Friday, February 4, 2011

मिस्र: आर-पार की लड़ाई के लिए तहरीर चौक पर जुटी जनता

काहिरा. मिस्र में राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के खिलाफ जनता का प्रदर्शन शुक्रवार को निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। जनता ने मुबारक को देश छोड़ने के लिए शुक्रवार तक का अल्‍टीमेटम दिया है, लेकिन मुबारक ने आज फिर पद छोड़ने से मना कर दिया। हालांकि खबर यह भी आ रही है कि अमेरिका मुबारक को हटाने के लिए कोई रास्‍ता निकाल रहा है।

प्रदर्शनकारी मुबारक के खिलाफ तहरीर चौक पर बड़ी रैली के लिए जुट गए हैं। इन्‍हें रोकने के लिए सेना पहले से ही मौके पर मुस्‍तैद है। ऐसे में एक बार फिर खूनी संघर्ष से इनकार नहीं किया जा सकता।

ये प्रदर्शन भड़काने में अल कायदा का हाथ होने की आशंका भी मानी जा रही है और यह प्रदर्शन अमेरिका विरोधी प्रदर्शन की शक्‍ल अख्तियार करता लग रहा है। अमेरिका समर्थित सरकार वाले अरब जगत के कई दूसरे देशों में भी लोग जबरदस्त प्रदर्शन कर रहे हैं या करने वाले हैं। 

शुक्रवार को मुबारक ने पद छोड़ने से इनकार करते हुए कहा कि अगर वह पद छोड़ देंगे तो देश में अराजकता का माहौल बन जाएगा। लेकिन अमेरिकी अखबार 'न्‍यूयार्क टाइम्‍स' ने खबर दी है कि ओबामा प्रशासन मुबारक को हटाने का फार्मूला तैयार कर रहा है। इसके तहत उपराष्ट्रपति उमर सुलेमान के नेतृत्‍व में मिस्र में सेना समर्थित सरकार बनेगी।

मिस्र की राजधानी काहिरा और अलेक्जेंड्रिया में लगातार 11वें दिन सरकार विरोधी प्रदर्शनों और मुबारक समर्थक-विरोधियों के बीच सड़कों पर झड़पें जारी रहने के बीच उपराष्ट्रपति सुलेमान ने विरोधियों से बातचीत का नया पैंतरा चला है। सुलेमान ने मुस्लिम ब्रदरहुड को बातचीत करने का न्योता भेजा है। मुस्लिम ब्रदरहुड एक रूढ़िवादी लेकिन अहिंसक संगठन है जो मिस्र में मुबारक की मुखालफत और लोकतंत्र का समर्थन करता रहा है। मुस्लिम ब्रदरहुड ने मंगलवार को उदारवादी मुस्लिम नेता मोहम्मद अलबरदेई को नई सरकार के गठन के लिए बातचीत के लिए नेता चुना था। विपक्ष ने भी एक बयान जारी कर कहा है कि वह मिलीजुली सरकार बनाना चाहता है। 

इस बीच, मुबारक सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। भारत के कई पत्रकारों के अलावा दुनिया के कई देशों के पत्रकारों को मिस्र की सेना ने घंटों हिरासत में रखने के बाद छोड़ा है। भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के अलावा अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने पत्रकारों पर हमले का विरोध किया है। गुरुवार को मुबारक समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई हिंसक झड़पों में 8 लोग मारे गए। काहिरा के तहरीर चौक पर मुबारक समर्थकों और विरोधियों के बीच झड़पों के दौरान गोली लगने से इन लोगों की मौत हुई।

इन प्रदर्शनों में शिरकत के लिए अल कायदा से जुड़ी वेबसाइट मुस्लिम.नेट ने विदेशी युवाओं से मिस्र में आकर ‘जिहाद’ में शामिल होने की अपील की है। वेबसाइट ने अपील की है, 'भाइयों, मिस्र में अत्याचार का खात्मा इस धरती से अत्याचार का खात्मा है। कुर्बानी देने का यही वक्त है।' यही वजह है कि इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे अल कायदा का हाथ होने की आशंका को हवा मिल रही है।  'ग्लोबल जेहादिज्म' नाम की किताब के लेखक और जेहादी वेबसाइटों पर नज़र रखने वाले जेरेट ब्रैकमैन के मुताबिक, 'हमेशा की तरह अल कायदा का ऑनलाइन मूवमेंट मिस्र संकट को मौके के तौर पर देख रहा है। इस संकट को यह संगठन अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहता है।'

पूरे अरब जगत में फैली आग
सरकार विरोधी प्रदर्शन अरब जगत के उन तमाम मुल्‍कों में होने जा रहे हैं, जहां की सरकार को अमेरिका समर्थन दे रहा है। मुबारक को पिछले तीन दशकों से अमेरिका समर्थन देता रहा है। मिस्र के राष्ट्रपति पर कैदियों के खिलाफ अत्याचार, तानाशाही और मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगते रहे हैं। वहीं, ट्यूनिशिया में सत्ता परिवर्तन और मिस्र में जारी प्रदर्शन ने अरब जगत के दूसरे देशों में खलबली पैदा कर दी है। सूडान, जॉर्डन और सीरिया में भी लोग सरकार के विरोध में खड़े हो गए हैं।  

ट्यूनिशिया, मिस्र, जॉर्डन और सूडान जैसे देशों में अमेरिका समर्थित सरकारें शासन में या तो हैं या रह चुकी हैं। अल कायदा और अमेरिका के बीच शत्रुता जगजाहिर है।  अल कायदा ने ही 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हमला किया था, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। इस हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ जंग का ऐलान किया था। अफगानिस्तान में जारी लड़ाई अमेरिका के इसी अभियान का हिस्सा है। अमेरिका की इस जंग की मुस्लिम जगत में आलोचना होती रही है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या अरब जगत के इन देशों में विद्रोह भड़काने के पीछे अल कायदा का हाथ है?

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