विरोध किया जा रहा, देश के बाहर भारत की बात हो रही है... लोग भविष्य को लेकर आशावादी हो रहे हैं और हम बेहतर भविष्य की बात कर रहे हैं तो क्या गलत हो रहा है ?

ये सही है की इन सब मुहीम में कुछ लोग अतिवादी हो रहे हैं... वो मोदी के रस्ते चलने की कोशिश में सीमाएं तोड़ दे रहे. किन्तु क्या हर इस बात का जिम्मेवार मुखिया ही होता है ?

सो मित्रों.. ! कृपया न्यूनतम समझ बुझ दिखाएँ... मुलभुत समझ रखें... सिर्फ विरोध का जहर फ़ैलाने के बजाय यह भी सोचें की आपके पास देने को कितना उचित समय है... सोचें की आपके पास विकल्प क्या है ?

एक अर्धविकसित दिमाग के राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं आप ? या फिर सुबह के कहे शाम को मुकर जाने वाले, स्वार्थ के लिए तुष्टिकरण का अवरेस्ट खड़ा करने वाले केजरीवाल जी होंगे आपके नए प्रधानमंत्री ? या फिर चंद वोट के लिए बांग्लादेशियों द्वारा देश की जनता को मरवाने वाली ममता चाहिए हमें ? क्या आप ऐसे लोगों को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं ?

प्रवीण कुमार झा (बकैती)

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